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‘हिंदी नहीं है’ भारत की ‘राष्ट्र भाषा’, जानें क्या है इसका अस्तित्व ?

लखनऊ : देशभर में आज राष्ट्रीय हिंदी दिवस (National Hindi Diwas) मनाया जा रहा है। 14 सितंबर को हर भारतीय हिंदी दिवस के रूप में मनाता है। देश की सर्वाधिक जनता हिंदी (hindi) समझती है और उसी को ही अपनी मात्र भाषा मानती है। लेकिन एक बड़ा सच यह भी है कि असल में हिंदी हिन्दुस्तानियों की राष्ट्र भाषा है ही नहीं। दरअसल, 15 अगस्त 1947 के दिन जब देश गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद हुआ था तब भारत में तमाम भाषाएं बोली जाती थीं। जिनमें सबसे प्रमुख हिंदी भाषा थी। भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 (Article 343) के तहत ‘हिंदी’ भारत की ‘राजभाषा’ है। इसका मतलब कि आम तौर पर इस्तेमाल होने वाली भाषा। बता दें कि भारतीय संविधान (Indian Constitution) में राष्ट्रभाषा का कोई उल्लेख नहीं है।

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हालांकि, हिंदी आज भी दुनियाभर में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाओँ में से एक है। हिंदी का वर्चस्व दिन प्रति दिन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हिंदी का दबदबा हर जगह बना हुआ है, फिर चाहे वो कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म हो या आम जान द्वारा बोली जानी हो। साल 2001 की जनगड़ना के अनुसार, तकरीबन 25.79 करोड़ भारतीयों ने हिंदी को भाषा को अपनी मातृभाषा का मान दिया है। लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक का इस्तेमाल करते हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमाऊंनी, मगधी और मारवाड़ी भाषाएं शुमार हैं।

हिंदी को 1949 में मिला था राजभाषा का दर्जा

किसी भी देश की आधिकारिक भाषा वह हो सकती है जो उस देश के लोगों को जोड़ कर रखे। जब भारत का संविधान बनने की प्रक्रिया शुरू हुई तो उस समय भारत में हिंदी सर्वाधिक बोली और लिखी-पढ़ी जाती थी इसलिए इसे ही राष्ट्र भाषा बनाए जाने की गुहार लगने लगी। ऐसे में हिंदी को 14 सितंबर 1949 को भारत वासियों की राजभाषा का दर्जा दिया गया था। बता दें कि हिंदी को राजभाषा का मान दिलाने के लिए संसद में 12 सितंबर से 14 सितंबर तक बहस हुई।

चाचा नेहरू ने दिए थे ये तर्क

13 सितंबर, 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pt.Jawaharlal Nehru) ने संसद (Parliament) में छिड़ी बहस के दौरान हिंदी को मान दिलाने को लेकर यह तीन ज़रूरी बातें कही थीं।

‘किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता।’
‘कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती।’
‘भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में, जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसमें आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।’

अंग्रेजी को जड़ से उखाड़ फेकने के लिए किए गए काम

भारत से अंग्रेजी को जड़ से उखाड़ फेकने के लिए उसकी जड़ों को कमज़ोर करने का काम शुरू कर दिया गया था। 26 जनवरी, 1950 को जबभारत का संविधान लागू हुआ, तब हिंदी सहित 14 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया। वहीं 26 जनवरी 1965 को अंग्रेजी की जगह हिंदी को देदी गई और इसे देशभर में राजभाषा बनाने का फरमान दिया गया। जिसके चलते सभी राज्यों और केंद्र को आपस में हिंदी में ही संवाद करना था। इस प्रक्रिया को आसान करने के लिए संविधान ने 1955 और 1960 में राजभाषा आयोगों का गठन भी किया।

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