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लिव-इन पर इलाहबाद HC: जानवरों जैसे पार्टनर बदलना सभ्यता नहीं…!

लिव-इन पर इलाहबाद HC ने लिव-इन रिलेशनशिप पर सख्त टिप्पड़ी की है। शुक्रवार, 1 सितंबर को लिव-इन रिलेशनशिप पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पार्टनर बदलने का कॉन्सेप्ट एक सभ्य और स्वस्थ समाज की निशानी नहीं हो सकता। शादी में जो सुरक्षा, सामजिक स्वीकृति व ठहराव है, वह लिव-इन रिलेशनशिप में कभी नहीं मिल सकती। शुक्रवार को इलाहबाद हाई कोर्ट ने लिव-इन पार्टनर से दुष्कर्म करने के आरोपी की जमानत पर सुनवाई की। इस दौरान जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने शादीशुदा लिव-इन पार्टनर से रेप करने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए यह बयान दिया। उन्होंने कहा कि ऊपरी तौर पर लिव-इन का रिश्ता बहुत लुभावना लगता है। युवाओं को आकर्षित करता है। लेकिन समय बीतने के साथ उन्हें यह अहसास होता है कि इसमें कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं है। इससे युवाओं में हताशा बढ़ती है।

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दुष्‍कर्म के आरोपी को जमानत देते हुए दिया बयान..

बता दें, सहारनपुर निवासी अदनान पर उनकी लिव-इस पार्टनर ने रेप का आरोप लगाया था। अदनान पहले से शादीशुदा थे। अदनान और उनकी पार्टनर एक साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहे। इस दौरान अदनान की लिव-इस पार्टनर प्रेग्नेंट हो गई। दुष्‍कर्म के आरोपी अदनान की जमानत की सुनवाई हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने की। इस दौरान उन्होंने कहा, देश में शादी के इंस्टीट्यूशन को खत्म करने के लिए सुनियोजित कोशिशें हो रही हैं। कोर्ट ने कहा कि लिव-इस को तभी पूरी तरह से सामान्य माना जा सकता है, जब शादी संस्थान पूरी तरह से बाहर हो जाए। जैसे की कई विकसित देशों में शादी इंस्टिट्यूशन को बचाना मुश्किल हो गया है। कोर्ट ने कहा कि हम भी उसी राह पर हैं। जहां भविष्य में हमारे लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है।

लिव-इन पर इलाहबाद HC ने कहा..!

कोर्ट ने कहा कि अपने पति या पत्नी से बेवफाई करके आजादी से लिव-इस रिलेशनशिप में रहने को प्रोग्रेसिव सोसाइटी की निशानी बताया जा रहा है। जिससे युवा आकर्षित होते हैं, बिना ये सोचे कि आगे जाकर इसका क्या नतीजा होगा। कोर्ट के अनुसार जिस इंसान के अपने परिवार से अच्छे संबंध नहीं हैं। वो देश के विकास में योगदान नहीं दे सकता। ऐसे महिला-पुरुष के पास जीवन का कोई आधार नहीं होता। एक रिश्ते से दूसरे रिश्ते में जंप करने से जीवन में संतोष नहीं मिलता। शादी के संस्थान में जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और ठहराव मिलता है, वह कभी भी लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं मिल सकता।

कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे रिश्तों से जन्मे बच्चे, आगे चलकर परेशानियां झेलते हैं। जब उनके पैरेंट्स अलग होते हैं तो इसका असर बच्चों पर भी पड़ता है। कोर्ट ने अदनान को जमानत देते हुए कई मामलों का जिक्र किया। कोर्ट ने जेलों में भीड़भाड़, आरोपी के केस को खत्म करने का अधिकार और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसलों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि टीवी और फ़िल्में युवाओं को लिव-इन रिलेशनशिप की आकर्षित करते हैं। उन्होंने कहा कि टीवी और फ़िल्में इस तरह के रिश्तों को बढ़ाने और समाज में गंदगी फैलाने का काम कर रहे हैं।

 

 

 

 

 

 

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