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आखिर क्यों होती है भारतीय मुद्रा पर गांधी जी की फोटो, जानें इसका राज

लखनऊ

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महात्मा गांधी से जुड़ी कई बातें आप जानते भी होंगे, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर रोज काम में आने वाली भारतीय मुद्रा पर महात्मा गांधी की ही तस्वीर क्यों छपी होती है और नोट पर छपी फोटो कहां से ली गई है। आइए जानते हैं भारतीय नोट पर छपी गांधी जी की तस्वीर से जुड़ी कई दिलचस्प बातें।

फोटो : इंटरनेट

हमारा देश एकता वाला देश है और हम बापू को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में मानते हैं। राष्ट्रपिता की उपाधि हासिल कर चुके गांधी उस वक्त राष्ट्र का चेहरा थे, इसलिए उनके नाम पर फैसला लिया गया। क्यूंकि अन्य सेनानियों के नाम पर क्षेत्रीय विवाद हो सकता था। इसलिए ही नोटों पर छापने के लिए गाँधी जी की तस्वीर को चुना गया। यह तस्वीर उस समय खींची गई, जब गांधीजी ने तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात की थी। इसी तस्वीर से गांधीजी का चेहरा पोट्रेट के रूप में भारतीय नोटों पर अंकित किया गया।

वर्तमान में भारतीय नोटों पर गांधीजी की तस्वीर छपी होती है। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। महात्मा गांधी से पहले भी भारत के नोटों पर किसी और की तस्वीरें हुआ करती थीं। बाद में महात्मा गांधी की तस्वीर को सभी भारतीय नोटों पर प्रकाशित करने का फैसला लिया गया था।

1510 में पुर्तगाली आए और उन्होंने गोवा पर कब्जा कर लिया। उन्होंने रूपिया करेंसी चलाई। गोवा में पुर्तगाल इंडिया के नाम से नोट छापते थे, क्योंकि आजादी के बाद भी वह पुर्तगाल के अधीन था। इन नोटों को एस्कुडो का नाम दिया गया था। गोवा के इन नोटों पर पुर्तगाल के राजा की तस्वीर हुआ करती थी, जिनका नाम था किंग जॉर्ज द्वितीय।

फोटो : इंटरनेट

इसके बाद, हैदराबाद के निजाम अपने खुद के नोटों की छपाई करवाते थे। साल 1917 से 1918 में उन्हें ऐसा करने का अधिकार प्राप्त था। वे जो नोट छापते थे, उसमें पीछे की तरफ सिक्कों की आकृति छपी होती थी।

बाद में भारतीय रिजर्व बैंक ने 1938 में पहली बार 5 रुपये का नोट जारी की थी, जिस पर King George की फोटो छपी हुई थी। इन नोटों पर सर जेम्स टेलर के साइन होते थे। आजादी के बाद पहली बार जब साल 1949 में भारत ने नोट छापे, तो उस वक्त King George की तस्वीर हटाकर भारतीय नोटों पर राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ की तस्वीर छापी गई थी।

फोटो : इंटरनेट

भारतीय रिजर्व बैंक पर लोगों का विश्वास आजादी से पहले से कायम है। आरबीआई की स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल, 1935 को हुई थी। रिजर्व बैंक का केंद्रीय कार्यालय पहले कोलकाता में स्थपित किया गया था, जिसे 1937 में स्थायी रूप से मुंबई में ट्रांसफर किया गया। केंद्रीय कार्यालय वह कार्यालय है जहां गवर्नर बैठते हैं और जहां नीतियां निर्धारित की जाती हैं। हालांकि प्रारंभ में यह निजी स्वमित्व वाला था। लेकिन 1949 में राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण अधिकार हो गया। सर जेम्स ब्रैड टेलर का भारतीय रिजर्व बैंक अध्यादेश पारित कराने में बड़ा योगदान रहा। वह आरबीआई के दूसरे गवर्नर बने थे। उन्होंने ही देश में चांदी के सिक्कों का चलन बंद करके करेंसी नोटों का प्रचलन शुरू कराया था।पहली बार इन्हीं के साइन नोट पर छपे थे। वहीं आरबीआई के पहले भारतीय गवर्नर सी॰ डी॰ देशमुख थे।

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