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अब किधर जाएंगे मुसलमान? – के विक्रम राव

लखनऊ डेस्क

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मुस्लिम वोट को लुभाने हेतु अखिलेश ने (1 नवम्बर 2021) कह दिया था कि सरदार पटेल और जिन्ना राष्ट्रभक्त रहे। जबकि वास्तविकता यह है कि सरदार पटेल राष्ट्रनिर्माता थे और जिन्ना देश विभाजक। मगर जिन्ना की श्लाधा सुनकर उनके मुसलमान वोटर बड़े प्रमुदित हुये थे।

सपा के संदर्भ में यह गमनीय है कि मुसलमान मतदाताओं को रिझाने हेतु लोहियावादी पिता-पुत्र ने तीन तलाक, चार बीवी और बुर्का-हिजाब को प्रचारित किया था। लोहिया ने बुर्का को पुरुषों का दासत्व बताया था। चार शादियों और तीन तलाक को नरनारी समता का घोर उल्लंघन लोहिया ने बताया था। नरेन्द्र मोदी ने लोहिया के इन नियमों को लागू किया नतीजन मुस्लिम महिलाओं ने कमल का बटन दबाया।

इन मुसलमानों ने अखिलेश पर यह आरोप भी आयद किया था कि मुख्तार अंसारी, अतीक और बरेली के सपा विधायक शर्जिल इस्लाम के पेट्रोल पम्प पर बुलडोजर का विरोध अखिलेश ने कभी नहीं किया। शायद पूर्व मुख्यमंत्री को दायित्य बोध था। उधर संभल के सपा (91 वर्षीय) सांसद शफीकुर रहमान वर्क ने भी कहा कि सपा सरकार मुसलमानों की उपेक्षा कर रही है। अब मुद्दा यह हे कि यदि मुसलमानों की नाराजगी बनी रही तो आगामी संसदीय निर्वाचन (2002) में समाजवादी पार्टी की अपार हानि हो सकती है। मगर आज के संदर्भ में उत्सुकता रहेगी कि आजमगढ़ के प्रस्तावित लोकसभा उपचुनाव में क्या होगा ?

केवल मुसलमान वोट के खातिर मुलायम सिंह यादव ने रामभक्त कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी। परिणामस्वरुप भाजपा तब सत्ता पर आ गयी थी। इस बार स्वयं अखिलेश यादव अपने चुनाव अभियान में हनुमान गढ़ी गये पर सावधानी से रामलला के जन्मस्थान पर नहीं गये। बड़े प्रसन्न हुये थे मुसलमान। उजबेकी डाकू जहीरुद्दीन बाबर के ढाचे को मलबे में बदलने पर भाजपाईयों के साथ क्या व्यवहार हुआ ? वह अमानवीय था। अक्षम्य था। इसका प्रमाण है।

के विक्रम राव (वरिष्ठ पत्रकार)
यह लेखक के निजी विचार हैं।

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