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हिन्दू मुसलमान कब तक? शकील अख्तर

भाजपा के पास देश में केवल हिन्दू मुसलमान मुद्दा है। मगर विदेश में उसे इस पर सफाई देना पड़ती है। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन (Finance Minister Nirmala Sitharaman) इन दिनों अमेरिका की यात्रा पर हैं और वहां के अख़बार भरे पड़े हैं कि, हिन्दुस्तान में किस तरह साम्प्रदायिकता बढ़ाई जा रही है। रोज नए इलाकों में तनाव बढ़ाया जा रहा है। इसके पीछे नफरत का माहौल, अफवाहें, हेट स्पीच हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच पर बहुत सख्त टिप्पणी की है। मगर भाजपा के नेता यहां तक की मंत्री भी गोली मारो… जैसी भाषा बोलते हैं।

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मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सरकारी मीडिया दूरदर्शन के एंकर खुले आम कहते हैं कि, हां हम इस्लामफोबिक ( इस्लाम से नफरत करने वाले) हैं और इस इस्लामिकफोबिया को और बढ़ा रहे हैं। हर चीज के साथ जिहाद लगाकर मुसलमानों को शक के घेरे में खड़ा किया जा रहा है। रोटी जिहाद, आईएएस जिहाद पचास तरह के जिहाद अफवाहों और छोटे नेताओं के जरिए चलाए जा रहे थे। अब एक सबसे बड़े चैनल ने खुले आम मजार जिहाद चला दिया।

 

 

सरकार यहां इस पर नियंत्रण नहीं कर रही है। बल्कि खुद प्रधानमंत्री कपड़ों से पहचानने, कब्रिस्तान और श्मशान जैसी विभाजनकारी बात करते हैं। जाहिर है कि, इसका असर दुनिया में जाएगा। अब जब 2024 के लोकसभा चुनाव नजदीक आ गए तो बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे नए राज्यों में माहौल खराब किया जा रहा है। सोशल मीडिया नफरती नारों और भाषणों से भर पड़ा है। और मेन मीडिया जो कहता है हमें गोदी मीडिया न कहो वह दंगा मीडिया बन गया है।

ऐसे में भारत की वित्त मंत्री को जो टाप कहे जाने वाले तीन मंत्रालयों गृह, रक्षा, वित्त के मंत्रियों में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी अंग्रेजी बोलने वाली मंत्री हैं उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में आर्थिक मामलो के बदले हिन्दु मुसलमान पर बात करना पड़ रही है। वे वहां के पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों से कह रही हैं कि आप भारत आकर देखिए मुसलमानों की स्थिति क्या है। मैं आपकी मेजबान होंगीं।

 

क्या जरूरत आ गई यह सब कहने की? 9 साल पहले क्या किसी मंत्री को यह सब कहना पड़ा था? उल्टे वहां के लोग भारत की मेलजोल की संस्कृति की तारीफ करते थे। जहर तो एक बार बोया जाता है। फिर तो वह अपने आप बढ़ता जाता है। पहले भारत में प्रेम और सद्भाव का माहौल था। हिन्दु मुसलमान का फर्क कहीं महसूस ही नहीं होता था। आज तो नमाज पढ़ने पर ऐसे सवाल उठा रहे हैं जैसे कोई राष्ट्रविरोधी काम कर रहे हों। यह बहस का विषय नहीं है।

 

मगर देश में हर जगह सार्वजनिक स्थानों पर सब धर्मों के कार्यक्रम होते रहते हैं। लेकिन अब रमजान में किसी के घर इकट्ठे होकर भी कुछ लोग नमाज पढ़ते हैं तो इसका विरोध होने लगता है। अफ्तार जिसे रोजा खोलना कहते हैं। चार लोग मिलकर अगर कहीं आफिस में, या अब कई आफिसों में बंद हो गया है तो आफिस के बाहर, पार्क में या कहीं करते हैं तो वहां लोग नारे लगाने पहुंच जाते हैं। कौन लोग हैं ये। बहकाए हुए लड़के। व्हट्सएप से इनके दिमागों में नफरत भर दी गई है। और फिर टीवी पर रोज ऐसे कार्यक्रम दिखाए जाते हैं कि नफरत और बढ़ती है।

 

पता नहीं कैसे भाजपा और आरएसएस समझ रही है कि इससे देश का नाम होगा! अगर नाम होता तो क्यों वित्त मंत्री सीतारमन को अमेरिका में सफाइयां देना पड़तीं? अरब मुल्कों में लाखों भारतीय काम करते हैं। इनमें हिन्दुओं की तादाद ही ज्यादा है। वहां कभी भारतीयों को हिन्दु मुसलमान के सवाल का सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन अब वहां के एम्पलायर पूछते हैं कि आपके यहां यह हिन्दु मुसलमान क्यों होने लगा?

 

पिछले कुछ समय में मुसलमानों के कई प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह , आरएसएस चीफ मोहन भागवत और संघ के दूसरे बड़े पदाधिकारियों से मिले। अभी हाल में रामनवमी पर बिहार में एक ऐतिहासिक लायब्रेरी और मदरसा जलाए जाने के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिन्द के महासचिव महमूद मदनी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
मगर लगता है कि भाजपा और संघ कुछ समझने मानने को तैयार नहीं है। उसे लगता है कि हिन्दु मुसलमान का माहौल बनाने से ही उसके पक्ष के ध्रुविकरण होता है। और वह चुनाव जीतती है।

अभी जब कुछ उर्दू संपादक और अन्य स्कालरो की संघ के एक उच्च पदाधिकारी से मुलाकात हुई थी तो उसमें कहा गया कि हमें तो इस माहौल का फायदा मिलता है। बात सही है। मगर क्या देश को भी मिलता है? बड़ा सवाल यही है। भाजपा 9 साल से सत्ता में है। संघ की जितनी शिकायतें थी कि उसे सरकार यह नहीं करने देती वह नहीं करने देती। सब दूर हो गई हैं। मीडिया पूरी तरह कब्जे में आ गया है। सारी संवैधानिक संस्थाएं भी। तो क्या अब भी उसके पास अपना वही पुराना हथियार है। हिन्दु मुसलमान का! और क्या वही परमानेट रहेगा? क्या नतीजा होगा इसका?

 

युवा बेरोजगार हैं। मंहगाई आसमान छू रही है। अर्थ व्यवस्था पर जहां वित्त मंत्री गई हुई हैं उस अमेरिका से रोज नई चेतावनियां आ रही हैं। सरकारी बैंक, जीवन बीमा निगम और अन्य वित्तिय संस्थान अपनी सीमाओं से बाहर जाकर कर्ज दे चुके हैं या निवेश कर चुके हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में साफ है कि अडानी का जहाज डूबेगा। राहुल गांधी रोज सवाल कर रहे हैं कि अडानी की शैल ( जाली) कंपनियों में बीस हजार करोड़ रुपया किसका है? मगर अमेरिका में इन संदेहों का निराकरण करके देश की आर्थिक तस्वीर साफ सुथरी बताने के बदले वित्त मंत्री को हिन्दु मुसलमान के मुद्दे पर सफाइयां देना पड़ रही हैं।

जिस समय सीतारमन अमेरिका में बोल रहीं थीं कि लेख लिखने वालों भारत आकर देखिए यहां मुसलमान किस तरह रह रहे हैं। उसी समय छत्तीसगढ़ में भाजपा नेताओं की मौजूदगी में व्यापारियों को शपथ दिलाई जा रही थी कि वे मुसलमानों के साथ किसी तरह का लेन देन का व्यवहार नहीं रखेंगे। उनसे कुछ नहीं खरीदेंगे, कुछ नहीं बेचेगे। यह विडीयो चल रहा है। इससे पहले इसी छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी को गाली दी गई। और फिर उसी गाली देने वाले व्यक्ति कालीचरण महाराज का इन्दौर में खुली तलवारों गाजे बाजों के साथ स्वागत जुलूस निकाला गया।

छत्तीलगढ़ जैसे शांत प्रदेश में में यह सब क्यों हो रहा है क्योंकि वहां इस साल चुनाव हैं। और गोदी मीडिया भी कह रहा है कि वहां भाजपा कमजोर स्थिति में है। तो जैसा कि संघ और भाजपा के नेता कहते हैं कि नफरत और विभाजन बढ़ाने से वोट हमारे पक्ष में कन्सोलेटेड ( इकट्ठा) होता है तो वह यह कोशिश छत्तीसगढ़ में तेज कर रहे हैं।

 

मगर सवाल फिर वही कि इसका नतीजा क्या होगा। एक पुराना जनगीत है लोगों के बीच समूह गान होता था –
“दोनों लड़ते, लड़ लड़ मरते, लड़ते लड़ते खत्म हुए
नेता ने सत्ता की खातिर मंदिर मस्जिद खेल दिया
धरम के ठेकेदार से मिलकर लोगों को नाकाम किया
वोट मिले नेता जीता शोषण को आधार मिला
किसका ये मकसद है और किसकी चाल है जान लो!”

बहुत गाया जाता था। आज तो कोई गाए तो उसी को पकड़ लेंगे। आर के लक्ष्मण का एक जबर्दस्त कार्टून है। उसमें व्यक्ति कह रहा है मैंने अफवाह नहीं फैलाई। पुलिस कह रही है हमें मालूम है मगर तुम फैक्ट बता रहे हो। सच बता रहे हो!

आज यही सबसे बड़ा अपराध है। मगर कुछ लोगों को करना पड़ेगा। जिन्हें लगता है कि देश बड़ा है, सत्ता छोटी है उन्हें बोलना पड़ेगा। गीत में जो यह है कि लड़ते लड़ते खत्म हुए तो यह केवल दोनों के लिए, जनता के लिए ही नहीं है, यह हमारे महान देश के लिए भी है। जिसके लिए कहा गया था कि –

“कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर ए जमां हमारा!”

वह कुछ बात प्यार मोहब्बत भाईचारा आपसी सद्भाव कायम रखना होगा। जो बात वित्त मंत्री को विदेश में कहना पड़ रही है उसे देश में कहना होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह उनके निजी विचार हैं)

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