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बीजेपी -कांग्रेस को जनता ने दिया मौका, इस लोकसभा सीट पर आज तक नहीं खुला बसपा का खाता !

लखनऊ : आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में महज कुछ ही महीने बचे हुए हैं,चुनाव आयोग 13 मार्च के बाद कभी भी चुनाव के तारीखों का ऐलान कर सकता है। सूत्रो की माने तो आम चुनाव की तैयारियों को लेकर चुनाव आयोग के अधिकारी विभिन्न राज्यों का दौरा कर रहे हैं और जब ये पूरा हो जाएगा, तब चुनाव के तारीखों का ऐलान कर दिया जाएगा । लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दल पूरे दम-खम के साथ प्रचार में लगे हुए हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी यूपी में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए जोर लगा रही है।

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उत्तर प्रदेश में काफी समय से बहुजन समाज पार्टी का दबदबा रहा है, लेकिन यहां एक सीट ऐसी भी है, जहां इस पार्टी का उम्मीदवार अब तक जीत नहीं हासिल कर पाया। यह सीट है मुरादाबाद। आगामी आम चुनाव में मुरादाबाद सीट पर इस बार मायावती अपनी पार्टी की जीत का सूखा खत्म करना चाहेंगी, लेकिन अब उनके लिए राह और भी मुश्किल होगी। बता दे कि समाजवादी पार्टी से एसटी हसन यहां के मौजूदा सांसद हैं। बीजेपी और सपा द्वारा जारी की गई लोकसभा प्रत्याशों की लिस्ट में अभी तक इस सीट पर किसी ने भी अपने उम्मीदवार का नाम नहीं तय किया है, लेकिन सपा की तरफ से मौजूदा सांसद एसटी हसन को टिकट मिलना लगभग तय माना जा रहा है।

 

मुरादाबाद के समीकरणकी है। 2017 के चुनाव में भी रितेश गुप्ता ने मुरादाबाद के नगर विधानसभा से चुनाव में जीत हासिल की थी। अगर लोकसभा सीट की बात करे तो सीट पर लगभग 45 फीसदी मतदाता अल्पसंख्यक हैं। इसका असर चुनाव के नतीजों पर भी दिखता है। यहां हुए 17 चुनाव में 11 बार मुस्लिम चेहरे को जीत मिली है। साल 2014 में बीजेपी ने पहली बार यहां खाता खोलने में सफल हुई थी। इससे पहले कांग्रेस के टिकट पर मोहम्मद अजहरुद्दीन इस सीट पर चुनाव जीते थे। अगर जातीय समी

 

दरअसल, मुरादाबाद जनपद जो कि सपा का गढ़ माना जाता है। मुरादाबाद जनपद में 6 सीटे हैं, विधानसभ चुनाव में 6 सीटों में से 1 सीट ही बीजेपी के खाते में गई है। वहीं 5 सीटों पर एसपी ने जीत हासिल की है। मुरादाबाद की नगर विधानसभा में बीजेपी के प्रत्याशी रितेश गुप्ता ने दोबारा जीत हासिल करण की बात करे तो यहां 45 फीसदी मुस्लिम, 10 फीसदी दलित, 10 फीसदी से अधिक ठाकुर-ब्राम्हण और सैनी-प्रजापति मतदाताओं की संख्या भी 10 फीसदी से ज्यादा है. ऐसे में यह सीट समाजवादी पार्टी के वोट गणित के लिहाज से बेहतरीन है, क्योंकि अखिलेश की पार्टी को यादव और मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं।

 

बीजेपी दूसरी बार मार सकती है, बाजी
बता दे कि 2014 के बाद एक बार फिर से बीजेपी यहां जीत हासिल कर सकती है। 1980 में हुए दंगों के बाद से ही यहां वोटों का ध्रुवीकरण होने लगा था और भाजपा लड़ाई में आ गई थी। अब 2014 में जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी अपने लाभार्थियों को भी साधने की भरपूर कोशिश करेगी। 2019 में अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती के साथ आने से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की जीत हुई थी, लेकिन इस बार भाजपा के लिए राह आसान हो सकती है

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