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देश की टॉप यूनिवर्सिटी जेएनयू ‘बिकने’ की कगार पर, जानें वजह, सोशल मीडिया पर लोगों का फूटा गुस्सा

बस अब यही देखना बाकी रह गया था। अब देश की सरकारी यूनिवर्सिटियों को भी बेचा जाएगा। वाह ताली बजाइए। क्या खूब विकास कर रहा है अपना देश। कायदे से तो देश के हर बच्चे को मुफ्त में शिक्षा मिलनी चाहिए लेकिन अपने देश की हालत जरा देख लीजिए। जवाहर लाल नेहरू यानी जेएनयू जैसा देश का टॉप विश्वविद्यालय अब बिकने की कगार पर है। पिछले कई सालों से देश की नंबर 1 यूनिवर्सिटी की हालत ऐसी हो गई है कि इसके पास फंड तक नहीं है। फंड नहीं होने के कारण अब यह यूनिवर्सिटी अपनी संपत्ति बेचने को मजबूर है। अब सवाल ये है कि आखिर सरकार क्या कर रही है? क्या सरकार की इतनी भी नैतिक जिम्मेदारी नहीं कि देश की सबसे बेस्ट यूनिवर्सिटी को बचाया जा सके? नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर तो तमाम आंसू बहाए जा रहे हैं लेकिन जो यूनिवर्सिटी अभी देश की नंबर 1 यूनिवर्सिटी है, जो देश की साख बचाए हुए है, उसे संवारने के लिए आखिर सरकार क्या कर रही है? कैसे फंड की कमी आ गई ? और अगर फंड की कमी है तो सरकार चाहे तो क्या यह कमी दूर नहीं कर सकती है। क्या देश की नंबर 1 यूनिवर्सिटी की संपत्तियों का बेचा जाना उचित है? जब से यह जानकारी सामने आई है कि जेएनयू अपनी संपत्तियों को बेचने के लिए मजबूर हुआ है तब से सोशल मीडिया पर युवाओं का आक्रोश सरकार के खिलाफ फूट पड़ा है। कई लोगों ने तो यहां तक आरोप लगाए हैं कि सरकार जानबूझकर ऐसा होने दे रही है, वरना अगर सरकार चाहे तो देश के किसी भी यूनिवर्सिटी को फंड की कमी नहीं होगी। आखिर पूरा मामला क्या है चलिए वो भी बता देते हैं।

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दरअसल, जवाहरलाल नेहरू  यूनिवर्सिटी की कुलपति शांतिश्री धुलिपुडी पंडित ने एक निजी अखबार से बातचीत के दौरान यह बताया है कि जेएनयू फंड की कमी से जूझ रहा है. जेएनयू में फिलहाल वित्तीय बोझ काफी बड़ा है. और उसी के चलते अब यूनिवर्सिटी अपनी कुछ प्रॉपर्टी बेचने की सोच रही है.  उन्होंने बताया कि वह गोमती गेस्ट हाउस और 35 फिरोजशाह रोड इन दोनों संपत्तियों को रीडेवलप करके पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत किराए पर देना चाहती हैं. जिससे  यूनिवर्सिटी को हर महीने तकरीबन 50000 से लेकर 1 लाख तक की इनकम हो सकती है. इस बारे में शिक्षा मंत्रालय से बातचीत करने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है .

इसके साथ ही कुलपति शांतिश्री धुलिपुडी पंडित ने बताया कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी परिसर में कुल 12 इंस्टिट्यूट चलाए जाते हैं. वह सभी बिना किराए दिए ही संचालित हो रहे हैं. लेकिन अब यूनिवर्सिटी उन संस्थाओं से हर महीने किराया लेने की योजना के बारे में सोच रही है. ताकि यूनिवर्सिटी पर जो वित्तीय बोझ है वह काम हो सके.

अब सोचिए जरा, देश की सबसे टॉप यूनिवर्सिटी की ये हाल है। जेएनयू उन चुनिंदा यूनिवर्सिटी में से एक है जहां अब भी देश के गरीब परिवार का बच्चा कम पैसे में जाकर बेहत शिक्षा हासिल कर पाता है लेकिन जब ऐसी यूनिवर्सिटीज बिकने लगेंगी तो फिर गरीबों के बच्चे कहां जाएंगे आप एक बार सोचकर जरूर देखिए? यह इसलिए क्योंकि अगर फंड की कमी है तो फिर यूनिवर्सिटी को खुद को बचाने के लिए कोई न कोई कदम तो उठाना ही होगा। लेकिन अगर सरकार चाह दे तो फिर कोई भी यूनिवर्सिटी को ऐसी मजबूरी कैसे आ सकती है? लोग अब ये सवाल पूछ रहे हैं। लोगों का कहना है कि सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और जेएनयू को बचाना चाहिए क्योंकि गरीबों के लिए देश में कुछ ही यूनिवर्सिटीज बची हैं। ऐसे में सरकार को इस तरफ सोचना चाहिए और तुरंत ऐसा इंतजाम करना चाहिए कि जेएनयू को अपनी संपत्ति न बेचनी पड़े।

वैसे आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा हर साल  जेएनयू को करोड़ों का फंड दिया जाता है. लेकिन अगर जेएनयू की वीसी यह कहती हैं कि यूनिवर्सिटी में फंड की कमी है और यूनिवर्सिटी की संपत्ति बेचनी पड़ेगी तो फिर यह चिंताजनक है और समय रहते सरकार को इस बारे में ध्यान देना चाहिए। उधर, जेएनयू में भूख हड़ताल पर बैठे दो छात्रों की तबीयत बिगड़ गई है. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की गई लेकिन छात्रों ने इलाज कराने से मना कर दिया है। इस पूरे मामले पर आपकी क्या राय है, कमेंट कीजिए।

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