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फिलिस्तिनियों के लिए इस्लामिक देशों ने भी कुछ नहीं किया !

शकील अख्तर

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हमास द्वारा इजराइल पर किए आतंकवादी हमले की जितनी निंदा की जाए कम है। मगर उसके बाद इजराइल के गाजा पट्टी पर किए जा रहे हमले भी किसी आतंकवाद से कम नहीं हैं। यह सरकारी आतंकवाद है। जो ठीक उसी तरह का है जैसा 75 साल पहले खुद यहुदियों पर हिटलर ने किया था।

हिटलर ने 60 लाख यहुदियों का नरसंहार किया था। कारण? नफरत और सिर्फ नफरत। हालांकि इतिहास में इसके बहुत सारे कारण जिनमें हिटलर के द्वारा बताए गए कि वे ऐसे होते हैं और वैसे होते हैं के अलावा कुछ व्यक्तिगत जो महान मुर्खता के कहलाते हैं कि गांव लौटते वक्त अंधेरे में पीछे से लाठी मारकर कोई मेरी पोटली छीन कर भाग गया था। और वह फलानी जाति का था। या मेरे खेत से आलू खोद लिए। वह उस समुदाय का था।

 

तो इन आधारों पर उस समुदाय से नफरत करना। ऐसे ही हिटलर के थे। और ऐसे ही नफरत करने वाले दूसरे लोगों के होते हैं। हिटलर ने इस नफरत को इतना फैलाया कि हिटलर के बाद भी यहुदियों का जर्मनी में रहना संभव नहीं हो सका। और उनके लिए विश्व समुदाय ने जर्मनी से करीब साढ़े चार हजार किलोमीटर दूर अरब देशों के बीच एक देश का निर्माण किया। इजराइल।

और उसके बाद जिस नफरत का शिकार खुद यहूदी होकर विस्थापित हुए थे वही उन्होंने अपने नए मिले देश के आसपास के फिलिस्तीनी नागरिकों से करना शुरू कर दिया। फिलिस्तीन की जमीन पर लगातार अतिक्रमण। इजराइल बढ़ता रहा फिलिस्तीनी आबादी सिकुड़ती रही। और आसपास के अरब देश थोड़े बहुत विरोध के साथ देखते रहे।

फिलिस्तिन की बर्बादी की कहानी उतनी ही त्रासद है जितनी जर्मनी में यहुदियों के नरसंहार की कहानी। मगर फर्क है। बड़ा फर्क। उस समय पुरी दुनिया पीड़ित यहुदियों के साथ खड़ी थी। मित्र सेना ने जर्मनी पर कब्जा करके हिटलर को अपने अंत तक पहुंचने पर मजबूर कर दिया था। सोवियत रूस के नेतृत्व वाली मित्र राष्ट्रों की सेना यहुदियों को गैस चेंबर से निकालकर वापस खुली हवा में ले आई थी। यहूदियों को एक नया देश इजराइल दे दिया गया था।

मगर आज विश्व समुदाय या तो खामोश है या खुद जर्मनी जिसने बाद में यहूदियों को मुआवजे के तौर पैसे अदा किए वह ईरान से बोल रहा है कि गाजा पट्टी में इजराइलियों के हमले का फिलिस्तिनियों का समर्थन मत करो। कोई इजाराइल को रोकने वाला नहीं है। हमले मासूम बच्चों पर हो रहे हैं। और जिस नफरत का जिक्र हमने उपर किया था कि इसी के नशे में हिटलर ने 60 लाख यहूदियों का नरसंहार किया था। इस नफरत में हमारा मीडिया इजराइल के गाजा पट्टी के नागरिकों पर किए जा रहे हमलों का समर्थन कर रहा है। बिजली पानी काट दिया। अस्पतालों में लाशें रखने की जगह नहीं है।

लेकिन मीडिया इस तरह खबरों को बता रहा है जैसे इजराइल कोई बड़ा महान कार्य कर रहा है। मीडिया को उस समय का इतिहास पढ़ना चाहिए। मालूम पड़ेगा कि जैसे वह हत्याओं का समर्थन कर रहा है वैसा हिटलर के आतंक के बावजूद उस समय के अखबारों ने नहीं किया।

यूएन पूरी तरह फेल हो गया है। यह समस्या आज की नहीं है। लेबनान और मिस्र के बीच जहां फिलिस्तीन था वहीं यूरोप और अमेरिका ने इजराइल की स्थापना की। मगर फिलिस्तीन को खत्म कर दिया। एक स्वतंत्र राष्ट्र के रुप में फिलिस्तीन की स्थापना का समर्थन यूएन सहित दुनिया के सारे देश करते हैं। हमारा देश भारत भी। लेकिन हमारे यहां नफरत इतनी फैला दी गई है कि फिलिस्तीन का समर्थन करने वालों के खिलाफ मुकदमे हो रहे हैं। यह जाने बिना कि हमारे देश में फिलिस्तीन का दूतावास है। भारत सरकार ने अभी फिलिस्तीन राष्ट्र के निर्माण का अपना 75 साल से चल रहा समर्थन दोहराया है। यह नफरत हमें कहां ले जाएगी पता नहीं।

मगर इतना जरूर गिरा देगी कि कोई भी इंसान किसी भी इंसान से नाराजगी के कारण उसके पूरे समुदाय से ही नफरत करने लगेगा। उत्तर प्रदेश में देवरिया इसका बड़ा उदाहरण है। एक भूमि विवाद को लेकर हत्या फिर प्रतिक्रिया में हत्याएं जाति वैमनस्य का मामला बना दिया गया है। पहले ऐसा नहीं होता था। आज दो जातियों को आमने सामने खड़ा कर दिया गया है। इसके परिणाम क्या होंगे नफरत की राजनीति करने वाले आज यह नहीं सोच रहे हैं। मगर यह वही आग है जिसने जर्मनी में 60 लाख लोगों का मरवाया था। जो भी ताकतवर है वह कमजोर को मारेगा यह नफरत से उपजा तरीका पूरी मानवता को तबाह कर देगा।

इंसानी मूल्य पूरी तरह खत्म किए जा रहे हैं। गाजा पट्टी में किए जा रहे नरसंहार को रोकने की विश्व समुदाय की तरफ से कोई कोशिश नहीं की जा रही है। हमास आतंकवादी संगठन है। उसके हमले का विरोध का विरोध किस ने नहीं किया। मगर इसको आधार बना कर पूरी गाजा पट्टी खाली करवाना भी आतंकवाद है।
यहां अरब देशों को भी सोचना चाहिए। उन्होंने आज तक इस समस्या को हल करने के लिए क्या किया? उनके बीच ही इजराइल और फिलिस्तीन बसे हुए हैं। अगर वे गंभीरता से कोशिश करते तो अमेरिका जो इजराइल का सबसे बड़ा समर्थक है और यूरोपिय देशों को यह समस्या निपटाना पड़ती। यूएन को सक्रिय करना पड़ता। 57 इस्लामिक कंट्री हैं। उनका संगठन है। ओआईसी (आर्गनाइजेशन आफ इस्लामिक कोपरेशन)। यूएन (संयुक्त राष्ट्र ) के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा संगठन। मगर इसने क्या किया? फिलिस्तीन इसका एक सदस्य देश है। उसके लिए इसके घोषित उद्देश्यों में कहा गया है कि उनके अधिकारों और उनकी भूमि की वापसी।
मगर यह केवल कागज पर लिखा संकल्प ही रह गया। दरअसल सबसे बड़े दोषी इस्लामिक देशों के शासक ही हैं। जिन्होंने न फिलिस्तीन की आजादी के लिए कुछ किया और न ही शिक्षा विज्ञान और विकास के नए क्षेत्रों में कुछ किया। सिर्फ अपनी सत्ता बचाए रखना और अमेरिका की मदद से खुद की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत रखने के अलावा उन्होंने किसी और उद्देश्य के लिए काम किया ही नहीं।
दुनिया बहुत आगे जा रही है। लेकिन नए आधुनिक मूल्यों, वैज्ञानिक विकास मार्डन एजुकेशन के लिए इनके पास कोई कार्यक्रम नहीं है। चाहे इस्लामिक कंट्री हों या दुनिया भर के मुसलमान जिनकी संख्या इन इस्लामिक कंट्री में रहने वाले मुसलमानों से ज्यादा है बिना शिक्षा, वैज्ञानिक चेतना और महिला समानता के दुनिया के बराबर नहीं चल पाएंगे। बहुत पीछे रहे गए हैं। और पीछे रह जाएंगे।
धर्म अपनी जगह है। सबके धर्म हैं। सबका सम्मान है। मगर जैसे पाकिस्तान पीछे रह गया। और अब उसका अपनी समस्याओं से निकलना भी बहुत मुश्किल हो गया है। साथ भारत के ही बना था। मगर भारत ने लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, उदारता, नेहरू के साइंटिफिक टेंपर ( वैज्ञानिक मिजाज) को चुना और पाकिस्तान ने धर्म, सेना और सामंतवाद को तो नतीजा सबके सामने है।
हालांकि भारत में भी आज के शासक उसी गलती को दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। शायद पाकिस्तान का विनाश उन्हें विकास लग रहा है। इसलिए वे भी धर्म और जैसा अभी सेना का प्रयोग अपने प्रचार के लिए और साथ ही प्रगतिशील मूल्यों के खिलाफ बोलकर सामंतवादी मूल्यों को भी पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। भारत आगे बढ़ा था उदार मूल्यों के साथ। नफरत और विभाजन की राजनीति उसे वापस पीछे ले जाएगी।
खाली विश्व गुरु कहने से कुछ नहीं होता। युक्रेन रुस युद्ध रुकवा दिया था के दावे करने से केवल उपहास उड़ता है। विश्व नेतृत्व करने का अधिकार देता है प्रेम, उदारता विश्व दृष्टि से। केवल बातें करने से कुछ नहीं होता।
दुनिया में एक मौका है। इजाराइल फिलिस्तिन मामले का उपयोग देश में नफरत बढ़ाने के लिए न करके इस समस्या के हल की गंभीर कोशिश करके आप वास्तविक विश्व गुरु बन सकते हैं। सिर्फ दोनों पक्ष ही नहीं पुरी दुनिया भारत को सम्मान और विश्वास के साथ देखती है। और 2004 के बाद से नहीं हमेशा से। नेहरू की गुट निरपेक्ष नीति के कारण। चुनाव तो आएंगे चले जाएंगे। मगर विश्व में एक बार साख बन गई तो वह इन दस साल के शासन से कई गुना ज्यादा नाम और सम्मान दे जाएगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं , उनके निजी विचार हैं )

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