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घमंडिया बोलने का मतलब INDIA बहुत ताकतवर है !

जिस स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का जवाब दिया वैसा कोई INDIA का नेता नहीं कर सकता। जिस मणिपुर के कष्ट पर प्रस्ताव था उसे छोड़कर सब विषय पर बोले। लेकिन गोदी मीडिया लहालोट है। जनता को यही मैसेज जा रहा है कि प्रधानमंत्री बहुत अच्छा बोले।मणिपुर पर क्या बोले? इससे कोई मतलब नहीं। शोर यह किया जा रहा है कि विपक्ष की बोलती बंद कर दी। कोई यह सोचने को तैयार नहीं है कि बोलती मीडिया की बंद की है। विपक्ष की नहीं। जनता की नहीं।

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विपक्ष बोल रहा है मगर मीडिया उसे जनता को नहीं दिखा रहा। जनता बोल रही है मगर मीडिया उसकी आवाज भी नहीं उठाकर जनता की हिम्मत तोड़ रही है। हां यह सच है कि उस स्तर पर जाकर कोई नहीं बोल रहा, कोई नहीं बोल सकता जिस स्तर पर प्रधानमंत्री ने बोला। मणिपुर सुन रहा था और लोकसभा से चुटकले सुनाए जा रहे थे। हंसी मजाक हो रहा था। विपक्ष पर आक्रमण हो रहा था। जैसे मणिपुर को शांत करने की जिम्मेदारी विपक्ष की हो। मणिपुर कल दो आंसू और ज्यादा रोया.बहुत बुरा समय है। किसी भी देश के लिए जहां लगभग सौ दिन से एक सीमावर्ती राज्य जल रहा हो। जहां के एक जातीय समुदाय के विधायक सरकार को लिखकर कह रहे हों कि यहां से सेना हटा लो। अगर सेना रही तो राज्य में शांति नहीं होगी। जहां प्रधानमंत्री जाना तो दूर उस विषय पर बोलने को तैयार न हों सोचिए इससे बुरा समय किसी विशाल देश के लिए और क्या होगा। जहां इतनी विविध संस्कृतियां हों। भाषा, खानपान, रिवाज हों। इन सबको देश की खूबसूरती, शक्ति माना जाता था। दुनिया आश्चर्य से देखती थी कि इतनी विविधता के बावजूद यह देश एक है। आगे बढ़ता जा रहा है। मजबूत हो रहा है।

 

मगर आज उसकी विविधता को ही खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। उसे बचाने के बदले, उसे दंगाइयों के भरोसे छोड़ा जा रहा है। सेना को हटा लो की मांग कितनी खतरनाक है यह इसी से समझा जाना चाहिए कि जो वहां होकर आया उस राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी सेना को नहीं कह रहे हैं। अगर सेना से कहा जाए तो वह एक दिन में मणिपुर में शांति स्थापित कर सकती है।तो सेना शांति स्थापित कर सकती है। इसलिए उसे वहां से हटा लो! ताकि हमें खुली छूट मिल जाए। कूकी महिलाएं जो पीड़ित हैं इसलिए सेना के पांव पकड़ पकड़कर उनसे अपील कर रही हैं कि मत जाओ। हमें इन अत्याचारियों के भरोसे मत छोड़ो।

 

सवाल विडियो पर उठाना बंद नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि उसी से देश, दुनिया को मालूम पड़ा कि महिलाओं के साथ वहां किस जघन्य तरीके के अत्याचार हुए। अत्याचार रोकने की कोई बात नहीं है। बल्कि केन्द्र सरकार को लिखे पत्र में यह कहा गया कि जब तक सेना है तब तक यहां शांति स्थापित नहीं हो सकती। मतलब सेना शांति में बाधक है?
ऐसा ही गुजरात में कहा गया था। जब तक संसद चलती रहेगी गुजरात में शांति नहीं हो सकती। सेना को भी वहां आने से रोका गया था। सड़कों पर पेड़ काटकर डाल दिए गए थे।सारी संस्थाओं को निशाने पर लिया जाता है। ताकि दबाव में आकर वे निष्पक्ष और स्वतंत्र काम करना बंद कर दें। अभी शुक्रवार को हर मीडिया में प्रिंट या इलेक्ट्रिनक यह खबर प्रमुख रुप से छपी है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को चुनने में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की भूमिका नहीं होगी।

 

जैसे गुजरात के बाद सेम पेटर्न पर मणिपुर हो रहा है वैसे ही चुनाव आयोग से भारत के चीफ जस्टिस की भूमिका खत्म करने के बाद अगली खबर होगी कि चुनावों में अब जनता की कोई भूमिका नहीं होगी! चुनाव करवा लिए जाएंगे। जनता आपको कष्ट करने की कोई जरूरत नहीं। प्रवासी मजदूरों के लिए इलेक्ट्रोनिक वोटिंग उसी दिशा में उठाया गया कदम है। मतदान इलेक्ट्रोनिक तरीके से करवाया जाने लगेगा तो आम जनता की भूमिका अपने आप खत्म हो जाएगी। उससे कहा जाएगा अपना कोड ( पासवर्ड, जो भी दिया जाएगा, मतदाता पर्ची के बदले) बता दीजिए वोट हम डाल देंगे। मशीन ( कंप्यूटर या जो भी सिस्टम होगा) के चक्कर में आप कहां पड़ेंगे?

 

 

जनता बिना चुनाव अगला कदम होगा अगर INDIA नहीं जागा तो। 26 दलों का गठबंधन INDIA याद रखे कि प्रधानमंत्री उसे बार बार घमंडिया इसीलिए बोल रहे हैं कि वह एक बड़ी चुनौती बन गया है। विपक्षी दलों को अपनी ताकत पहचानना होगी। राहुल ने लोकसभा में हनुमान जी का जिक्र किया अब संसद के बाहर किसी को इन्डिया गठबंधन को यह बताना चाहिए कि इस एकता में कितनी ताकत है। जैसा हनुमान जी को अपनी शक्ति नहीं पता थी। ऐसे ही अभी इन्डिया गठबंधन अपनी ताकत को नहीं पहचान पा रहा है। किसी जामवंत को याद दिलाना होगा विपक्षी एकता में कितनी ताकत होती है। कैसे एकता की ताकत सरकार पलट सकती है। “कवन सो काज कठिन जग माहीं! “

 

 

आज इंडिया गठगबंधन पर बड़ी जिम्मेदारी है। ऐतिहासिक। प्रधानमंत्री के लोकसभा के अविश्वास पर दिए भाषण से दो चीजें समझना चाहिए। एक प्रधानमंत्री की प्रायरटी में कहीं देश की कोई वस्तविक समस्या नहीं है। बड़ी से बड़ी समस्या भी नहीं। बेरोजगारी, महंगाई , चिकित्सा और शिक्षा का मुफ्त मिलना बंद होना जैसी जनता की जिन्दगी से जुड़ी सीधी समस्याएं तो हैं हीं नहीं। राष्ट्रवाद जिस पर सबसे ज्यादा बोलते हैं वह भी नहीं। केवल बोलने के लिए है। क्योंकि बोलने को ही गोदी मीडिया और सोशल मीडिया भक्तों के साथ मिलकर लोगों तक इस तरह पहुंचा देता है कि वे समझते है कि बड़ी बात हो गई। और कुछ बचा नहीं।

 

 

इसीलिए चीन की घुसपैठ गलवान में हमारे सैनिकों को मारना जो हमारी राष्ट्रीय भावनाओं पर सबसे बड़ी चोट थी प्रधानमंत्री नहीं बोलते। बोलते भी हैं तो यह कि न कोई आया था और न कोई है! इसी तरह मणिपुर पर जब डेढ़ घंटे से ज्यादा अप्रसांगिक विषयों पर बोल चुके और उसके विरोध में विपक्ष ने वाक आउट कर दिया तब दो मिनट। जैसे मणिपुर पर शोक व्यक्त किया हो। राहुल ने महिलाओं पर हुए अत्याचार, उनकी नग्न परेड. उस दौरान भी घृणित हरकतें, सामुहिक बलात्कार पर कहा था भारत माता पर अत्याचार। उनकी हत्या। नेहरू ने देश की जनता को ही भारत माता कहा था। भारत माता कोई अमूर्त ( एब्स्टर्ड) चीज नहीं है। वह देश के करोड़ों करोड़ों लोग में रहने वाली भावना है। आम जनता के रूप में मूर्त। उस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रतीक मणिपुर पर भी वे प्रधानमंत्री की तरह नहीं बोलते कि मैं जाऊंगा। सब ठीक कर दूंगा। नहीं वे बोलते हैं सब ठीक हो जाएगा। जैसे कोई थर्ड पार्टी बोल रही हो । जिसे कोई मतलब नहीं हो। शांति हो जाएगी। कैसे हो जाएगी? सौ दिन कम होते हैं? राहुल कहते हैं सेना एक दिन में ठीक कर सकती है। तो क्यों नहीं सेना को आदेश देते? बहुत बड़ा सवाल है। मणिपुर में शांति स्थापित क्यों नहीं कर रहे? क्या यह गुजरात का एक्सपेंशन ( विस्तार) है। प्रयोग। पूरे देश में करना चाहते हैं?

 

 

यही इन्डिया को समझना होगा। इतना जो वे इन्डिया पर अटैक कर रहे हैं वह सामान्य नहीं है। अगर आप इतने ताकतवर हैं तो विपक्ष को हर बात में याद नहीं करते! मतलब आपको अपनी कमजोरियां, विरोधाभास मालूम पड़ गए हैं। उन पर विजय नहीं पा सकते। इसलिए इन्डिया को कमजोर करो। उस पर लगातार सवाल उठओ। नए नए नाम दो। जनता के बीच उसे कमजोर करो। घमंडिया कहने का मतलब यही है। आप जिसकी शक्ति से डरते हैं उसे ऐसे ही नामों से बदनाम करने की कोशिश करते हैं। मगर INDIA का काम आसान नहीं है। उसे बहुत मेहनत और गति दिखाना होगी। समय कम है। विपक्षी दलों को सब भूलकर केवल एक काम में लगना होगा। कौन सा काम? वही जिसे प्रधानमंत्री 9 साल से कर रहे हैं। रोज। चुनाव, चुनाव, चुनाव अब विपक्ष के लिए भी केवल एक ही लक्ष्य होना चाहिए। 2024, 2024, 2024 का लोकसभा चुनाव!

 

( लेखक पत्रकार है यह उनके निजी विचार है )

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