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विश्व साइकिल दिवस आज, जानिए साइकिल से जुड़ी कुछ राजनीति

नई दिल्लीः आज पूरा देश विश्व साइकिल दिवस मना रहा है। हम आज आपको साइकिल से जुड़ी कुछ राजनीति के बारे में बताएंगे। याद रहे, UP में साइकिल सिर्फ एक वाहन नहीं है, बल्कि सियासत की एक सीढ़ी भी है। यहां कई ऐसे नेता हुए है जिन्होंने साइकिल का हैंडल थामा और सत्ता के शीर्ष स्थान पर पहुंच गए।

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विश्व साइकिल दिवस के मौके पर हम सबसे पहले मुलायम सिंह यादव से जुड़ा एक किस्सा बताएंगे, फिर कांशीराम और उसके बाद अटल बिहारी बाजपेई का। इसके साथ ही एक ऐसे प्रधानमंत्री की कहानी बताएंगे जो साइकिल से संसद तक जाते हैं। जानकारी के मुताबिक समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल का कहना है कि 1993 के विधानसभा चुनाव के लिए जब सिंबल चुनने की बात आई तो नेताजी और बाकी वरिष्ठ नेताओं ने विकल्पों में से साइकिल को चुना। उस समय साइकिल किसानों, गरीबों, मजदूरों और मिडिल क्लास की सवारी हुआ करती थी। साइकिल चलाना आसान और सस्ता था। वहीं स्वास्थ्य के लिए भी साइकिल चलाना बहुत अधिक लाभदायक है। इसी वजह से सपा ने साइकिल को ही अपने सिंबल के लिए चुना ।

आपको बता दें कि 3 वार सविधायक बनने के बाद भी सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव साइकिल से चलते थे। वहीं संस्थापक सदस्यों में से उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण सचान ने कहा कि तीन बार विधायक बनने के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने 1977 तक साइकिल की सवारी की। सचान के मुताबिक बाद में पार्टी के किसी अन्य नेता ने पैसा इकठ्ठा किया और इनके लिए एक कार खरीदी। वहीं उनका कहना है कि साइकिल का चिन्ह गरीबों, दलितों, किसानों और मजदूर वर्गों को दर्शाता है। जिस तरह से समाज और समाजवादी चलते रहते है, उसके दो पहिये खड़े होते हैं, जबकि हैंडल बैलेंस करने के लिए होता है। आपको बता दें कि मुलायम सिंह यादव 1960 में उत्तर प्रदेश के इटावा में जब कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें रोजाना करीब 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज जाना पड़ता था। जानकारी के मुताबिक मुलायम के घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वह एक साइकिल खरीद पाते। वहीं पैसों की कमी के चलते वह मन मार कर रह जाते थे और कॉलेज जाने के लिए संघर्ष करते थे।

बता दें कि आत्मकथा पर आधारित फ्रैंक हुजूर की किताब द सोशलिस्ट के मुताबिक मुलायम अपने बचपन के दोस्त रामरूप के साथ एक दिन किसी काम से उजयानी गांव पहुंचे। दोपहर का समय था, गांव की बैठक में कुछ लोग ताश खेल रहे थे। मुलायम और रामरूप भी साथ में ताश खेलने लग गए। वहीं गांव गिंजा के आलू कारोबारी लाला रामप्रकाश गुप्ता भी ताश खेल रहे थे। गुप्ता जी ने खेल में शर्त रख दी कि जो भी जीतेगा उसे रॉबिनहुड साइकिल दी जाएगी। मुलायम के लिए गुप्ता की शर्त उनका सपना पूरा करने का जरिया बनी। मुलायम ने बाजी जीती और इसी के साथ रॉबिनहुड साइकिल भी। मुलायम साइकिल पर ऐसे सवार हुए कि जब 4 नवंबर 1992 को समाजवादी पार्टी बनी तो उन्होंने पार्टी का चुनाव निशान भी साइकिल ही रखा।

जानकारी के अनुसार बसपा के संस्थापक कांशीराम अपनी साइकिल से ही पूरे हिन्दी प्रदेश में प्रचार प्रसार का काम किया करते थे। कभी उत्तराखंड तो कभी मध्य प्रदेश साइकिल से ही चले जाते थे। बता दें कि दलितों को एकजुट करने के लिए उन्होंने कई साइकिल रैलियां की थी। कांशीराम के दोस्त मनोहर आटे बताते हैं, “उन दिनों महाराष्ट्र सरकार मुख्यालय के सामने अंबेडकर की मूर्ति हुआ करती थी। अक्सर कांशीराम वहां बैठकर बहुजन समाज के बारे में सोचते और गहन विचार किया करते थे। वहीं सामने एक ईरानी होटल था जहां वो अपनी साइकिल खड़ी करते थे।” आपको बता दें कि एक बार उनकी साइकिल चोरी हो गई। वहीं कांशीराम को साइकिल से इतना लगाव था कि चोरी होने की घटना से वो भावुक हो गए थे और रोने लगे थे। इसके पीछे की घटना यह कि, एक बार रात 11 बजे तक कांशीराम अंबेडकर की मूर्ति के नीचे बैठकर अपने दोस्त के साथ चर्चा कर रहे थे। वहीं उन्होंने देखा की ईरानी होटल बंद हो रहा है, लेकिन उनकी साइकिल जहां उन्होंने खड़ी की थी वहां से गायब है। साइकिल को ढूंढते-ढूंढते कांशीराम की आंखों में आंसू आ गए थे। बहुत ढूंढने के बाद भी जब साइकिल नहीं मिली तब उन्होंने होटल के वेटर को डांटते हुए अपनी साइकिल के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि अगर साइकिल नहीं मिली तो वो पुलिस कम्प्लेन करेंगे। पुलिस का नाम सुनते ही वेटर डर गया और उसने साइकिल लौटा दी। चोरी हुई साइकिल मिलने के बाद कांशीराम ने वेटर को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।

आपको बता दें कि मथुरा के बिसावर के रहने वाले 90 साल के पूर्व विधायक चौधरी बृजेंद्र सिंह बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी 1956 में जब यहां चुनाव प्रचार करने आए थे। तब वे मथुरा में सभा करने के बाद साइकिल से ही प्रचार करने सादाबाद के पटलोनी गांव पहुंचे थे। अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी कांति मिश्रा ने बताया कि प्रधानमंत्री बनने से पहले वे अक्सर मध्य प्रदेश आया करते थे। वह मेरे बेटे नितिन की साइकिल लेकर उसी से अपने मित्रों से मुलाकात करने 30 से 40 किलोमीटर उनके घर चले जाते थे।

जानकारी के अनुसार नीदरलैंड एक ऐसा देश है, जहां के प्रधानमंत्री मार्क रूट भी साइकिल से ही संसद जाते हैं। यहां सड़कों पर आपको साइकिलें ज्यादा दिखाई देंगी। साइकिल के लिए खास सड़कें और नियम हैं। राजधानी एम्स्टर्डम में साइक्लिस्ट ही शासन करते हैं। साइकिल एम्स्टर्डम में इतनी पॉपुलर है कि नीदरलैंड के ज्यादातर सांसद साइकिल से ही संसद जाते हैं। जानकारी के मुताबिक नीदरलैंड में 22,000 मील की रिंग रोड हैं। वहीं इस देश में लोग लंबी दूरी भी साइकिलों से ही तय कर लेते हैं। एम्स्टर्डम और अन्य सभी डच शहरों में “साइकिल सिविल सेवक” नामित किए गए हैं, जो नेटवर्क को बनाए रखने और सुधारने के लिए काम करते हैं।

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