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समाज ने दुत्कारा लेकिन श्मशान ने संभाला, जानें दो महिलाओं की यह अजब-गज़ब कहानी !

जौनपुर : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में एक ऐसा गांव है जहां दो महिलाएं एक शमशान घाट पर शवों का अंतिम संस्कार कराती हैं। बताया जा रहा है कि रिश्ते में ये दोनों महिलाएं देवरानी और जेठानी हैं। ये दोनों मिलकर घाट पर जितने भी शव आते हैं, उनका अंतिम संस्कार कराती हैं। ये दोनों रोज सुबह 7-8 बजे तक शमशान घाट पर पहुंच जाती हैं। शाम को सात-आठ बजे तक वहां से लौटती हैं।

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जौनपुर (Jaunpur) जिले के खुटहन ब्लॉक का सबसे ज्यादा आबादी और क्षेत्रफल वाला गांव पिलकिछा है। यह गांव गोमती के तट पर स्थित है। इस गांव के शमशान घाट पर रोज सुबह 7-8 बजे तक दो महिलाएं पहुंच जाती हैं। और पूरा दिन वहीं काम करती हैं। शव के साथ आने वाले लोग दोनों महिलाओं को देखकर हैरान हो जाते हैं। कुछ लोगों ने इनसे इनके बारें में पूछा तो अपने पतियों की विरासत संभाल रहीं देवरानी-जेठानी कहानी सुनाते-सुनाते नहीं थकती हैं।

दोनों देवरानी-जेठानी मिलकर हर मुश्किल का सामना कर तो लेती हैं लेकिन जब इस श्मशान घाट पर किसी बच्चे की देह चिता पर होती है। तो उनके चेहरे पर उदासी छा जाती है। ऐसी स्थिति में उनका कंठ रुंध जाता है। ममता की कोमलता आखों से पिघलकर बहने लगती हैं। वे कहती हैं ऐसे परिवारों से दक्षिणा लेना भी हमें बहुत बुरा लगता है। लेकिन पेट पालने के लिए मज़बूरी में हमें यह सब करना पड़ता है।

देवरानी सरिता (Sarita) और उनकी जेठानी महराती (Maharati) दोनों ही बहुत गरीब होने के कारण अपने परिवार का पेट पालने और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए यह काम करती हैं। महीने भर में दोनों करीब सौ शवों को जलाकर अपना और अपने परिवार का खर्चा चलाती हैं। इन दो महिलाओं के चलते इस घाट की अलग ही पहचान हो गई है।

यहां जौनपुर के खुटहन ब्लॉक मुख्यालय से करीब चार किमी दूर स्थित पिलकिछा घाट पर ब्लॉक क्षेत्र के अलावा शाहगंज (Shahganj) और बदलापुर (Badlapur) तहसील के तथा अन्य पड़ोसी जिले सुल्तानपुर (Sultanpur), अंबेडकरनगर (Ambedkarnagar), आजमगढ़ (Azamgarh) के लोग भी शवों का दाह संस्कार कराने के लिए आते हैं। देवरानी सरिता बताती हैं कि उनके पति की मौत 11 साल पहले ही हो गई थी। उनके पति ऐसी घाट पर काम करते थे। सरिता के पास सिर्फ दो रास्तें थे, या तो वो मजदूरी करती या अपने पति की विरासत संभालती। काफी सोच विचार करने के बाद सरिता ने अपने पति की विरासत संभालने का फैसला किया।

हालांकि कुछ लोगों ने डराने की भी कोशिश की, तो कहीं कुछ लोगों ने समझा कर हिम्मत भी दिलाई। लोग कहते थे शव देखकर डर जाओगी, रात को नींद नहीं आएगी। समाज क्या कहेगा। लेकिन मैंने किसी की कोई भी बात नहीं सुनी क्योंकि मैंने अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए घाट का रास्ता चुन लिया था।

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