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बिग बी ने साझा किया अफगानिस्तान में बिताए अपने दिनों का अनुभव !! हो रहा ट्रेंड

लखनऊ

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अफगानिस्तान पर जब से तालिबान ने अपना कब्ज़ा जमा लिया है, तब से वहाँ के हालात बहुत ही ज़्यादा खराब हो गए हैं। भयानक तस्वीरें और खबरें हर वक़्त देखने और सुनने को मिल रही हैं। इन्हीं सब के बीच अफगानिस्तान के पर लिखा गया अमिताभ बच्चन का यह आठ वर्ष पुराना पोस्ट एक बार फिर से ट्रेंड करने लगा है। यह पोस्ट उन्होंने 26 अगस्त, 2013 में सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर साझा किया था, जिसमें उन्होंने अपनी फिल्म ‘खुदा गवाह’ (1992) की शूटिंग के दौरान अफगानिस्तान में रहने का अनुभव बता रहे हैं।

फोटो : इंटरनेट

इस पोस्ट में बच्चन बताते हैं कि ‘खुदा गवाह’ को मनोज देसाई नाम के प्रोड्यूसर बना रहे थे। इस फिल्म में पहले उनका गेस्ट रोल होना था, जिसकी शूटिंग में 6 दिन लगने थे. मगर बाद में उन्हें इस मूवी में हीरो का रोल मिल गया। बच्चन बताते हैं कि यह फिल्म उनके लिए इसलिए ख़ास है क्यूंकि इसकी शूटिंग के दौरान उन्हें अफगानिस्तान की यात्रा करने का मौका मिला था. वो भी उस वक़्त, जब वहां के हालात बड़े खराब थे।

फोटो : इंटरनेट

उन्होंने अपनी पोस्ट में यह लिखा था –

फोटो : फेसबुक

“तब सोवियत सत्ता नजिबुल्लाह अहमदज़ई के हाथ सौंप अफगानिस्तान छोड़कर गए थे। नजीब हिंदी फिल्मों के पक्के वाले फैन थे। जब हम वहां शूट करने गए, तो उन्होंने मुझसे मिलने की इच्छा जताई। साथ ही हमें बिल्कुल रॉयल ट्रीटमेंट दिया गया। मज़ार-ए-शरीफ में हमारी खातिरदारी बिल्कुल VVIP गेस्ट्स की तरह हुई। इसके बाद हमें हथियारबंद एस्कॉर्ट्स के साथ हवाई जहाज से उस खूबसूरत देश का हर कोना दिखाया गया। लोकल लोगों ने भी परंपरागत तरीके से पूरी गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। हमें होटल में नहीं रुकने दिया गया। एक परिवार को उसके घर से निकालकर एक छोटे घर में शिफ्ट कर दिया गया, ताकि उनके घर में हम रुक सकें।

सुरक्षा कारणों से वहां की हर सड़क पर ढेरों टैंक और सिपाही खड़े रहते थे। बावजूद इसके वो मेरी लाइफ की सबसे यादगार ट्रिप है। मिलिट्री वॉर लॉर्ड्स ने हमारी यूनिट यानी डैनी, बिल्लू और डायरेक्टर मुकुल आनंद को चॉपर में बिठाकर वहां की वादियों के दीदार करवाए। हमनें खसखस के फूलों की वजह से पहाड़ों को बैंगनी से गुलाबी और लाल रंग में तब्दील होते देखा। जब उस खूबसूरत लोकेशन पर हमारा हेलिकॉप्टर लैंड हुआ, तो ऐसा लगा मानों समय ठहर सा गया हो. वो कभी न भूल सकने वाली यात्रा थी।

हम दूर से पुरानी किलेनुमा आकृतियां देख पा रहे थे। उन इलाकों में मेहमानों के पांव को जमीन पर नहीं रखने दिए जाने की परंपरा है। इसलिए हमें गोद में उठाकर उन किलों में ले जाया गया। उसके बाद में एक मैदान में पहुंचे, जहां बुजकाशी टूर्नामेंट चल रहा था। वहां ढेरों रंगीन तंबू लगे हुए थे। उन लोगों ने आग्रह किया कि हम चारों लोग वहीं पर रात गुज़ारें। इसके लिए उन किलों को खाली करवाया गया। हम वहां रात भर रुके और खूब खाया-पिया। हमें ऐसा लग रहा था, जैसे हम किसी फेयरी टेल का हिस्सा हों।

काबुल से वापस इंडिया लौटने से ठीक पहले वाली रात नजीब ने हमें राष्ट्रपति आवास में बुलाया। हमें तोहफों से लाद दिया गया। हमें ऑर्डर ऑफ अफगानिस्तान से नवाज़ा गया। उस रात नजीब के चाचा ने हमें एक भारतीय शास्त्रीय राग सुनाया। मुझे नहीं पता अब वो लोग कहां हैं. मैं हमेशा सोचता हूं कि अब वो लोग कहां होंगे।”

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