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आर्टिकल 370 पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अहम टिप्पणी !

आर्टिकल 370;सुप्रीम कोर्ट में अनुच्‍छेद 370 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई का आज 11वां दिन है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्‍यक्षता में संविधान पीठ मामले को सुन रही है। 20 से ज्यादा याचिकाओं में आर्टिकल 370 को निरस्त किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश की जा चुकी हैं. 28 अगस्‍त को सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर सुनवाई शुरू होते ही वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) खड़े हुए। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले यहां पर जहूर अहमद भट्ट ने जिरह की थी। इस वजह से उन्‍हें सस्पेंड कर दिया गया है। क्या वही भारत का कानून है.

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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने अनुच्छेद 370 की सुनवाई के दौरान एक बड़ी टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 35 ने नागरिकों के कई मौलिक अधिकारों को छीन लिया है. इसने नागरिकों से जम्मू- कश्मीर में रोजगार, अवसर की समानता, संपत्ति अर्जित करने के अधिकार छीना है. ये अधिकार खास तौर पर गैर-निवासियों से छीने गए हैं.

 

CJI ने आगे कहा कि राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता, अचल संपत्ति अर्जित करने का अधिकार और राज्य सरकार के तहत रोजगार का अधिकार आता है. ये सब ये अनुच्छेद नागरिकों से छीनता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये निवासियों के विशेष अधिकार थे और गैर-निवासियों के अधिकार से बाहर किए गए. उन्होंने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार, भारत सरकार एक एकल इकाई है.

 

 

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता  केंद्र सरकार की ओर से जिरह कर रहे हैं, उन्होंने कहा जब भी राष्ट्रपति शासन लगता है, संसद सभी राज्यों में 356(1)(बी) के तहत राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग करती है। मैंने आज तक, राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की विधायिका के रूप में कार्य करते हुए संसद द्वारा पारित किए गए जो भी अधिनियम हैं, उन्हें लिया है। सूची दी है। ऐसे 248 खंड पारित किए गए हैं। यहां तक कि किसी राज्य का बजट भी राज्य विधानमंडल के रूप में कार्य करते हुए संसद द्वारा पारित किया गया है। राष्ट्रपति शासन के दौरान, संसद ने राज्य विधानमंडल के रूप में कार्य करते हुए, पंजाब राज्य का पुनर्गठन भी किया।

 

मेहता ने कहा, अतीत की गलती की आंच भविष्य पर नहीं पड़नी चाहिए। इसीलिए, हमने 2019 के उन दिनों में जो किया, मैं उसे उचित ठहरा रहा हूं।’​ एसजी तुषार मेहता ने कहा, स्थायी निवासियों की एक अलग श्रेणी बनाई गई थी और कोई भी कानून जो इस तरह के विशेष विशेषाधिकार प्रदान करता है, वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 या संविधान के किसी भी हिस्से से प्रभावित नहीं होगा। इसका प्रभाव यह हुआ कि पीओके से हिंदू और मुस्लिम दोनों लोगों को बाहर निकाल दिया गया। उन्हें 1947 में बाहर निकाल दिया गया था। वे 2019 तक स्थायी निवासी नहीं थे। बड़ी संख्या में ऐसे सफाई कर्मचारी थे जिन्होंने IAs दाखिल किए थे और जिन्हें मैनुअल काम के लिए दूसरे राज्यों से लाया गया था। वे स्थायी निवासी नहीं है। उन्हें इनमें से कोई भी लाभ नहीं मिल रहा है। दशकों तक एक साथ रहने के बावजूद, जम्मू-कश्मीर के बाहर कोई भी व्यक्ति संपत्ति अर्जित नहीं कर सकता है। मतलब, कोई निवेश नहीं!

मेहता ने कहा ‘जम्मू-कश्मीर में परंपरागत रूप से ज्यादा बड़े उद्योग नहीं थे. वे कुटीर उद्योग थे. आय का स्रोत पर्यटन था. अभी 16 लाख पर्यटक आए हैं नए-नए होटल खुल रहे हैं जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है.2019 तक, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के न्यायाधीश “राज्य के संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा” का शपथ लेते थे. जबकि उन पर भारत का संविधान लागू करने का दायित्व था. लेकिन उन्होंने जो शपथ ली वह जम्मू-कश्मीर के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त कर रही थी. उन्होंने विधानसभा बहस का हवाला दिया कि संसद ने अनुच्छेद 370 को “अस्थायी प्रावधान” के रूप में देखा. इसपर CJI ने कहा कि ये व्यक्तिगत विचार हैं. अंततः, ये एक सामूहिक रूप में संसद की अभिव्यक्तियां नहीं हैं.

 

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