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माया का भ्रम

कुमारी, बहन, सुश्री मायावती अगली जुलाई में भारत का राष्ट्रपति बनने से बचना चाहतीं हैं। हालांकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का दावा है कि गतमाह के विधानसभा चुनाव में अपनी बसपा के वोट भाजपा को ट्रांसफर कराने के ऐवज में मोदी सरकार मायावती को रामनाथ कोविंद के रिटायर होने पर राष्ट्रपति बनवा देगी। लेकिन मायावती बोलीं कि : ”प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री वे बनना चाहेगी। राष्ट्रपति नहीं।” अर्थात भाजपा की पाली में गेंद है। मोदी—योगी को तय करना है। तो क्या वे तश्तरी में रखकर इन दो में से एक पद बहनजी को राखी के साथ पेश करेंगे?

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मायावती का एक और सपना है। दलित, गरीब, मुसलमान आदिवासी, पिछड़ा वर्ग आदि यदि बसपा से जुड़ जाये तो उनका स्वप्न पूरा हो जायेगा। इतने सब वर्गों के बाद, फिर बचा कौन ? यदि ऐसा हुआ भी तो बाकी पार्टियां क्या राजनीति तज कर परचून की दुकान खोलेंगी? संगम वास करेंगी?

मायावती को अभी भी बसपाई कार्यकर्ताओं के नारे की गूंज सुनाई पड़ती है : ” यूपी की मजबूरी है, मायावती जरुरी है।” मगर यूपी अब बदल गया हे। सियासी मुहावरा भी नया है। माहौल भिन्न है। भाजपा अब पुरानी कल्याण सिंह वाली नहीं जिससे, मायावती छह महीनों के सीएम का करार कर, मुकर गयीं थीं। योगी—मोदी खेला जानते है। खेलते भी हैं।

चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती इस बार 202 विधायकों की कमी के कारण पांचवीं बार सीएम नहीं बन पायीं। बसपा का केवल एक ही विधायक जीता। सदन में बहुमत 203 से होता है। अजूबा देखिये। बसपा अबतक सभी पार्टियों से चुनाव अभिसार कर चुकी है। लाभ नहीं हुआ। अब कोई बचा भी नहीं। तो किसका साथ पायेंगी ? लोकसभा चुनाव 2024 में है, फिर अगला विधानसभा 2027 में। बहुत देर है अभी।

इन सबसे पहले राज्य सभा की 11 सीटों का चुनाव 4 जुलाई 2022 को होना है। ढाई माह बाद। पंडित संतीश चन्द्र मिश्र भी तब तक भूतपूर्व सांसद हो जायेंगे। वे दशकों से राज्यसभा में रहे। अब केवल एक ही बसपा विधायक के बूते क्या कर पायेंगे ? नवनिर्मित संसद भवन से भी मरहूम रह जायेंगे। उसके बाद 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव में भी बसपा शून्य ही रहेगी। संसदीय स्थान सिकुड़ता जायेगा। तो राष्ट्रपति क्या, उपराष्ट्रपति क्या, यूपी सीएम की संभावना वर्षों पीछे सरक गयी है। भाजपा में शामिल हो जाये तो मायावती शायद नामित हो सकती हैं। अर्थात अब छोर के अंत तक जा पहुंचीं हैं। आम राजनीतिक—इति साफ नजर आ रही है।

भूकंप आ जायेगा यदि मायावती के विरुद्ध मोदी कहीं ईडी, सीबीआई और अन्य केन्द्रीय एजेंसी को उपयोग में लाते हैं तो ? यूं भी फाइलों का अंबार लगा है। खुलने की देर है। स्टाइल वहीं इंदिरा गांधीवाली पुरानी है। भुक्तभोगी ही बतायेंगे। मायावती के इन्द्रजाल को तो उजागर होना ही पड़ेगा।

यूं तो मायावती केन्द्र सरकार पर खुफिया एजेंसियों के राजनीतिक कारणों से दुरुपयोग का आरोप लगती रहीं हैं। इस संदर्भ में समाचारों में प्रकाशित कुछ रपट पर नजर डाले। वैसे खुद मायावती का आर्थिक विकास भी कम चमत्कारिक नहीं लगता है। ”2004 के चुनावी हलफनामे में मायावती की संपत्ति 11 करोड़ रुपये थी। फिर 2007 के विधानपरिषद चुनाव में दिये गये हलफनामे में 87.27 करोड़ हो चुकी थी। आगे 2012 के बाद मायावती ने कोई चुनाव नहीं लड़ा इसलिये 2012 के बाद व्यक्तिगत संपत्ति सार्वजनिक नहीं हुयी। 2012 की घोषणा में मायावती ने बादलपुर की पैतृत संपत्ति और घर का जिक्र नहीं किया था। हां, तीन बंगलों को जोड़कर नयी दिल्ली के लुटियन जोन में एक बड़ा बंगला, कनॉट प्लेस में बी—34 में ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर में आठ हजार वर्गमीटर से अधिक की वाणिज्यिक सम्पत्ति, नयी दिल्ली में ही सरदार पटेल मार्ग पर 43 हजार वर्गफीट की संपत्ति, लखनऊ में नौ माल एवेन्यू में करीब 71 हजार वर्ग फीट में बना भवन और 11 करोड़ की नकदी का उल्लेख उनके हलफनामे में जरुर था।

अब एक नजर मायावती के भाई की संपत्ति में हुए इजाफे पर भी डाले। आयकर विभाग ने बसपा प्रमुख मायवती के भाई और भाभी का नोएडा स्थित 400 करोड़ रुपये कीमत का प्लॉट जब्त किया था। आधिकारिक आदेश के मुताबिक, मायावती के भाई आनंद कुमार और उनकी पत्नी विचित्र लता के लाभकारी मालिकाना हक वाले सात एकड़ प्लॉट को जब्त करने का अस्थायी आदेश आयकर विभाग की दिल्ली स्थित बेनामी निषेध ईकाई ने 16 जुलाई को जारी किया था। कार्रवाई में जब्त किया गया 28,328.07 वर्ग मीटर (सात एकड़) का प्लॉट नोएडा के सेक्टर 94 से 2ए से पंजीकृत है। इस जमीन पर पांच सितारा होटल और अन्य लग्जरी सुविधाओं का निर्माण किये जाने की योजना थी। जब्ती का आदेश बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम 1988 की धारा 24 (3) के तहत जारी किया गया। बेनामी कानून का उल्लंघन करने पर सात साल की कैद या बेनामी संपत्ति के बाजार भाव के हिसाब से 25 फीसदी जुर्माने का प्रावधान है।

मायावती के श्वास इन केन्द्रीय खुफिया संस्थाओं में समाहित हैं। लोकसभा निर्वाचन (2024) तक सब स्पष्ट हो जायेगा। तो राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कैसे बन पायेंगी?

लखनऊ के विक्रम राव
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

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