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आजाद राहुल अब मोदी के लिए ज्यादा मुश्किल: शकील अख्तर !

भक्त खाली मोदी जी के नहीं होते कांग्रेस के भी होते हैं। मगर फर्क यह है कि भाजपा या मोदी भक्तों के हिसाब से काम नहीं करते। उनसे अपने हिसाब से काम लेते हैं। कांग्रेस के नेता भक्तों के चक्कर में पड़कर डिरेल हो जाते हैं। वे अपना अजेंडा कार्यकर्ताओं तक ही नहीं पहुंचा पाते भक्त तो वैसे ही अक्ल से पैदल होते हैं उनकी समझ में तो देर से आता है उन तक तो कांग्रेस क्या चाहती है यह पहुंच ही नहीं पाता।

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बीजेपी के भक्त उसे नुकसान नहीं पहुंचाते। कांग्रेस अलग तरीके की पार्टी है भाजपा जैसी आंख बंद करके सिंगल ट्रेक पर चलने वाली पार्टी नहीं है। मगर भक्त तो भक्त होते हैं। उन्हें बारीकियां समझ में नहीं आतीं। इसलिए संघ में सिखाया जाता है सवाल मत पूछो। जो कहा गया है उस पर अमल करो। इसीलिए वहां आदेश और अफवाहें दो ही चीज चलती हैं। मगर इन्हें पहुंचाने के लिए एक टीम की जरूरत होती है। प्रशिक्षित फौज। कांग्रेस में तो कोई टीम ही नहीं है। प्रशिक्षित का तो सवाल ही नहीं उठता। मगर भक्त चूंकि मौसमी आइटम है तो वह भाजपा में पैदा किया गया तो कांग्रेस में भी हो गया। मगर जैसा कि कहा कि वह समझता नहीं है।

 

 

कांग्रेस को अपने हिसाब से चलाना चाहता है। ताजा उदाहरण केजरीवाल का है। आम आदमी पार्टी और केजरीवाल का वह अंध विरोधी है। और कांग्रेस इस बात को समझती नहीं है। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के समय सबसे ज्यादा खुश कांग्रेसी हो रहे थे। केवल भक्त नहीं उनके प्रभाव में रहने वाले दिल्ली के बड़े कांग्रेसी नेता भी। सबको मालूम था कि यह केन्द्रीय जांच ऐजेन्सियों के अधिकारों के दुरुपयोग का मामला है। पूरी तरह राजनीतिक। मगर कांग्रेस के भक्त और नेता समझने को तैयार नहीं।

अब जब राहुल को सज़ा हुई और केजरीवाल खुल कर राहुल के पक्ष में आए। राहुल और पार्टी अध्यक्ष खड़गे ने उन्हें धन्यवाद दिया तब उनकी समझ में आया कि राजनीति में कोई परमानेंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता है। आज कांग्रेस के साथ शिवसेना है। और शिवसेना का अराध्य सावरकर हैं। मगर राहुल ने शनिवार को फिर दोहराया कि मेरा नाम राहुल गांधी है राहुल सावरकर नहीं। पहली बार 2019 में जब राहुल ने दिल्ली के रामलीला मैदान में कहा कि मेरा नाम राहुल गांधी है राहुल सावरकर नहीं तो शिवसेना जिसने महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ नई नई सरकार बनाई थी नाराज हो गई। कड़ी प्रतिक्रया दी।

 

मगर अभी जब राहुल ने अपनी प्रेस कान्फ्रेंस में कहा तो शिवसेना चुप रही। इसे कहते हैं कामन मिनिमम प्रोग्राम न्यूनतम सहमति के आधार पर साथ चलना। हम एक भी मामले में सहमत हैं और अगर वह बड़ा सवाल है देश के लोकतंत्र को बचाने का, बोलने की आजादी को बनाए रखने का तो हम अपनी दस असहमतियों के बावजूद साथ रहेंगे।
2014 के बाद तो देश में इतने नए राजनीतिक समीकरण बने कि राजनीति का माहौल ही चेंज हो गया। अब अगर क्रिकेट में लास्ट दो ओवरों में कुश्ती का प्रावधान हो जाए तो टीम में दो पहलवान रखना ही पड़ेंगे। मोदी जी की सफलता के राजों में यह भी है कि जब जरूरत हो तो वे मुफ्ती मोहम्मद सईद ही नहीं उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को साथ भी जम्मू कश्मीर में सरकार बना सकते हैं।

 

 

राजनीति अब लोच की चीज हो गई है। अड़ियल रवैया नहीं चलेगा। और सच तो यह है कि पहले भी अपनी जरूरतों के मुताबिक सभी पार्टियों ने असैद्धांतिक गठबंधन किए हैं। बीजेपी और सीपीएम 1977, 1989 वीपी सिंह के टाइम और अभी अन्ना हजारे के आंदोलन में साथ थे।

 

आज मोदी से लड़ना आसान नहीं है। अलग अलग तो बिल्कुल नहीं। राहुल गांधी ने सही पहचान की। लोकसभा सदस्यता खत्म करने के बाद अपनी पहली प्रेस कान्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि मोदी जी धन्यवाद। आपने मुझे लोकसभा से निकालकर बड़ी गिफ्ट दे दी। विपक्षी एकता की।

 

अब राहुल यह खुद कह रहे हैं तो दिल्ली के कांग्रेसी नेताओं की समझ में भी आएगा कि छोटे मोटे इगो, मुद्दों की लड़ाई नहीं है। किसी एक पार्टी की जीत हार की नहीं है। अभी कोई कुछ कम जीत जाएगा कोई थोड़ा ज्यादा मगर लोकतंत्र बच जाएगा। बाद में सारे फैसले हो जाएंगे।

 

राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म करने के बाद भाजपा पूरी तरह 2024 लोकसभा चुनाव के मूड में आ गई है। और बहुत आक्रामक तरीके से। इधर कांग्रेस के लोग सोते सोते बोल रहे हैं कि अभी 2024 की बात नहीं विधानसभा चुनाव हैं। उसके बाद देखेंगे।

 

देखने को बच भी जाओगे? कहां से देखोगे? जेल से? हां वहां से देख ही सकते हो। कर कुछ नहीं सकते!
राहुल कब गिरफ्तार हो जाएंगे? किस मामले में ? किसी को मालूम है ? राहुल ने शनिवार को और प्रियंका ने रविवार को राजघाट से क्यों चुनौति दी कि हमें गिरफ्तार कर लो! क्योंकि उन्हें आने वाले खतरनाक समय की आहट मिल गई है। विपक्षी दलों को भी मिल गई है।

 

केजरीवाल सबसे ज्यादा मुखर होकर साथ आए। क्योंकि उन पर खतरा भी सबसे ज्यादा है। केजरीवाल गिरफ्तार तो पार्टी खत्म। अब जमानत नहीं हो रही है। मनीष सिसोदिया समझ रहे थे कि दो दिन बाद वापस आ जाएंगे। अब दिन की नहीं महीनों और सालों की बात है।

 

अखिलेश और ममता ऐसे ही नहीं आए। वे भी यह समझ गए हैं। इन दोनों को उधर से भी अभयदान का वादा है। मगर तब तक ही जब तक राहुल को नहीं निपटा लिया जाता। राहुल को खत्म करने के बाद फिर ममता केजरीवाल केसीआर बाकी सबको या तो मायावती बनना होगा या फिर उन्हें राहुल और लालू का हश्र दिखाकर कहा जाएगा कि एक बार और सोच लो!

 

सबसे मजबूत विकेट राहुल हैं। उनके गिरते ही लाइन लग जाएगी। इसे केजरीवाल ममता अखिलेश केसीआर सब समझ गए हैं। इसलिए राहुल ने कहा कि मेरी सदस्यता जाना लाभ का सौदा है। इस बहाने विपक्षी एकता हो रही है। और राहुल ने यह भी सही कहा हम इसे पहले से कह रहे थे कि मोदी जी का यह पैनिक रिएक्शन है। पहला न समझ में आने वाला बीबीसी पर छापा। इसकी कोई जरूरत नहीं थी। मीडिया सब काबू में था। भारत का बीबीसी भी।

 

 

वहां दिखाई डाक्यूमेंट्री का यहां कोई असर नहीं था। और अगर था भी तो मोदी के खिलाफ तो बिल्कुल नहीं। उससे कोई नया वर्ग मोदी विरोधी नहीं हो रहा था। फिर राहुल के घर पुलिस भेजना। सूरत का फैसला और राहुल को लोकसभा से निकालना। यह एक के बाद एक घबराहट भरे फैसले थे। इसमें एक बड़ा कारण अडानी हैं। जिनके मामले में खुलासे विदेश से हो रहे हैं जिन्हें नियंत्रित करना सभंव नहीं हैं। दूसरे देश के बाकी औद्योगिक घरानों में उठते सवाल कि क्रोनी कैपटलिज्म से यह तो एकाधिकार का काम होने लगा। क्या सब कुछ अडानी का हो जाएगा। तीसरा चीन के मामले के बाद संघ और भाजपा में उठते सवाल कि क्या इतना चुप रहना चाहिए? क्या इससे हमारे राष्ट्रवाद के कोर इशु पर चोट नहीं आएगी?

 

 

दस साल बहुत होते हैं। मोदी जी इसे समझ रहे हैं। इसलिए वे राहुल पर ज्यादा जोर से हमला करके यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इनसे मैं ही निपट सकता हूं। इसमें कोई शक नहीं कि यात्रा के बाद राहुल का व्यक्तित्व बहुत बढ़ गया है। वे मोदी को चुनौति देने की स्थिति में आ गए हैं। अब तो उनके पास कुछ नहीं है। न लोकसभा सदस्यता न पार्टी में कोई पद। पूरी तरह आजाद आदमी। यह मोदी के लिए बहुत खतरनाक है। और दूसरी तरफ विपक्ष के लिए यह वरदान है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं )

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