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हौसले को सलाम : प्रशासन के हाथ खड़ा करने पर चंदा जमाकर ग्रामीणों ने बनाया पुल, बने मिसाल, अब नहीं होंगे हादसे

बागपत : महापुरुष कहा करते थे कि अगर हौसला बड़ा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं होता है। बुज़ुर्गों की इस कहावत को बागपत (Baghpat) के ग्रामीणों ने सच कर दिखाया है। बामनौली (Bamnouli) के ग्रामीणों ने सालों से टूटे पड़े पुल को दोबारा खड़ा कर दिया है। लेकिन यह पल उन्होंने कैसे खड़ा किया है ये चीज़ अचंभित करने वाली है। दरअसल, बामनौली के ग्रामीण सालों से प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से इस पुल को बनवाने की मांग कर रहे थे। लेकिन इसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। प्रशासन के हाथ खड़े करने के बाद ग्रामीणों ने फैसला लिया कि वह हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठेंगे। उन्होंने खुद ही इस समस्या का समाधान करने की पहल की और चंदा एकत्र कर सात दिन में पुल बनाकर खड़ा कर दिया।

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बामनौली के ग्रामीण दीपावली पर पूजन करके इस पुल को शुरू करने की तयारी में लगे हुए हैं। बता दें कि बामनौली के 100 से अधिक ग्रामीणों की करीब 500 बीघा ज़मीन कृष्णा नदी के पार है। जहां जाने के लिए ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डाल कर कृष्णा नदी (Krishna River) को पार करना पड़ता था। आवागमन के लिए कृष्णा नदी में पाइप दबाकर मिट्टी से कच्चा पुल बनाया गया लेकिन वो भी ज़्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कई बार भैंसा-बुग्गी, ट्रैक्टर-ट्रॉली ले जाते वक़्त उनका भारी वजन पल झेल नहीं पाया। इस तरह की घटनाओं में कई बार ग्रामीण भी हादसे का शिकार हो चुके हैं। बरसात के दिनों में नदी में पानी ज़्यादा होने के कारण समस्या बढ़ जाया करती थी। साथ ही बता दें कि ग्रामीणों द्धारा बनाया गया मिट्टी का पुल भी बह जाता था।

पांच लाख रुपये चंदा किया एकत्र

बामनौली के ग्रामीणों ने 15 दिन पहले पंचायत की और इसमें खुद पुल बनाने का निर्णय लिया। 500 रुपये प्रति बीघा चंदा एकत्र किया और 21 अक्तूबर को पल बनाने का काम शुरू कर दिया। बता दें कि इस पल को बनाने में पांच लाख रुपये की लागत आई है। इस पुल के बनने से ग्रामीण काफी उत्साहित हैं और अब उनकी सभी दिक्कतें भी समाप्त हो गई हैं।

सेवानिवृत इंजीनियर ने तैयार किया डिजाइन

ग्रामीण पहले इस पल को केवल तीन पिलर पर बनाने वाले थे। जो ज्यादा भार पड़ने पर टूट सकता था। जिसके बाद पीडब्ल्यूडी (PWD) की पुल निर्माण शाखा से सेवानिवृत्त इंजीनियर (retired engineer) इकबाल सिंह (Iqbal Singh) ने ग्रामीणों को रोका और इसका तकनीकी डिजाइन (design) तैयार किया। इस डिज़ाइन में इकबाल सिंह ने दो पिलर ज्यादा बनवाए। सीमेंट, रोड़ी, रेत, सरिया कितना इस्तेमाल होना है, इसका भी पूरा ध्यान उन्होंने खुद रखा।

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