अब रेपिस्ट को सीधे मिलेगी फांसी, जानिए ममता बनर्जी के नए कानून में क्या-क्या प्रावधान है। क्यों इसे अब तक का सबसे मजबूत कानून बताया जा रहा है? दुष्कर्मियों के खिलाफ ममता के इस वार को क्यों सबसे खतरनाक वार माना जा रहा है? क्यों लोग कह रहे हैं कि अब रेपिस्ट रेप करने से पहले 100 बार सोचेंगे, आखिर क्या है इस नए कानून में चलिए विस्तार से बताते हैं।
पश्चिम बंगाल विधानसभा ने मंगलवार को सर्वसम्मति से दुष्कर्म रोधी विधेयक पारित कर दिया। विधेयक में पीड़िता की मौत होने या उसके ‘कोमा’ जैसी स्थिति में जाने पर दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। लेकिन इसमें कई ऐसी चीजें हैं जो पहली बार किसी कानून का हिस्सा बनी हैं।
विधेयक का नाम है- ‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024’। इसका मकसद दुष्कर्म और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों को लागू करना और महिलाओं-बच्चों की सुरक्षा मजबूत करना है।
विधेयक में क्या-क्या है अब जान लीजिए
- विधेयक भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, 66, 70(1), 71, 72(1), 73, 124(1) और 124(2) में संशोधन करता है।
- संशोधन दुष्कर्म, दुष्कर्म और हत्या, सामूहिक दुष्कर्म, बार-बार ऐसा अपराध करने वालों, पीड़िता की पहचान उजागर करने और तेजाब हमला कर चोट पहुंचाने आदि के लिए सजा से संबंधित है।
- बीएनएस की धारा 64 में कहा गया है कि दुष्कर्म के दोषी को कम से कम 10 साल की कठोर कारावास की सजा दी जाएगी और यह आजीवन कारावास तक हो सकती है। बंगाल के कानून में इसे संशोधित करके जेल की अवधि को उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन के शेष समय और जुर्माना या मृत्यु तक बढ़ा दिया गया है।
- विधेयक में बीएनएस की धारा 66 में संशोधन करने का प्रावधान किया गया है, यह दुष्कर्म की वजह से पीड़िता की मृत्यु होने या उसे ‘कोमा’ में ले जाने पर दोषी के लिए कठोर सजा निर्धारित करता है। केंद्र के कानून में ऐसे अपराध के लिए 20 साल की जेल, आजीवन कारावास और मृत्युदंड का प्रावधान है। बंगाल के विधेयक में कहा गया है कि ऐसे दोषियों को सिर्फ मृत्युदंड मिलना चाहिए।
- सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में सजा से संबंधित बीएनएस की धारा 70 में संशोधन करते हुए बंगाल के कानून ने 20 साल की जेल की सजा के विकल्प को खत्म कर दिया है। सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों के लिए आजीवन कारावास और मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।
- बंगाल के कानून में यौन हिंसा की शिकार महिला की पहचान सार्वजनिक करने से संबंधित मामलों में सजा को भी कड़ा किया गया है। बीएनएस में ऐसे मामलों में दो साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है, वहीं अपराजिता विधेयक में तीन से पांच साल के बीच कारावास का प्रावधान है।
- बंगाल के कानून में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत बाल शोषण के मामलों में सजा को भी सख्त किया गया है। इसके अलावा बंगाल के कानून में यौन हिंसा के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों और उनकी जांच के लिए टास्क फोर्स के गठन के प्रावधान भी शामिल हैं।
- विधेयक में दुष्कर्म के 16 वर्ष से कम उम्र के दोषियों की सजा से संबंधित अधिनियम की धारा 65(1), 12 वर्ष से कम उम्र के दोषियों की सजा से संबंधित अधिनियम की धारा 65 (2) और 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों की सजा से संबंधित अधिनियम की धारा 70 (2) को हटाने का भी प्रस्ताव है।
- विधेयक उम्र की परवाह किए बिना सजा को सार्वभौमिक बनाता है।