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Mahakumbh 2025: प्रयागराज में किन्नर अखाड़े का पहला महाकुंभ, श्रद्धालु ले रहे आशीर्वाद के लिए एक रुपये के सिक्के

Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़े ने इतिहास रचते हुए पहली बार अपने अखाड़े के रूप में भाग लिया है। इस ऐतिहासिक मौके पर किन्नर अखाड़े में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। लोग किन्नर संतों से आशीर्वाद लेने और एक रुपये का शुभ सिक्का प्राप्त करने के लिए कतार में खड़े नजर आ रहे हैं।

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किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पवित्रा नंदन गिरि ने कहा, “समाज ने हमेशा किन्नर समुदाय को तिरस्कार की नजरों से देखा है। लेकिन महाकुंभ में उमड़ी भीड़ से यह उम्मीद जागी है कि समाज अब हमें स्वीकार करेगा।” उन्होंने बताया कि 10 साल पहले जब किन्नर अखाड़े का पंजीकरण कराया गया था, तब काफी विरोध का सामना करना पड़ा था।

पहला महाकुंभ और आध्यात्मिक अधिकार की जीत

किन्नर अखाड़ा 14वां अखाड़ा बनकर महाकुंभ में शामिल हुआ है। अन्य 13 अखाड़ों की तरह किन्नर अखाड़े को भी संगम में डुबकी लगाने, शोभायात्रा निकालने और अनुष्ठान करने का अधिकार मिला है। पवित्रा नंदन गिरि ने बताया, “आज हम भी संगम में स्नान कर सकते हैं और अन्य संतों की तरह पूजा-अनुष्ठान कर सकते हैं। यह हमारे आध्यात्मिक अधिकार की बड़ी जीत है।”

किन्नर समुदाय के प्रति समाज का रवैया बदलने की उम्मीद

महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने बताया कि महाकुंभ में किन्नर संतों के साथ अन्य संतों जैसा ही व्यवहार हो रहा है। “हम भजन गा रहे हैं, यज्ञ कर रहे हैं, और श्रद्धालु हमारे आशीर्वाद के लिए लंबी कतारों में खड़े हैं। यह देखकर उम्मीद है कि समाज भी हमें स्वीकार करेगा।”

आशीर्वाद के रूप में एक रुपये का सिक्का

महाकुंभ में किन्नर अखाड़े से आशीर्वाद लेने वाले श्रद्धालु एक रुपये का सिक्का अपने साथ ले जाते हैं। यह सिक्का उन्हें सुख-समृद्धि और शुभता का प्रतीक लगता है। लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने बताया, “जब किन्नर आशीर्वाद देता है तो इसे शुभ माना जाता है। लोग इसे मानते तो हैं, लेकिन समाज में हमें बराबरी देने से अब तक हिचकते हैं। हमारा अखाड़ा अब हमारे आध्यात्मिक अधिकार का प्रतीक है।”

किन्नर समुदाय के संघर्ष और वर्तमान स्थिति

महामंडलेश्वर पवित्रा नंदन गिरि ने अपने जीवन के संघर्ष को साझा करते हुए बताया कि उनके परिवार ने उन्हें बचपन में ही छोड़ दिया था। “बचपन में मैं अपने भाई-बहनों के साथ खेलती थी, लेकिन बाद में मुझे यह समझ आया कि मैं उनसे अलग हूं। समाज ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं हीन हूं। लेकिन मैंने हार नहीं मानी और अपनी शिक्षा पूरी की। आज मैं आध्यात्मिकता के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुकी हूं।”

महाकुंभ में किन्नर अखाड़े की विशेष पहचान

महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़े की उपस्थिति यह दर्शाती है कि समय के साथ समाज में बदलाव हो रहा है। यह अखाड़ा न केवल किन्नर समुदाय की आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि समाज में उनके अधिकार और मान्यता का एक बड़ा कदम भी है।

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