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आदत भीतरघाती, मगर सपने मुंगेरीलाली, शिमला तक रुकें: के. विक्रम राव

दो वाकये, एक साथ, एक ही समय पर हुये। आपस में रहे भी दोनों संबद्ध। पटना और सुदूर कोची (केरल) में। तीन हजार किलोमीटर के फासले पर। यह इत्तेफाक नहीं था क्योंकि अनहोनी नही थी। पूर्व नियोजित रही। सूचीबद्ध भी। तब गंगा तटीय पटना में मुख्यमंत्री (नीतीश कुमार) के आवास, (1 अणे मार्ग में) देश के 15 राजनीतिक दलों की बैठक में नरेंद्र मोदी को हराने तथा हटाने का कार्यक्रम रचा जा रहा था। ठीक तभी उधर अरब सागर तटीय कोची नगर में केरल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंबकूडी सुधाकरन को पुलिस पकड़कर ले गई। पूछताछ, सवाल जवाब कर लिया।

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आरोप थे धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा, षड्यंत्र आदि। खुद विधि स्नातक सुधाकरन चीखते रहे कि उन्हें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने फंसाया है। वे बेगुनाह हैं। भावना बदलेवाली है। उधर पटना की बैठक में साथ बिस्कुट खाते, चाय पीते, कांग्रेस के राहुल गांधी, अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे, पार्टी संगठन के मंत्री (केरल के ही) केसी राजगोपाल बैठे थे। पड़ोस की सीटों पर ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव येचूरी सीताराम विराजे थे। मगर वे लोग सुधाकरन पर एक संवेदनशील शब्द तक नहीं बोले।

 

बेचारे सुधाकरन मार्क्सवादी पुलिस की बर्बरता सहते रहें। अब केरल की बीस लोकसभाई सीटों पर दोनों पार्टियों का भाजपा के विरुद्ध कितना तालमेल बैठेगा ? शीघ्र अनुमान लग जाएगा क्योंकि निर्वाचन आयोग वायनाड की रिक्त सीट पर मतदान कराने वाला है। यहां से राहुल गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया था। यूं भी कम्युनिस्ट विगत चार साल से कांग्रेस से रुष्ट हैं। वायनाड से कम्युनिस्टों का प्रत्याशी जीतता रहा था। पिछली बार मुस्लिम लीग की मदद से राहुल गांधी ने भाकपा को पराजित कर दिया था। तनाव अभी भी उभरता रहा है।

 

अब सीटों के तालमेल की बात नीतीश-लालू के प्रदेश बिहार के संदर्भ में जांच लें। पिछले चुनाव में भाजपा-नीतीश गठबंधन 39 सीटें जीता था। केवल एक ही कांग्रेस को मिली थी। अब बंदरबाट में कांग्रेस की सीटें कटेंगी। पटना में शामिल राजद, जदयू, भिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों के दावेदार, आदि दौड़ में रहेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन मांझी, चिराग पासवान आदि वार करेंगे। हार सोनिया-कांग्रेस की ही होगी। उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर युद्ध होगा। असली महाभारत इसी दोआबा में है। अखिलेश यादव कितने कारगर होते हैं ?

हालांकि उनकी धर्मपत्नी अपार बहुमत से मैनपुरी जीती थीं। मगर उसकी पुश्तैनी यादवी सीट आजमगढ़ से भाजपाई गायक निरहुआ (दिनेश यादव) ने सपा का बाजा बजा दिया था। इस बार वह कितना कारगर होंगे ? यूपी में योगी आदित्यनाथ का करिश्मा तो काम करेगा ही। इस निर्मोही काषायधारी साधु ने तो बाकी राज्यों में भी दबदबा दर्शाया था।

कुछ उन राज्यों की भी चर्चा हो जहां के लोग इस पटना अधिवेशन में नहीं आए थे। आशंका जाहिर की गई थी। मसलन पश्चिम बंगाल जहां 42 लोकसभाई सीटें हैं। इनमें कांग्रेस के पास केवल दो हैं। एक अधीर रंजन के नाम है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस अपने सभी 22 सांसदों पर प्रत्याशी दुबारा नामित कर सकती है। बचे 20 जिन पर बाकी सभी दल दावा ठोकेंगे। यहां दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां दुर्योधन की भांति एक इंच जमीन भी नहीं छोड़ेंगी।

भाजपा अब यहां अपने 18 सांसदों की संख्या बढ़ाने की कोशिश करेगी। गुजरात में सभी 26 सीटें भाजपा की हैं। उसे हराना दुश्वार होगा। अलबत्ता कर्नाटक की 28 सीटों पर इस बार टक्कर होगी। भाजपा को अपनी 25 सीटों को दुबारा हासिल करने के लिए ओवरटाइम करना होगा। अब वे विपक्ष में हैं। मध्य प्रदेश में 29 में से 27 सीटें जीती थी। भाजपा इस बार कठिनाई मे है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि धूमिल पड़ी है। विधानसभा में उनके लाले पड़ सकते हैं। सरसरी तौर पर यही खाका समूचे देश मे उभर रहा है। फिलवक्त राहुल गांधी का प्रधानमंत्री बनना मात्र मरीचिका है। वे स्वयं लोकसभा की चहारदीवारी छू नहीं पाएंगे। चुनाव लड़ने के पहले कोर्ट में जीतना होगा।

और यदि इस बीच इस्लामी पाकिस्तान अपनी आंतरिक अराजकता से जनता की दृष्टि हटाने के लिए भारत सीमा पर कोई छेड़ छाड़ कर दे तो ? कारगिल और पुलवामा तो चुका है। तब तो पटना की बैठक एक फूहड़ सर्कस मात्र बनकर रह जाएगी।

लेकिन सर्वाधिक दिलचस्प प्रकरण तो यह होगा कि पटना बैठक के बाद ये 15 दल सर फुटौव्वल से बच पाएंगे ? इतने भाग्यशाली भी वे सब बिल्ली जैसे नहीं हैं कि कोई छींका फूट जाए ? उसके पहले इन सभी पार्टियों को आपसी 36 का आंकड़ा बदलकर 33 बनाना होगा। उधर मायावती भी बाट जोहती रहेगी। घात लगाए।

पटना बैठक का बस एक ही लाभ दिखा। रुग्णवस्था में भी लालू यादव फिर मसखरी से सबका मन बहलाने लगे। पुत्री की यकृति पाकर दूसरी जिंदगी मिल गई। बेहतर होता पूजा-पाठ में बाकी समय लालू बिताते। भगवान की कृपा से तब चारा चोरी के पाप से मुक्त तो हो जाते।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह उनके निजी विचार हैं)

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