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जब सिर्फ 181 वोट से हार गया था ये दिग्गज नेता, इन सीटों पर 2 फीसदी से भी कम अंतर से हुई थी जीत-हार

किसी दिन प्यास के बारे में उससे पूछिये जिसकी कुएं में बाल्टी रहती है रस्सी टूट जाती है…मरहूम मुन्नवर राना का लिखा यह शेर उन नेताओं को सौ टका खरा समझ आता होगा जो बेहद करीबी अंतर से चुनाव हार जाएं. 2019 के लोकसभा चुनाव में 48 सीटें ऐसी थी जहां 2 फीसदी से भी कम वोटों से सियासी सुरमाओं की किस्मत बनी-बिगड़ी.1-2 फीसदी वोट यानी महज चंद हजार वोट की से हुई इस जीत हार का विश्लेषण इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस कारण पिछले आम चुनाव में बदायूं, कन्नौज जैसे सपा के दशकों पुराने किले ढह गए.

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नेताओं की बात अगर करें तो दिवंगत अजीत सिंह, डिंपल यादव, दीपेंद्र सिंह हुड्डा, एचडी देवेगौड़ा, संबित पात्रा, दिनेश त्रिवेदी जैसे बड़े और अहम नाम वोटों के इस करीबी खेल में कुछ यूं उलझे की लोकसभा नहीं पहुंच सके। जबकि मेनका गांधी, अर्जुन मुंडा, हरसीमरत कौर बादल, प्रद्योत बारोदलोई, रेवंत रेड्डी ले दे के किसी भी तरह से संसद पहुंचे. पिछले आम चुनाव में 2 फीसदी से कम अंतर वाली इन 48 सीटों पर जीत-हार का फैसला 181 वोट से लेकर 22 हजार 217 वोटों के बीच हुआ.

उत्तर प्रदेश की मछलीशहर ऐसी सीट थी जहां भाजपा के भोलानाथ सरोज ने तब जाकर चैन की सांस ली जब बसपा के त्रिभुवन राम 181 वोटों से हार गए.वहीं, दो फीसदी वोटों के अंतर वाले इस खांचे में सहारनपुर की सीट पर सबसे अधिक वोट से जीत-हार का फैसला हुआ. यहां बसपा के हाजी फजलुर रहमान ने भाजपा के राघव लखनपाल को हराया था. लक्षद्वीप तो हमेशा से कांग्रेस का अभेद्य किला रही. जब से यहां आम चुनाव हो रहे, यानी 1957 से पार्टी केवल एक दफा 1967 में हारी थी लेकिन पिछले चुनाव में पार्टी का यहां महज 823 वोटों के अंतर से एनसीपी से हार जाना बरसों तक उसे सालता रहा होगा.

यूं ही, अंडमान निकोबार द्वीप समूह जैसे कांग्रेस के किले को पहली दफा साल 1999 में ध्वस्त करने वाले भाजपा के बिष्णु पद रे के लिए पिछली बार की हार आसानी से हजम करने वाली नहीं थी. कांग्रेस के कुलदीप राय शर्मा से वह महज 1,400 वोट से हार गए. पिछली बार बिहार में 40 में से 39 सीट जीत कर लगभग क्लीन स्वीप करने वाली एनडीए के चुनाव प्रदर्शन से भी ज्यादा इस बात की चर्चा थी कि राजद पूरी तरह कैसे साफ हो सकती है. लेकिन ऐसा ही था. शायद राजद 1 सीट जीत जाती लेकिन जहानाबाद से पार्टी के प्रत्याशी सुरेंद्र यादव का नसीब साथ नहीं दिया. यहां वह जदयू के चंदेश्वर प्रसाद से सिर्फ 1,700 वोट के नजदीकी अंतर से हार गए.

तो कुल मिलाकर अगर सीटों की बात करें तो यूपी में 10 सीटें ऐसी थीं जहां हार जीत 2 फीसदी से भी कम के अंतर से हुआ। वहीं पश्चिम बंगाल 5, ओडिशा में 5, आंध्र में 5, तेलंगाना में 4. तमिलनाडु में 2, कर्नाटक में 2, केरल में 2, झारखंड मे 2, पंजाब में 2, असम में 1, बिहार में 1, छत्तीसगढ़ में 1, हरियाणा में 1 और महाराष्ट्र में 1 ऐसी सीट रही जहां पर 2 फीसदी से भी कम वोट से जीत हार हुई।

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