Hindi English Marathi Gujarati Punjabi Urdu
Hindi English Marathi Gujarati Punjabi Urdu

कासगंजः हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है कादरवाड़ी गांव, मुस्लिम समुदाय के लोग बनाते हैं हिंदुओ के लिए कांच की गंगाजली

कासगंजः उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का कादरवाडी गांव हिंदू, मुस्लिम एकता का प्रतीक है। जानकारी के अनुसार यहां हिंदुओं की सबसे बड़ी कांवड़ यात्रा बिना मुस्लिम समुदाय के सहयोग के पूरी ही नहीं हो सकती। भले ही कांवड़िए सावन शुरू होने से कुछ दिन पहले यात्रा की तैयारी करते हों। लेकिन मुस्लिम समाज के लोग इस यात्रा के लिए महीनों पहले से तैयारी करते हैं। बता दें मुस्लिम समाज के द्वारा बनाई गई कांच की शीशी में कांवड़िए गंगा जल भरते हैं, और बम बम भोले के जयघोष के साथ रवाना होते हैं। जिससे मुस्लिम समाज के लोगों काम मिलता है, और हिंदुओ के कावंड़ मेले से अच्छी कमाई होती है।

- Advertisement -

आपको बता दें कि राजनीतिक मंचों से भले ही हिंदू-मुस्लिम नेता एक दूसरे के खिलाफ और अपनी कट्टरता को लेकर बड़े-बड़े दावे करते हों, लेकिन कासगंज जिले की सोरों धर्मनगरी में कावड़ मेले में हिंदू मुस्लिम एकता की जो मिसाल देखने को मिलती है, वह इन नेताओं की जुबान बंद करने के लिए काफी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि मुस्लिम-हिन्दू यहां एकता का संदेश देते रहे हैं। गंगा को अपनी कमाई का श्रोत बनाकर प्रतिवर्ष लाखों रुपये जुटा लेते हैं।

जानकारी के मुताबिक सोरों विकास खण्ड कादरवाड़ी में हिन्दू परंपरा के तहत लगने वाले श्रावण मास में कांवड़ मेले में कारीगर मुस्लिम हैं, और खरीदारी करने वाले ज्यादातर हिंदू हैं। यहां कांवड़ के लिए कांच की शीशी यानी कांच की गंगाजली मुस्लिम परिवार बनाकर बेचते हैं। उन्हें यह काम विरासत में मिला है। जैसे ही कांवड़ यात्रा शुरू होती है, वैसे ही कई मुस्लिम परिवार हिन्दू भाइयों के लिए गंगाजली बनाते हैं। इस गंगाजली को कांवड में जल भरकर ले लाते हैं। मुस्लिम मजहब के लोगों ने बताया कि सैकडो वर्षो से गांव में गंगाजल भरने के लिए कांच की शीशी तैयार होती रही हैं।यह देश में कहीं नहीं तैयार की जाती है।

बता दें कावंड़ मेले में मुस्लिम समाज के कई परिवार कांच की शीशी तैयार कर एक वर्ष तक अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। वहीं गंगा मैया सभी का बेड़ा पार करती हैं। जिससे उनके परिवार का पालन पोषण चलता है, लेकिन बच्चों की पढाई नहीं हो पाती है। वहीं मुस्लिम कारीगरों को आज तक सरकार द्वारा कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई गई है।

आपको बता दें कि इरफान हुसैन सिद्दीकी कांच के गंगा जली के कारीगर बताते हैं कि हम गंगा जी पर कावंड लेने आते हैं। भोले बाबा के भक्त उनके लिए कांच की शीशी तैयार करते हैं। उनके लिए बनाते हैं। हमें सरकार से कोई सुविधा नहीं मिलती है। वहीं एक साल में दो बार काम चलता है। शार्दियों में तीन महीना गर्मियों में दो महीना पूरे आँल वर्ल्ड में कांच की शीशी कहीं भी तैयार नहीं होती सिर्फ कादरवाडी गांव में ही बनाई जाती हैं। यहां गंगा मैया की कृपा है। जिससे हमे रोजगार मिलता है।

वहीं मध्य प्रदेश के मुरैना से कावड़ भरने लहरा गंगा घाट आए कावंडिये नरेंद्र रावत ने बताते हैं हम कावंड भरने आते हैं। यहां से कावंड़ भरकर ले जाते हैं और अपने भोले बाबा पर चढाते हैं। जिससे हमारी मनोकामना पूर्ण होती है। जानकारी के मुताबिक वह आठ वर्षों से कावड़ भरने के लिए यहां आते हैं। और बताते हैं यहां से हमारा गांव साढे तीन सौ किलोमीटर दूर है।

विज्ञापन बॉक्स (विज्ञापन देने के लिए संपर्क करें)

The specified carousel is trashed.

इसे भी पढे ----

वोट जरूर करें

क्या आपको लगता है कि बॉलीवुड ड्रग्स केस में और भी कई बड़े सितारों के नाम सामने आएंगे?

View Results

Loading ... Loading ...

आज का राशिफल देखें