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जंगे आजादी में हमारा सखा था आयरलैण्ड !!

डिवेलेरा की समता नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से की जा सकती है। उनकी घनिष्टता रही भारत के श्रमिक नेता, वराहगिरी वेंकटगिरी से जो यूपी के तीसरे राज्यपाल और देश के चौथे राष्ट्रपति रहे। वे डि वेलेरा के साथी थे। सन 1916 में अंग्रेज बादशाह जार्ज पंचम के विरुद्ध डबलिन में बगावत करने पर दण्डित किये गये थे। गिरी तब ट्रिनिटी कॉलेज में कानून का अध्ययन करने आयरलैण्ड गये थे। उन्हें भी निष्कासित कर भारत भगा दिया गया। वे संलिप्त पाये गये थे। कालांतर में दोनों बागी साथी अपने—अपने देशों के राष्ट्रपति निर्वाचित हुये। दोनों ब्रि​टिश जेलों में सजा भुगत चुके थे। गिरि को श्रमिक संघर्ष में प्रेरित करने वाले थे आयरिश पुरोधा जेम्स कोनोली। राजधानी डबलिन के झुग्गी—झोपड़ी में 90 मजदूरों के लिये केवल दो संडास तथा एक नल देखकर कोनोली तथा गिरी ने मानवीय सुविधा हेतु आन्दोलन किया। भारत आकर गिरी ने आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (AIRF) की अध्यक्षता संभाली। बाद में जयप्रकाश नारायण चुने गये थे। गिरी ने नेहरु काबीना से श्रममंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था क्योंकि वित्त मंत्री सीडी देशमुख (जो आईसीएस से अवकाश पाकर कांग्रेस में आये थे) ने द्रोह किया। बैंक कर्मचारियों के वेतन पर अदालती निर्णय को नेहरु सरकार ने नकार दिया था। वित्त मंत्री के दबाव पर। तब ऐतिहासिक हड़ताल हुयी थी।

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उधर आयरलैण्ड में भी डि वेलेरो ने मजदूरों को संगठित कर हुकूमते बर्तानिया से आजादी हेतु संघर्ष चलाया। डि वेलेरा द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को समर्थन देने से कृतार्थ भारत की मनमोहन सिंह सरकार ने नयी दिल्ली की चाणक्यपुरी में ”डि वेलेरा मार्ग” का नामकरण किया (15 मार्च 2007) । वहां पधारीं आयरिश प्रधानमंत्री श्रीमती बर्टी अहर्न ने इन दो अंग्रेजी उपनिवेश रहे राष्ट्रों की शाश्वत मैत्री का सड़क को प्रतीक बताया। आज भी हजारों भारतीय छात्र—छात्राएं डबलिन अध्ययन हेतु दाखिला लेते हैं। डि वेलेरा स्वयं एक शिक्षक रहे, राजनीति में प्रवेश के पूर्व।

आयरलैण्ड में नारी अधिकार संरक्षण में भी भारत का अपार योगदान है। बात अक्टूबर 2021 की है। कर्नाटक की दन्त चिकित्सिका डा. सविता हल्लपनबार डबलिन के अस्पताल में कार्यरत थीं। अचानक एक दिन उनके चार माह की गर्भावस्था में मवाद की मात्रा बढ़ गयी थी। गर्भपात अनिवार्य था, वरना जान जा सकती थी। मगर आयरलैण्ड के रोमन कैथोलिक चर्च के धार्मिक नियमानुसार भ्रूण हत्या पाप है। देरी के कारण डा. सविता का निधन हो गया। आयलैण्ड में तब जनआन्दोलन चला। सांसदों ने संविधान में 36वां संशोधन किया जिससे पुराने निषेधात्मक आठवें संशोधन को निरस्त किया गया। तब से वहां अनिवार्य परिस्थियों में गर्भपात वैध हो गया। यह भी भारत द्वारा आयरिश सामाजिक सुधार आन्दोलन में योगदान कहलाता है।

इन सारे दृष्टांतों में से भी हमारे लिये सर्वाधिक यादगार घटना ब्राइटन नगर की है। इंग्लैण्ड के इस महानगर में भारत के 35 पत्रकारों को लेकर मैं 1985 में गया था। उन्हें वह होटल दिखाया जहां एक वर्ष (12 अक्टूबर 1984) प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर अपने पार्टी अधिवेशन में पधारीं थीं। आयरिश क्रान्तिकारियों ने उनके होटल कक्ष में बम फोड़ा किन्तु प्रधानमंत्री मरीं नहीं। भाग्य था। इसी होटल में एक वर्ष पूर्व अपने पुत्र सुदेव, पुत्री विनीता तथा पत्नी डा. सुधा राव के साथ मैं रहा था। तब ब्रिटिश नेशनल यूनियन आफ जर्नालिस्ट (एनयूजे) के अध्यक्ष जार्ज फिंडले ने हमें आमंत्रित किया था। उनकी यूनियन का सम्मेलन था। मैंने मेजबानों से कहा कि मेरी दिली इच्छा थी कि आयरिश स्वाधीनता सेनानियों ने काश अपना लक्ष्य हासिल कर लिया होता। मार्गरेट थेंचर भी इंदिरा गांधी की भांति लौह महिला कही जातीं थीं। आयरिश जंगे आजादी के दमन में उनकी किरदारी वैसी ही थी जो जलियांवाला बाग में जालिम जनरल डायर की।

ब्रिटिश अहंकार तथा हठधर्म का शिकार सारे उपनिवेशों की जनता रही है। मसलन हम सपरिवार जब सितम्बर 1984 में हम मास्को से लंदन के हीथरो हवाईअड्डे पहुंचे तो वहां आव्रजन अधिकारियों ने हमें दो घंटे रोके रखा। सिर्फ इसलिये कि हम अश्वेत है। हमारे पास वीजा नहीं था। मैंने इन गोरों को समझाया कि त​बतक कामनवेल्थ नागरिकों हेतु वीजा नियम लागू नहीं होता था। कई वर्षों बाद आतंक के कारण यह नियम थोपा गया। ब्रिटिश जर्नालिस्ट्स यूनियन के पदाधिकारी भी परेशान हो गये। तब मैंने उन गोरे अफसरों से क्रोधित होकर कहा : ” तुम लोग मेरे भारत में ढाई सौ साल बिना वीजा के रहे। आज मुझसे वीजा मांग रहे हो ?” उनकी खोपड़ी में बात चुभ गयी। हमें प्रवेश करने दिया गया। यह है उपनिवेशवादी मानसिकतावाले जिन्होंने मेरे सम्पादक पिता स्व. श्री के. रामा राव को 1942 में लखनऊ जेल में कैद रखा था।

के विक्रम राव
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

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