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पूर्व पीएम चंद्रशेखर की पुण्यतिथि आज, जानिए ‘दाढ़ी’ का राजनीतिक इतिहास?

नई दिल्लीः शक्सियत जब मुहावरे और लोक किमदंती के खाँचे में चली जाती है। तो उसके लिए ‘जी’ जैसे आदर सूचक संबोधन छोटे हो जाते हैं। क्यों कि ‘जी’ शब्द का दायरा बस उस व्यक्ति के व्यक्तित्व तक ही महदूद रह जाता है। यही व्यक्ति जब खुद ‘काल खंड’ और ‘परिस्थिति’ का प्रतीक बन जाता है। तब जी लगाना बेमानी लगने लगता है। चंद्रशेखर  जी से दूर जा चुके हैं। जानकारी के अनुसार चंद्र्शेखर का एक नाम और था ‘दाढ़ी’। बता दें कि यह संबोधन वे लोग करते थे, जो उनके अंतरंग थे, परोक्ष में हमारे जैसे लोग करते थे, जो उनके नज़दीक तो थे लेकिन उम्र और अनुभव के फ़ासले थे। बता दें कि इस दाढ़ी में अपना पन और लगाव ज़्यादा है। अरनेस्टो ग्येवारा को ‘चे’ नाम से गोहराया जाता है।

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दाढ़ी का राजनीतिक इतिहास? क्या लिखोगे?

यस पी सिंह (सुरेंद्र प्रताप सिंह, रविवार के सम्पादक रहे, बाद में आज तक के शिलान्यासी बने) फिर वहीं अपनी चिर परचित आदत के अनुसार छेड़खानी शुरू किए। जिसको लेकर हमने कहा अमृता प्रीतम को ख़ुशवंत सिंह ने अगर यह शब्द न पकड़ाया होता तो, आपके सवाल का जवाब हम वही देते, जो अमृता प्रीतम ने ख़ुशवंत से पूछ था। अपनी आत्म कथा किताब का नाम क्या दूँ? सरदार ने हँस कर नाम सुझाया था। तुम्हारी आत्म कथा में है ही क्या बस एक अदद मोहब्बत! नाम रखो ‘रसीदी टिकट’

यह जब से छाप रहा है, बस वही एक साइज़। तो चंद्र्शेखर का राजनीतिक परिचय रसीदी टिकट भर है? बिल्कुल! बलिया से उठे, समाजवादी आंदोलन का हिस्सा बने और सीधे एक दिन प्रधान मंत्री! और कोई ओहदा?  जनता पार्टी के अध्यक्ष थे? जनता पार्टी, दल नहीं था, आंदोलन का पड़ाव था।

सियासत में बहुत कम ऐसे लोग मिलते हैं जो ओहदे को ठोकर मार कर, रचनात्मक बदलाव और समाज की बेहतरी के लिए चल रहे कदम को मज़बूत करते हैं, ये वो लोग होते हैं जो ओहदा और विचार में, विचार को चुनते हैं। धारा के विरुद्ध खड़े होने की इनकी आदत, इन्हें वर्तमान में हासिये पर भले ही डाल दे, अभाव और तिजारत में लाचार कर दे। लेकिन तवारीख इन्हें जगह देती है।

भारत का समाज विशेषकर शिक्षण संस्थाएँ बौनी बन चुकी हैं। वरना यह शोध का विषय है क़ि, सियासत में दाढ़ी बार बार अपने ही ख़िलाफ़ क्यों खड़ा हो जाता है?

आपको बता दें कि दाढ़ी इलाहाबाद विश्विद्यालय के छात्र रहे। आचार्य नरेंद्र देव की सोहबत में आए। आचार्य नरेंद्र देव काशी विश्वविद्यालय आ गये कुलपति होकर। चंद्र्शेखर बनारस आए। आचार्य जी के सानिध्य में शोध करना चाहते थे। आचार्य ने चंद्र्शेखर में पता नही क्या देखा क़ि बोले शोध में समय मत गँवाओ, राजनीति में जाओ, समाजवादी राजनीति करो। वहीं इलाहाबाद समाजवादी राजनीति का केंद्र बन चुका था।

बता दें कि दाढ़ी मज़बूती से जुड़े। इस मज़बूती का ताप पंडित नेहरु तक पहुँचा, एक छात्र से पंडित नेहरु ने कहा कांग्रेस में आ जाओ। कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन के रिश्ते से दाढ़ी बखूबी वाक़िफ़ रहे क़ि दोनो में ग़ज़ब का रागात्मक लगाव है। समाजवादी आंदोलन के शीर्ष को पंडित नेहरु वापस कांग्रेस में बुला रहे हैं, डॉक्टर लोहिया, जे पीं,  अच्युत पटवर्धन इनके ख़तों को देखिए, रोना आता है गर उस समय समाजवादी पंडित नेहरु के आग्रह को मान गये होते तो हम आज जहां खड़े हैं यहाँ न होते। लेकिन इतिहास में अगर मगर नहीं होता।

जानकारी के मुताबिक 1954 में जेपी, पंडित नेहरु को 14 सूत्रिय प्रोग्राम भेजते हैं।  यही शर्तनामा है। अगर कांग्रेस इसे मान लेती है, तो हम समाजवादी कांग्रेस में लौटने को तैयार हैं। वहीं पंडित नेहरु उस शर्त से सहमत होते हुए भी, कार्य समिति में नहीं लिए जा सके, क्यों कि वो जानते थे कि पार्टी टूट जायगी। चुनांचे वह ख़त जसका तस रख लिया गया न हाँ न ना।

क्या था इस ख़त में?

जिसको लेकर 1969 में पंडित नेहरु की बेटी इंदिरागांधी ने नेकिराम नगर कांग्रेस में रखा, और कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकला दिया। जानकारी के अनुसार चंद्र्शेखर इसी निकाले गये इंदिरा गांधी के साथ बाहर आए। इतिहास में दाढ़ी ने फिर क़ब्ज़ा जमाया इस पन्ने पर लिखा है, यंग टर्क। आज हम इसी यंग टर्क को सल्यूट करने यहाँ खड़े हैं। सादर नमन यंग मैन

साभार- चंचल, बीएचयू

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