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अब शिमला से ठोस घोषणाओं के साथ विपक्ष को आना होगा: शकील अख्तर

कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों को इतनी सफलता की उम्मीद नहीं थी। मगर सत्ता पक्ष और गोदी मीडिया को थी। इसलिए वे विपक्ष के एक होने का इतना विरोध कर रहे थे। आप सही राह पर हैं या नहीं इसकी एक बड़ी पहचान यह है कि आपका विरोधी किस तरह रिएक्ट करता है। अगर आपके कोई राह लेने पर उसकी तेज प्रतिक्रियाएं आती हैं तो समझ जाइए कि आप सही राह पर हैं। और अगर वह कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता है, अपना श्रम बर्बाद नहीं करता है तो समझ जाइए कि आप एवंई कोई काम कर रहे हैं। जो दूसरे पक्ष के लिए कोई समस्या कोई चुनौति नहीं है।

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आप यूथ कांग्रेस में, एनएसयूआई में इन्टरनल चुनाव करवाते रहिए। आपके ही संगठन को नुकसान होगा दूसरा चुप रहकर केवल मजा लेगा। समुद्र में जब सब मोटर चलित आधुनिक नौकाओं से चल रहे हो तो आपकी चप्पू से चलने वाली नौका किसी के लिए चुनौती नहीं बनेगी। सिर्फ हंसी का ही बायस बनेगी। जब सब जगह राजनीतिक मूल्य गिर रहे हों तब विपक्ष में रहकर आप कोई आदर्श स्थापित नहीं कर सकते।

सत्ता में रहते हुए ही उच्च आदर्श सिस्टम स्थापित किया जा सकता है। जैसे नेहरू ने किया था कम से कम सौ दिन संसद चलने का। यह परंपरा कमजोर होते होते भी अभी काफी हद तक चल रही है। हालांकि साल में सौ दिन से वह 70- 75 दिन तक गई है। मगर फिर भी सत्ता पक्ष उसे और ज्यादा कमजोर करने से अभी हिचक रहा है। नहीं तो विधानसभाएं जो पहले इतने ही दिन चला करती थीं। अब हर सत्र में एक एक दो दो दिन चलकर ही स्थगित कर दी जाती हैं।

कांग्रेस ने अपने शासन काल में कुछ काम किए। कई नहीं किए! मीडिया में उसने 1977 में लालकृष्ण आडवानी द्वारा भरे लोगों को नहीं हटाया। उसी तरह फिर वाजपेयी सरकार बनते ही आडवानी ने अपने लोगों को सब जगह भर दिया। उन्हें भी यूपीए सरकार ने नहीं हटाया। बल्कि इस बार तो कांग्रेस के नेताओं ने एक और नया काम किया कि संघ के मीडिया में घुसाए लोगों को और मजबूत करना शुरू किया।

कांग्रेस के सूचना प्रसारण मंत्री जो दस साल में पांच रहे उन सबने और संगठन में वरिष्ठ पदों पर रहे और सोनिया के नजदीक रहे लोगों ने इन आडवानी के लोगों से अपने व्यक्तिगत प्रचार का और अपने खिलाफ न लिखने का समझौता किया हुआ था। ये कांग्रेस का खूब विरोध करते थे। सरकार का करते थे और सोनिया, राहुल एवं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी। मगर कुछ मंत्रियों, कुछ संगठन के नेताओं का नहीं।

2014 में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण उसे अंदर से कमजोर कर दिया जाना था। मोदी की सरकार आते ही कांग्रेस के नेताओं में उनकी तारीफ करने की होड़ लग गई थी। भाजपा के नेताओं ने नहीं कांग्रेस के नेताओं ने मोदी को भारतीयता का प्रतीक बताया था।

2014 के बाद से कांग्रेस हताशा की स्थिति में चली गई थी। पिछले साल राहुल की पद यात्रा के फैसले ने उसे तोड़ा। पांच महीने चली यात्रा ने कांग्रेस को तो निराशा के गर्त से बाहर निकाला ही दूसरी विपक्षी पार्टियों में भी हिम्मत पैदा कर दी। कांग्रेस के लिए और खासतौर से राहुल गांधी के लिए उनके विचारों में बहुत परिवर्तन आया।

यात्रा ने ही पटना की 23 जून की विपक्षी एकता की मिटिंग की आधारशीला रखी। पटना में विपक्ष की मिटिंग में राहुल ही सबके आकर्षण का केन्द्र थे। लालू प्रसाद यादव ने उनकी यात्रा की खुले दिल से प्रशंसा करते हुए कहा कि आपने यह यात्रा बहुत अच्छी की। बाकी सबने भी राहुल की इस पहल को सराहा और कहा कि इससे देश में एक नई चेतना आई है।
पहले यात्रा और उसके बाद यह विपक्षी एकता की ठोस शुरूआत सत्ता पक्ष और गोदी मीडिया के लिए बड़ी चुनौति बन गई है। उनका इतना लाल पीला होना बता रहा है कि यह विपक्षी एकता 2024 में मोदी की हैटट्रिक में सबसे बड़ी बाधा है।

नहीं तो अभी तक प्रधानमंत्री मोदी और उनके साथ ताली बजाता चल रहा गोदी मीडिया यह मान रहा था कि 2024 लोकसभा कोई चुनौति नहीं है। आसानी से निकाल लेंगे। मगर एकजुट विपक्ष अब ऐसा नहीं होने देगा।

सबसे बड़ी बात तो इस विपक्षी एकजुटता से जनता में यह मैसेज गया है कि मोदी अपराजेय नहीं हैं। अभी तक गोदी मीडिया और भाजपा यही कहानी (नरेटिव) चला रहे थे कि मोदी नहीं तो कौन? विपक्ष ने पटना से हुंकार भरी कि हम। हम सब एकजुट होकर जनता की आवाज बनेंगे।

आज समस्या जनता की दबा दी गई आवाज ही है। सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। न तो नौकरी है और न ही कोई दूसरा काम धंधा। सरकारी नौकरी बंद कर दी हैं। फौज तक में जहां हर साल 50- 75 हजार नौकरी निकलती थीं। वहां पिछले कई सालो से एक वैकेंसी नहीं निकाली गई है। उनके बदले युवाओं की जवानी खराब कर देने वाली अग्निपथ स्कीम लागू कर दी गई है। चार, साढ़े चार साल में रिटायर करके वापस बेरोजगारी की अंधेरी दुनिया में धकेल दिया जाएगा।

इस समय देश में सबसे ज्यादा युवा है। करीब 38 करोड़। दुनिया का सबसे बड़ा युवा देश कहा जा रहा है। लेकिन रोजगार देने के बदले उसे बताया जा रहा है कि पकौड़े बेचना भी एक रोजगार है। खुद ही अपना किया वादा कि हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देंगे भूलकर प्रधानमंत्री मोदी पकौड़ों में रोजगार बता रहे हैं।

देश में इस समय 5 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं। और इनमें वे लोग शामिल नहीं हैं जो उच्च शिक्षा रखने के बाद रोटी के लिए जमेटो, स्विगी में दूसरों को खाना देने के लिए भागते रहते हैं। या ओला उबर चलाने पर मजबूर हैं। रोजगार का मतलब होता है आपकी योग्यता और शिक्षा के अनुरूप। वह रोजगार बंद है।

विपक्ष को शिमला में होने वाली अगली बैठक में यह घोषणा कर देना चाहिए कि सत्ता में आने के बाद वह किस तरह युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी और रोजगार देगी।

यही मास्टर स्ट्रोक होता है। गोदी मिडिया का रोज रोज कोरे भाषण को मास्टर स्ट्रोक बताने से वह नहीं होता। बाल सीधा बालर के सिर के उपर से स्टेडियम के पार जाना चाहिए। वह होता है मास्टर स्ट्रोक। जैसा राहुल की यात्रा थी। विपक्ष की पटना बैठक थी।

शिमला से स्पष्ट घोषणाओं की शुरूआत हो जाना चाहिए। पहला इलाज बेरोजगारी का। दूसरा कमरतोड़ महंगाई का। तीसरा स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा का। इन्हें वापस सरकारी क्षेत्र में लाकर। जनता को पहले की तरह मुफ्त देने का। और चौथा झूठ की फैक्ट्री चाहे वह व्हट्सएप ग्रुप हों अन्य सोशल मीडिया हो या गोदी मीडिया इन पर सख्त कार्रवाई करने का लिखित वादा करके। 2004 से पहले भी कांग्रेस मीडिया से दुखी होकर कहती थी कि यह इकतरफा काम कर रहा है।

मगर सरकार में आने के बाद यूपीए के पहले सूचना प्रसारण मंत्री जयपाल रेड्डी ( जो पहले जनता दल के थे) ने इन पंक्तियों को लेखक से कहा कि ठीक है पहले कहते थे अब क्या सबको दूरदर्शन से निकाल दूं? उल्लेखनीय है कि कांग्रेस और लेफ्ट ने कई संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस करके दूरदर्शन में भाजपा के लोगों को उच्च पदों पर भर्ती करने का विरोध किया था। मगर सत्ता में आते ही कांग्रेस और लेफ्ट सब भूल गए। नतीजा झूठ की फैक्ट्रियां आज इतनी हो गईं हैं कि सच की खबर कहीं दिखती नहीं है।

विपक्ष अगर इस बार भी झूठ, नफरत, विभाजन पर अंकुश लगाने को 2004 की यूपीए सरकार की तरह मना कर देगा तो फिर यह नकारात्मक ताकतें उसे काम नहीं करने देंगी। और जल्दी ही फिर सत्ता से बाहर धकेलवा देंगी।
विपक्ष को शिमला से बड़ी घोषणाओं के साथ सामने आना होगा। तभी जनता का विश्वास बनेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, उन उनके निजी विचार हैं )

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