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पाकिस्तान में मदरसों के सरकारी पंजीकरण पर बवाल, मौलवियों ने सरकार को दी खुली चुनौती

इस्लामाबाद: पाकिस्तान में मदरसों को लेकर सरकार और मौलवियों के बीच तनाव गहराता जा रहा है। मौलवियों ने स्पष्ट रूप से सरकार को चुनौती देते हुए कहा है कि उनके मदरसे सरकार के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त रहेंगे और किसी भी सरकारी विभाग का हिस्सा नहीं बनेंगे। यह रुख 2019 में मौलवियों द्वारा अपनाए गए सहमति वाले दृष्टिकोण के ठीक विपरीत है, जब मदरसा बोर्डों ने संघीय शिक्षा मंत्रालय के कुछ प्रशासनिक नियंत्रण को स्वीकार कर लिया था।

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हाल ही में इत्तेहाद तंजीमात-ए-मदारिस पाकिस्तान नामक संस्था, जो विभिन्न इस्लामी संप्रदायों के मौलवियों द्वारा संचालित मदरसों का प्रतिनिधित्व करती है, ने बैठक के बाद यह ऐलान किया कि मदरसों को स्वायत्त रखा जाएगा और सरकार के हस्तक्षेप से बचाया जाएगा।

मौलवियों के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान से मुलाकात की और सरकार द्वारा प्रस्तावित सोसाइटी पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2024 के विरोध में समर्थन मांगा।

क्या है विवाद की वजह?

यह विवाद सोसाइटी पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर है, जिसका उद्देश्य 2019 के समझौते को निरस्त करना और जिला प्रशासन को मदरसों के पंजीकरण का अधिकार देना है। इससे मौलवियों को यह आशंका है कि उनके संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ जाएगा।

बैठक के बाद दिए गए बयान में *मुफ्ती तकी उस्मानी* ने कहा कि 2019 में शिक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में आने का निर्णय दबाव में लिया गया था। उन्होंने कहा, “हमने सोचा था कि अन्य विकल्पों की तुलना में शिक्षा मंत्रालय का प्रशासनिक नियंत्रण बेहतर होगा। लेकिन अब हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमारे मदरसे स्वतंत्र और स्वायत्त रहेंगे, जैसा कि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र में है।”

इस बैठक में बरेलवी, देवबंदी, शिया, अहले हदीस और जमात-ए-इस्लामी से जुड़े मदरसा बोर्डों के प्रतिनिधि शामिल हुए। सभी ने एकजुट होकर सरकार के इस कदम का विरोध किया और मदरसों की स्वायत्तता बनाए रखने पर जोर दिया।

आगे की राह

मौलवियों का यह कड़ा रुख सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। अगर यह विवाद सुलझता नहीं है, तो पाकिस्तान में धार्मिक संस्थानों और प्रशासन के बीच टकराव और गहरा सकता है।

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