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तालिबानी खौफ : नजीबुल्लाह का भयानक हश्र देख भागे अशरफ गनी, जानें क्या हुआ था?

लखनऊ

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अफगानिस्तान (Afghanistan) पर आतंकवादी संगठन तालिबान (Taliban) पर कब्जे के साथ देश को इस्लामी अमीरात घोषित कर दिया गया है। अफगानिस्तान पर पूरी तरह से कब्जा करने से पहले तालिबान ने ऐलान किया था कि वो अफगानी लोगों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुचायेंगे और उनकी रक्षा करेंगे। लेकिन, वर्तमान की परिस्तिथियाँ बद से बदतर होती ही दिख रही हैं। काबुल एयरपोर्ट पर बेकाबू हुए हालातों को देखते हुए यह साफ़ पता चल रहा है कि लोग किस क़दर तालिबान से डरे हुए हैं और उनसे अपनी जान बचाकर मुल्क छोड़ कर भाग जाना चाहते हैं।

फोटो : इंटरनेट

पूरी दुनिया भर में आज अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) के देश छोड़कर भागने को लेकर काफी मजाक बनाया जा रहा है और उनकी आलोचना हो रही है। मिली ख़बरों के अनुसार, गनी एक हेलीकॉप्टर और चार कारों में ढेर सारा पैसा कैश भरकर भागे हैं।

वहीँ, देश छोड़ने के समय गनी ने अपने बयान में कहा था कि वह किसी भी प्रकार की हिंसा या खून खराबा नहीं चाहते थे, इसीलिए वह देश छोड कर चले गए। लेकिन, अमेरिका से लेकर पूरी दुनिया के नागरिक भी यही सवाल कर रहे हैं कि कहां हैं राष्ट्रपति गनी?’ शायद लोग भूल गए हैं या उन्हें पता नहीं है कि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह (Mohammad Najibullah) का क्या हाल किया था तालिबानी लड़ाकों ने।

फोटो : इंटरनेट

चार सालों तक कंपाउंड में छिपे रहे

1989 में अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेना हटने के साथ अफगान राष्ट्रपति नजीबुल्लाह की पकड़ देश के अन्य जगहों पर कमजोर पड़ने लगी थी। 1992 में तालिबान के बढ़ते आतंक को देखकर राष्ट्रपति नजीबुल्लाह ने इस्तीफा देने की सोची। नजीबुल्लाह ने कहा था कि वह जल्द ही सत्ता छोड़ देंगे। इस दौरान उन्होंने देश छोड़ने की भी कोशिश की, लेकिन तालिबान तब तक कुछ और ही मन बना चुका था।  हालात ये थे कि 1992 से लेकर अपनी मौत के दिन तक नजीबुल्लाह को संयुक्त राष्ट्र के कंपाउंड में अपनी जिंदगी बितानी पड़ी।

फोटो : इंटरनेट

कम्युनिस्ट विचारधारा वाले मुसलमान थे

नजीबुल्लाह शुरुआती दिनों से ही कम्युनिस्ट विचारधारा वाली पार्टी पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान से जुड़ गए थे। तालिबान की नजर में नजीबुल्लाह एक ऐसा कम्युनिस्ट मुसलमान था, जो अल्लाह में विश्वास नहीं रखता था। इसी बात से तालिबान की नफरत का अंदाजा लगाना कोई बड़ी बात नहीं है। नजीबुल्लाह की मौत से पहले संयुक्त राष्ट्र की तरफ से उनको वहाँ से बाहर निकालने की कोशिशें भी हुईं। लेकिन, तालिबान से सीधे दुश्मनी मोल लेने से बचने के लिए किसी भी अन्य देश ने उन्हें अपने यहां शरण देने से मना कर दिया। इस दौरान नजीबुल्लाह को अपने ही कई करीबियों के विश्वासघात भी मिला। भारत ने उस मुश्किल दौर में भी नजीबुल्लाह की पत्नी और बेटियों को शरण दी थी।

नजीबुल्लाह का बचना नामुमकिन

फोटो : इंटरनेट

साल 1996 महीना सितंबर, काबुल पर तालिबान की जीत के साथ ही यह पक्का हो गया था कि अब नजीबुल्लाह का बचना नामुमकिन है। तालिबानी लड़ाके अपने पूरे काफिले के साथ संयुक्त राष्ट्र के उस कंपाउंड में घुस गए और नजीबुल्लाह और उनके भाई को घसीटकर बाहर ले आए। नजीबुल्लाह और उनके भाई को बहुत बुरी तरफ मारा पीटा गया और उन्हें प्रताड़ित किया गया। तालिबानी आतंकियों ने उन्हें पीट-पीटकर उनकी जान ले ली। उनके शवों के साथ निर्ममता का स्तर पार करने की हद तक बदसलूकियां की गईं। ख़बरों के अनुसार, इतने पर भी तालिबानी आतंकियों का मन नहीं भरा, तो उन्होंने नजीबुल्लाह के शव को एक ट्रक के पीछे बांध कर सड़कों पर घसीटा गया। आखिर में उनके शव को काबुल के आरियाना चौक पर एक लैंप पोस्ट पर टांग दिया गया। उसी लैंप पोस्ट पर नजीबुल्लाह के भाई का भी शव लटका दिया गया। तालिबान ने नजीबुल्लाह के साथ और उनकी मृत्यु होने के बाद उनके शव के साथ की गयी बदसलूकी और बर्बरता से वहाँ के लोगों के दिलोंदिमाग में अपने प्रति इतना खौफ भर दिया के आजतक लोग तालिबान के नाम से कांपते हैं।

फोटो : इंटरनेट

इस बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता कि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ने देश को बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की। ये बात तमाम जगहों पर सामने आई कि तालिबान के तेजी से काबुल की ओर बढ़ने के समय उन्होंने पड़ोसी प्रांतों का दौरा किया। मजार-ए-शरीफ के बूढ़ा शेरकहे जाने वाले मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम से भी मुलाकात की। लेकिन, इन सभी लोगों ने तालिबान के आगे घुटने टेक दिए। मजबूरन अशरफ गनी भी अपनी जान बचा के मुल्क को छोड़ना ही बेहतर समझा।

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