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काफी पुरानी थी अतीक अहमद और उमेश पाल की दुश्मनी, 17 साल पहले कराया था अपहरण

umesh pal murder case ;1978 में पहली हत्या करने के बाद अतीक ने जिले की आपराधिक दुनिया में वह मुकाम हासिल कर लिया था, जो उससे पहले किसी को नसीब नहीं हुआ था। जरायम की दुनिया में उस वक्त चांद बाबा छाया हुआ था। लेकिन अब अतीक भी जरायम की दुनिया में कदम रख चूका था !

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इलाहाबाद की पश्चिमी सीट पर 2004 में हुए उपचुनाव में बसपा पार्टी से राजू पाल ने जीत हासिल की थी. अतीक का भाई अशरफ दूसरे नंबर पर आया था यानी चुनाव हार गया था. इसके बाद राजू पाल की हत्या हुई फिर उपचुनाव हुआ अतीक का भाई अशरफ विधायक बन गया. राजू पाल और अशरफ दोनों ही एक-एक बार विधायक बने. राजू पाल भी अपराधी था और अशरफ भी. लेकिन 2004 के उपचुनाव जो तीसरे नंबर पर आया था उसे अब पूरा प्रदेश जानता है. राजू पाल ने जब चुनाव जीता था

 

 

तब तीसरे नंबर पर आए थे यूपी के वर्तमान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य. मौर्य को महज 6 हजार वोट मिले थे. लगभग 20 साल बाद अब ऊपर के दोनों नंबर वाले लोग खत्म हो चुके हैं. केशव मौर्य यूपी के डिप्टी सीएम हैं और दिग्गज नेता बन चुके हैं.

 

प्रयागराज जिले की जरायम की दुनिया में अतीक ऐसा नाम था जो वक्त के साथ सफेदपोश हो रहा था। 1989 में विधायक बनने के बाद ही अतीक सूबे के बड़े नेताओं के संपर्क में आ गया था। शहर पश्चिम सीट से उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं था। भले ही वह निर्दलीय लड़े, सपा से लड़े या फिर अपना दल से। पार्टियों का सिर्फ नाम होता था। सिक्का चलता था अतीक अहमद का। शहर पश्चिम से वह कई बार विधायक रहा था।

 

इस बीच उसने अपराध का तरीका बिल्कुल बदल दिया था। अब वह किसी भी मामले में सीधे शामिल नहीं होता था। अपने गुर्गों से वह बड़ी से बड़ी वारदात को अंजाम दिला देता था। उसके खिलाफ बोलने वाला कोई नहीं था। यहां तक कि एफआईआर में उसका नाम लिखाने में लोगों की हालत खराब हो जाती थी। इस दौरान भी उसने बड़ी बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया लेकिन हर बार बच निकला।

 

विधायक राजू पाल को उतारा गया था मौत के घाट

2005 में जब बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड को अंजाम दिया गया तो अतीक और उसके भाई अशरफ को नामजद किया गया। इसके साथ ही अतीक के जितने शूटर और करीबी थे, सभी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई गई। जो लोग सामने नहीं आए थे, उन्हेंं चार्जशीट में नामजद कर दिया गया था। एक तरह से देखा जाय तो अतीक के अंत की शुरूआत 25 जनवरी 2005 को राजू पाल की हत्या के दिन हो गई थी। इसी मामले में गवाह उमेश पाल का 2006 में अपहरण कर लिया गया था।

 

उमेश पाल की 24 फरवरी को की गई थी हत्या

उमेश पाल अपहरणकांड में ही अतीक, उसके वकील शौलत हनीफ खान और दिनेश पासी को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। 24 फरवरी को उमेश पाल की हत्या कर दी गई थी। इसी मामले में अतीक और अशरफ को पुलिस कस्टडी रिमांड पर लिया गया था। बृहस्पतिवार को तीन हमलावरों ने अतीक और अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी। अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को महज 18 सेकेंड के भीतर मौत की नींद सुला दिया गया। शूटरों ने दोनों के पुलिस जीप से उतरने के 32वें सेेकंड में पहली गोली दागी। इसके बाद लगातार कुल 20 गोलियां दागीं और 50वें सेकंड तक माफिया भाइयों का काम तमाम हो चुका था। अतीक व अशरफ को 10.36 मिनट पर लेकर पुलिस कॉल्विन अस्पताल के गेट पर पहुंची। 10.37 मिनट और 12 सेकंड पर दोनों पुलिस जीप से नीचे उतर चुके थे। इसके बाद पुलिस उन्हें लेकर अस्पताल के भीतर जाने लगी।

 

ठीक 32वें सेकंड यानी 10.37 मिनट और 44 सेकंड पर शूटरों ने पहली गोली दागी। इसके बाद ताबड़तोड़ 20 राउंड फायर किये अतीक और अशरफ को निशाना बनाकर किए गए। 18 सेकंड में वारदात को अंजाम देकर शूटर अपने मकसद में कामयाब हो चुके थे। 10.38 मिनट और 02 सेकेंड पर अतीक और अशरफ दोनों लहूलुहान होकर जमीन पर लुढ़के पड़े थे और उनके शरीर बेजान हो चुके थे। हत्त्या के बाद सूटरो ने खुद को सरेंडर कर दिया फ़िलहाल अभी पुलिस जांच कर रही है इसके साथ ही 40 साल के आतंक का खात्मा हो भी गया गया।

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