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ये 76 साल नेहरू के विजन की यात्रा है !

शकील अख्तर

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देश का सबसे बड़ा दिन। 15 अगस्त। हर साल कई तरह से याद किया जाता है। नास्टेलजिया ( पुरानी अच्छी यादें) होता है। स्कूल के वह दिन सुबह बहुत जल्दी मुंह अंधेरे निकलकर प्रभात फेरी। पूरे गांव, कस्बे या स्कूल के आसपास के शहर का गांधी, नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह के जिन्दाबाद नारे लगाते हुए, देशभक्ति के गीत गाते हुए चक्कर। और फिर बच्चों का सबसे पसंदीदा प्रोग्राम बुंदी के लड्डू मिलना।

वह दिन भी खत्म हुए। मगर अभी भी उत्साह पैदा कर देते हैं। तैयारियां केवल बच्चों की नहीं होती थीं। मां बाप भी खुश होकर इंतजाम करते थे। सबसे मुश्किल काम होता था। सफेद टेनिस शू (कैनवास) की पालिश करके उसे सुखाना। गीली चॉक या वह सफेद रंग की टिकिया पालिश से जूते गीले हो जाते थे। और अगस्त का महीना बरसात का जूते सुखने का नाम नहीं लेते थे। और कभी किसी साल उस दिन से पहले नए सफेद कैनवास शू मिल जाते थे तो कहना ही क्या! लगता था सबसे अलग आप ही हैं।

मगर यह सब भावनात्मक यादें हैं। अच्छी हैं। और बिला नागा हर साल आती हैं। रील सी पूरे दिमाग में घूम जाती है। लेकिन आजादी एक अलग ठोस तत्व है। जिस पर सोचना और बात करना अब लगातार कम होता जा रहा है। 76 साल हो रहे हैं। बहुत बड़ा अरसा। सच है बहुत काम हुआ है। आज की सरकार माने या न माने देश इन 76 सालों में बहुत आगे बढ़ा है। यह प्रगति इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है कि शून्य से शुरू हुई थी।

अभी भी वे लोग हैं जो 1947 में किशोर हो रहे थे। उन्हें यादें हैं कि कितने कम स्कूल थे। अस्पताल थे। नौकरियां तो बहुत लिमिटेड हुआ करती थीं। मगर नेहरू ने वाकई चमत्कार किया। नकारात्मक बातें करने के बदले जैसा आज की सरकार करती है देश को बनाने में लग गए। कभी नहीं कहा कि अंग्रेजों ने क्या छोड़ा। जैसा आज हर बात में कहा जाता है कि सत्तर सालों में क्या हुआ वैसा कभी नहीं कहा कि पहले क्या हुआ।

सही है अगर वही करते रहते तो उन्हें भी बिना एम्स बनाए झूठ बोलना पड़ता कि दिल्ली में बना दिया। कह दिया कि दरभंगा में बना दिया। लाख बिहार सरकार कहती रहे, दरभंगा की जनता कहती रहे कि नहीं है यहां एम्स मगर क्या फर्क पड़ता है। कह दिया। और भक्त लोग मान गए। कईयों ने तो आकंड़े भी दे दिए कि इतने लोग इलाज करवा कर ठीक होकर आ भी गए।

नेहरू ने काम किया। आज बातें की जा रही हैं। महाराष्ट्र की कलावती के लिए कह दिया की राहुल ने कुछ नहीं किया। भक्त मान गए। कांग्रेस कहती रहे। खुद कलावती कहती रहे कि राहुल ने पूरी मदद की। मगर मीडिया लिख चुका कि भाजपा सरकार ने की थी।

पहले पत्रकार फैक्ट फाइंडिंग करते थे। दरभंगा जाकर वहां से लिखते थे कि नहीं है एम्स। कलावती से मिलकर लिखते थे कि उसकी मदद भाजपा सरकार ने नहीं राहुल ने की है। मगर आज जो सरकार कह दे वही सही। नाले के गैस से चाय बनना आविष्कार है। रडार बादलों में काम नहीं करता नया तथ्य है। कबीर, गुरु नानक और गोरखनाथ का समकालीन होना नया इतिहास है। और भारत 1947 में नहीं 2014 में आजाद हुआ नई खोज है। ऐसी बहुत सारी बातें होंगी। खुद को महान साबित करने के लिए ऐसी काल्पनिक बातों की कोई सीमा नहीं है। कभी मनोवैज्ञानिक इस पर लिखेंगे। आज तो किसी की हिम्मत नहीं है।

मगर नेहरू इन चक्करों में नहीं पड़े। उन्होंने देश की प्राथमिकताएं तय कीं और उनमें लग गए। आराम हराम है का नारा नेहरू ने ही दिया था। 16 घंटे काम वे ही करते थे। और झूठ देश को कितना नुकसान पहुंचा सकता है। अंदर से खोखला कर सकता है वे जानते थे इसीलिए अफवाहें देश की सबसे बड़ी दुश्मन हैं का आह्वान किया था।

नेहरू भी चाहते तो झूठ और अफवाहों के जरिए अपनी सरकार चला सकते थे। आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने का बड़ा आभा मंडल उनके पास था। विपक्ष कहीं था ही नहीं। संघ ( जिसकी राजनीतिक शाखा आज भाजपा है) आज जो नेहरू की सबसे ज्यादा आलोचना करती है उस समय आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं होने के कारण जनता में बहिष्कृत थी। नेहरू के पास सिर्फ चुनाव का ही नहीं आजादी के आंदोलन से निकला एक बड़ा जन समर्थन था। जैसी चाहे कहानियां बना सकते थे। मगर उन्होंने देश का ठोस निर्माण करने का फैसला किया।

कुछ आंकड़े देखना चाहिए। पूरे तो अगर लिखने लगें तो एक लेख में क्या समाएंगे, पूरी किताब बन जाएंगी। मगर आज 15 अगस्त 2023 को 76 साल में देश ने कितनी प्रगति की यह समझने के लिए एक आंकड़ा। शिक्षा का। शिक्षा ही है और आधुनिक शिक्षा जो किसी भी देश और समाज को बनाती है। तो आजादी के समय देश में लिटरेसी रेट ( साक्षरता) केवल 12 प्रतिशत थी। और महिलाओं की तो केवल 9 प्रतिशत। मतलब 1947 में आजादी के समय 11 में से केवल एक महिला साक्षर थी।

तो आप समझ सकते हैं कि नेहरू ने किस तरह जीरो से शुरूआत की। अगर वे भी बातें बनाते रहते तो देश की साक्षरता दर आज 12 प्रतिशत से 82 प्रतिशत नहीं होती। महिला साक्षरता 9 प्रतिशत से 77 प्रतिशत तक नहीं पहुंचती। सबसे बड़ा काम था लोगों को पढ़ाना लिखाना। स्कूल थे नहीं। बहुत सारे लेखकों ने अन्य लोगों ने लिखा है कि कैसे वे मीलों दूर पढ़ने जाया करते थे। उस समय पूरे देश में करीब एक लाख ही स्कूल थे। जिनमें से भी अधिकांश शहरों में। गांवों में तो स्कूल थे ही नहीं। नेहरू ने सबसे ज्यादा ध्यान इस पर दिया। स्कूल खोलने से लेकर टीचर ट्रेनिंग तक पर। केवल शिक्षा ही पर्याप्त नहीं थी अच्छी शिक्षा भी जरूरी थी। और ऐसे ही उच्च शिक्षा भी। नेहरू इसका महत्व कितना समझते थे यह इसी से समझ सकते हैं कि विश्वविध्यालय शिक्षा आयोग (यूजीसी) 1949 में ही बना दिया था। आजादी के समय देश में केवल 27 ही विश्वविध्यालय थे। नेहरू, गांधी, सुभाष चन्द्र बोस सबको पढ़ने के लिए विदेश जाना पड़ता था।

और आज विदेशों में हर बड़े विश्वविध्यालय में भारतीय पढ़ा रहे हैं। पढ़े लिखे लोगों के खिलाफ भाजपा इसीलिए है कि दुनिया भारत को इन पढ़े लिखे लोगों के द्वारा ही जानती है। मनमोहन सिंह की बहुत आलोचना की जाती है। मगर केम्ब्रिज में जिसके बारे में बताने की जरूरत नहीं कि कितनी प्रतिष्ठित अन्तरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी है मनमोहन सिंह के नाम पर ही फेलोशीप दी जाती है।

इसी तरह किसी भी देश के बनने के लिए दूसरा जो सबसे बड़े आधार होता है वह है स्वास्थय। आज भारत की जीवन दर 70 वर्ष है। मतलब हर व्यक्ति औसतन 70 साल तक जीता है। मगर आजादी के समय यह क्या थी? केवल 32 साल। इसे बढ़ाने के लिए देश में स्वास्थय सेवाओं का ढांचा विकसित किया गया। बहुत विस्तृत बात है। मगर संक्षेप में उस समय केवल 28 मेडिकल कालेज थे और आज करीब 612। तभी असली एम्स नेहरू ने 1961 में ही बना दिया था।

भारत ने बड़ी प्रगति की है। 76 साल में क्या हुआ या 2014 से पहले भारत में जन्म लेना शर्म की बात थी कहना आसान है मगर देश को बनाने का जी बीड़ा नेहरू ने उठाया था उसमें बाद के भी सभी प्रधानमंत्रियों ने अपनी अपनी समझ के हिसाब से हाथ बंटाया। कम ज्यादा, सकारात्मक, नकारात्मक फैसला इतिहास करेगा। और इतिहास भक्तों के हिसाब से, गोदी मीडिया के हिसाब से व्हट्सएप यूनिवर्सिटी के हिसाब से नहीं लिखा जाएगा। वह तो ऐसा ही होता है जो तथ्य और सत्य पर आधारित होता है जिसमें से अभी यह बहुत थोड़ा सा हिस्सा निकालकर हमने आपको बताया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

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