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तमिलनाडु के गवर्नर आरएन रवि के बयान से छिड़ी नई बहस, ‘भारत को सेक्युलरिज्म की जरूरत नहीं’

तमिलनाडु के गवर्नर आरएन रवि के हालिया बयान ने सेक्युलरिज्म पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने कहा कि भारत को सेक्युलरिज्म की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह एक यूरोपियन विचार है और भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है। उनके अनुसार, “भारत के लोगों को सेक्युलरिज्म की गलत व्याख्या से भ्रमित किया गया है, और यह भारतीय मूल्यों से मेल नहीं खाता।”

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गवर्नर के इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने इस बयान की कड़ी आलोचना की है। सीपीएम की नेता वृंदा करात ने इसे संविधान के प्रति अपमानजनक बताया और कहा कि गवर्नर का यह बयान गंभीर चिंता का विषय है।

गौरतलब है कि भारतीय संविधान में मूल रूप से सेक्युलरिज्म शब्द शामिल नहीं था। इसे 1976 में 42वें संविधान संशोधन के दौरान जोड़ा गया था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े थे। इस बदलाव के समय भी कई सवाल उठे थे, और इसे राजनीतिक लाभ के लिए किया गया एक कदम माना गया था।

इससे पहले संविधान सभा में जब संविधान का मसौदा तैयार किया जा रहा था, तो सेक्युलर शब्द को जोड़ने पर गहन बहस हुई थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. भीमराव आंबेडकर, हालांकि सेक्युलरिज्म के समर्थक थे, लेकिन इसे संविधान की प्रस्तावना में शामिल करने के खिलाफ थे।

तमिलनाडु के गवर्नर के इस बयान के बाद यह बहस और गहरी हो गई है कि क्या भारतीय समाज के मूल्यों के साथ सेक्युलरिज्म वास्तव में मेल खाता है, या यह महज एक पश्चिमी विचार है जिसे भारत में थोपा गया है।

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