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उत्तराखंड में UCC लागू, शादी, तलाक से लेकर उत्तराधिकार तक बदल जाएंगे सभी नियम, जानें UCC से और क्या-क्या बदलेगा राज्य में ?

उत्तराखंड प्रदेश नागरिक संहिता (UCC) लागू करने वाला राज्य बन गया है। इस महीने की 4 फरवरी को उत्तराखंड कैबिनेट से UCC विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद उसे आज यानि मंगलवार को विधानसभा में पेश किया गया था और अब राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद UCC विधेयक एक कानून बन गया है। उत्तराखंड में UCC 2024 विधेयक पेश करने के बाद राज्य विधानसभा में सभी विधायकों ने जमकर वंदे मातरम और जय श्री राम के नारे लगाए।

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बहुविवाह पर लगेगी रोक
आपको बता दे, कुछ कानून में एक से अधिक विवाह करने की छूट दी गयी है। लेकिन हिंदू, ईसाई और पारसी के लिए दूसरा विवाह एक अपराध के तौर पर देखा जाता है और 7 साल की सजा का प्रावधान है। इसलिए कुछ लोग दूसरा विवाह करने के लिए अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। लेकिन UCC के लागू होने के बाद बहुविवाह पर पूर्ण रूप से रोक लगेगी।

 

 

शादी के लिए कानूनी उम्र होनी चाहिए 21 साल
आपको बता दे, विवाह की न्यूनतम उम्र कहीं तय तो कहीं तय नहीं की गयी थी। अक्सर देखने को मिलता रहा है कि छोटी उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है। जबकि वह शारीरिक व मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होतीं। जबकि अन्य धर्मों में लड़कियों की 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष की उम्र तय है। ये कानून बनने के बाद लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 21 साल तय होगी।

 

इसके साथ ही साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों सभी लोगों के लिए अब रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। UCC लागू होने के बाद उत्तराखंड में लिव इन रिलेशनशिप के वेब पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। रजिस्ट्रेशन न कराने पर कपल को 6 महीने तक का कारावास और 25,000 रुपए का दंड हो सकता है है। रजिस्ट्रेशन के मुतबिक, जो रसीद कपल को मिलेगी उसी के अनुसार उन्हें किराए पर घर, हॉस्टल या पीजी मिलेगा। UCC में लिव इन रिलेशनशिप को स्पष्ट तौर पर से परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, केवल वयस्क पुरुष व महिला को ही लिव इन रिलेशनशिप में रहने की परमिशन दिया जायेगा। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए। पंजीकरण कराने वाले कपल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता को देनी होगी।

 

 

विवाह पंजीकरण कराना होगा अनिवार्य
UCC अनिवार्य कानून लागू होने के बाद विवाह पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। अगर ऐसा नहीं कराया तो किसी भी सरकारी सुविधा से वंचित होना पड़ सकता है।

 

अब उत्तराधिकार की प्रक्रिया होगी आसान
आपको बता दे, एक कानून में मौखिक वसीयत व दान की मान्यता है। जबकि दूसरे कानूनों में शत प्रतिशत संपत्ति का वसीयत किया जा सकता है। यह धार्मिक मजहबी विषय नहीं बल्कि एक सिविल राइट या मानवाधिकार का मामला है। एक कानून में उत्तराधिकार की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है। पैतृक संपत्ति में पुत्र व पुत्रियों के बीच अधिकतर भेदभाव होता है। कई धर्मों में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार को शामिल नहीं किया गया है। विवाह के बाद बेटियों के पैतृक संपत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। ये अपरिभाषित हैं। लेकिन UCC के लागू होने के बाद उत्तराधिकार की प्रक्रिया को आसान कर दिया।

 

बुजुर्ग मां-बाप के देखभाल की पूरी जिम्मेदारी होगी बहु पर
UCC लागू होने के बाद नौकरीपेशा बेटे की मौत की स्थिति में बुजुर्ग मां-बाप के देखभाल की जिम्मेदारी पत्नी पर होगी और उसे मुआवजा भी मिलेगा। पति की मौत की स्थिति में यदि पत्नी दोबारा करती है तो उसे मिला हुआ मुआवजा मां-बाप के साथ बांटा जाएगा।

 

 

बदल जायेगा गोद लेने का नियम
UCC कानून लागू होने के बाद राज्य में मुस्लिम महिलाओं को भी गोद लेने का पूर्ण अधिकार मिलेगा। इसी के साथ गोद लेने की प्रक्रिया आसान होगी और अनाथ बच्चों के लिए संरक्षकता की प्रक्रिया को भी आसान कर दिया जायेगा। कानून लागू होने के बाद दंपती के बीच झगड़े के मामलों में उनके बच्चों की कस्टडी उनके दादा-दादी को दी जा सकती है।

 

UCC में तलाक लेने की प्रक्रिया
आपको बता दे, पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान अधिकार उपलब्ध होंगे। तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्नी के लिए भी लागू होगा। फिलहाल पर्सनल लॉ के मुताबिक,पति और पत्नी के पास तलाक के अलग-अलग ग्राउंड हैं।

 

 

UCC से पहले की तलाक लेने की प्रक्रिया क्या थी?
आपको बता दे, इस्लाम के तीनों तलाक प्रक्रिया की अगर तुलना करें तो ये बहुत अलग हैं। तीन तलाक झटके में किसी भी तरीके से तीन बार तलाक बोलकर दिया जा सकता है। इसमें तो कई बार लोग फोन पर मैसेज या कॉल के माध्यम से तलाक दे दिया करते थे। तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन में तलाक की एक प्रक्रिया और निश्चित समय होता है। इन दोनों प्रक्रियाओं करे मुताबिक, पति पत्नी को फैसला लेने के लिए कुक समय मिलता है। इसके अलावा मुस्लिम समाज में महिलाओं के तलाक लेने के लिए भी विकल्प है। महिलाएं खुला तलाक ले सकती हैं। कोर्ट के हस्तक्षेप के बिना कोई महिला खुला तलाक के तहत पति से तलाक लेने की बात कर सकती है। हालांकि इस तरह के तलाक में महिला को मेहर यानी निकाह के समय पति की तरफ से दिए गए पैसे चुकाने होते हैं। साथ ही खुला तलाक में पति की रजामंदी भी जरूरी होती है।

 

साल 2022 में हुआ था UCC पर समिति का गठन
दरअसल, उत्तराखंड सरकार ने साल 2022 के मई महीने में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था। सरकार ने एक अधिसूचना 27 मई 2022 और शर्तें 10 जून को अधिसूचित की गई थीं। समिति ने बैठकों, परामर्शों, क्षेत्र के दौरे और विशेषज्ञों और जनता के साथ बातचीत के बाद मसौदा तैयार किया। इस प्रक्रिया में लगभग 13 महीने का समय लगा। जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी पहली बैठक 4 जुलाई 2022 को दिल्ली में आयोजित की गयी थी। मसौदे के जरूरी पहलुओं पर जुलाई 2023 में एक बड़ी बैठक में विचार-विमर्श किया गया और इसे अंतिम रूप दिया गया था।

 

 

UCC क्या है?
आपको बता दे, समान नागरिक संहिता यानि UCC अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों के लिए एक ही कानून होगा। इसी के साथ शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे के मामले में सभी धर्मों के लिए एक कानून लागू होगा।

 

 

आपको बता दे, यह मुद्दा कई दशकों से राजनीतिक बहस के इर्द गिर्द में रहा है। UCC केंद्र की मौजूदा सत्ताधारी बीजेपी के लिए जनसंघ के जमाने से प्राथमिकता वाला एजेंडा रहा है। बीजेपी सत्ता में आने पर UCC को लागू करने का वादा करने वाली पहली पार्टी थी और यह मुद्दा उसके साल 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का भी अहम् हिस्सा था।

 

क्या है UCC का इतिहास ?
बता दे, UCC की सबसे पहले औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानूनों की एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। विशेष रूप से इसमें यह सिफारिश की गई थी कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉ) को इस तरह के संहिताकरण के बाहर रखा जाए। साल 1941 में ब्रिटिश सरकार हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी एन राव समिति बनाई। समिति ने शास्त्रों के मुताबिक, एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की, जो महिलाओं को समान अधिकार देगा।

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