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तीन बार फांसी के फंदे पर लटकने के बाद जिंदा बच गया था ये शख्स !

दुनिया में जब किसी कैदी को सजा- ए-मौत दी जाती है तो उसका मरना निश्चित माना जाता है. ऐसे में क्रिमिनल की सांसें तेज होनी शुरू हो जाती है, उसके दिमाग में अपने जिंदा बचने की उम्मीद को छोड़कर हर एक तरह ख्याल आते हैं लेकिन क्या आपने कभी ऐसे बंदे के बारे में सुना है जिसे एक नहीं बल्कि तीन बार फांसी दी गई लेकिन फिर भी उसकी मौत नहीं हुई.

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जी, हां हम बात कर रहे हैं जॉन ली (john babbacombe lee) के बारे में, ये शख्स एक महिला के घर पर नौकरी किया करते थे. वह महिला बहुत अमीर थी. एक दिन महिला के घर पर चोरी होती है और उसके जुर्म में वह जॉन ली को अपने घर से निकाल देती है.ऐसे में दोस्तो 15 नवंबर 1884 को इंग्लैंड के एक छोटे से गांव में जॉन को एक महिला के कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि जॉन ली शुरू से ही खुद को बेकसूर बता रहे थे लेकिन इनके पास से कुछ ऐसे सबूत मिले जिससे साबित होता था कि कत्ल उन्होंने ही किया है.

 

 

भगवान की इच्छा या कोई राज?

वहीं दूसरी तरफ जॉन बार-बार अपनी बेगुनाही के बारे में बता रहे थे, लेकिन अब जाहिर सी बात है कि इनके अलावा मौका ए वारदात पर कोई नहीं था पर इनके हाथों में लगे कट के निशान भी यही इशारा कर रहे थे कि दाल में कुछ काला है और ब्रिटिश पुलिस ने अपना ज्यादा दिमाग और समय ना लगाते हुए जॉन को ही गुनाहगार समझकर कोर्ट में केस शुरू कर दिया. जहां पर कोर्ट ने भी इन्हें ही मुजरिम माना और जॉन ली को मौत की सजा सुना दी गई.

 

 

23 फरवरी 1885 के दिन जॉन का मुँह ढककर फांसी के फंदे तक ले जाया गया. जल्लाद ने उसे फांसी देने के लिए हैण्डल खींचा, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि जॉन के नीचे मौजूद लकड़ी का दरवाजा खुला ही नहीं. जल्लाद ने हैण्डल को कई बार खींचा, लेकिन उसके कई प्रयासों के बाद भी दरवाजा नहीं खुला और जॉन फांसी से बच गया.

 

 

दूसरे दिन फिर से जॉन को सजा देने के लिए लाया गया तो उस दिन भी दरवाजा नहीं खुला और लगातार ऐसा तीन बार होने की बात ये मामला कोर्ट में गया जहां हर एक चीज की तहकीकात की गई कि आखिर ये हो कैसे रहा है क्यूंकि एक शख्स का तीन-तीन बार फांसी की सजा से बच निकलना आज तक के इतिहास में कभी नहीं हुआ था और इसी वजह से ये केस हाई अथोरिटी तक गया जहां इस चीज की इनवेस्टिगेशन शुरू हुई कि आखिर फांसी की सजा तीन बार कैसे रुक सकती है जब पूरी तहकीकात की गई तो यह पता चला कि एक लोहे के टुकड़े की वजह से दरवाजा पूरी तरह से जाम हुआ पड़ा था इसीलिए वो खुल नहीं रहा था. इसके बाद लोगों को यही लगा कि जॉन को भगवान पर भरोसा था और भगवान ने ही उसकी मदद की है.

 

 

 

इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने जॉन की सजा माफ कर दी थी. कोर्ट का कहना था कि जॉन ने तीन बार मौत की सजा को महसूस किया है और इतनी सजा उसके लिए काफी है. इसके बाद लोगों को यही लगा कि जॉन को भगवान पर भरोसा था और भगवान ने ही उसकी मदद की है. 19 फरवरी 1945 को जॉन का 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था, लेकिन उनका नाम आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है.

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