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दिल्ली, लखनऊ और पटना वालों पानी को लेकर संभल जाओ; कहीं ”सिटी ऑफ़ लेक” बेंगलुरु जैसा हाल न हो जाए!

गर्मी बढ़ते ही पानी की कमी ने बेंगलुरु में हाहाकार मचा दिया। यह समस्या इतनी गंभीर है की वह के लोगो को पानी पीने के लिए 24-24 घंटे इंतज़ार करना पढ़ रहा है। बेंगलुरु में ये पानी का संकट यूँही अचानक नहीं आ गया। इसके पीछे 50 साल की लापरवाही, सरकार और माफिया का अनैतिक गठजोड़ है. इसी की वजह से कभी झीलों का शहर कहा जाने वाल बेंगलुरु आज जल संकट की वजह से चर्चा में है. बंगलोरे की जो आज स्थिति है, वो दिल्ली लखनऊ पटना जैसे बड़े शहरों में कभी भी दस्तक दे सकती है, अगर समय रहते नहीं समझा गया तो आने वाले वक्त में इन शहरों का हाल भी बेंगलुरु जैसा हो सकता है. इस लेख में हम आपको बताएंगे , की यह संकट कितना बड़ा है और क्यों आया।

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कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु पिछले 1.5 महीने से जल संकट से जूझ रहा है. बारिश से पहले इस संकट को दूर करना लगभग असंभव है. रोटेशनल तरीके से लोगों को टैंकर के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है. मुख्यमंत्री आवास में भी टैंकर से ही पानी पहुंचाया जा रहा है. टैंकर के भाव दिनों-दिन बढ़ गए हैं. बेंगलुरु में एक टैंकर पानी की कीमत करीब 12 हजार रुपए हैं, जो पहले 800-1000 रुपए था. अब आप इससे समझ ही गए होंगे की बंगलोरे का ये जल संकट कितना बड़ा है।

अब बड़ा सवाल है कि कभी लेक सिटी कहा जाने वाला बेंगलुरु कैसे पानी के संकट से जूझ रहा है.

सबसे पहला कारण है , झीलों की ख़राब हालत – 1970 के दशक में बेंगलुरु को झीलों का शहर कहा जाता था. उस समय बेंगलुरु में 271 छोटी-बड़ी झीलें थीं, जो अब सिर्फ 100 के करीब बची हैं वो भी प्रदूषण की वजह से खराब स्थिति में है. 2023 में बेंगलुरु प्रदूषण बोर्ड ने एक रिपोर्ट जारी की थी. जिसमे बताया गया था की 19 झीलें ऐसी हैं , जिसके पानी को ई-कैटेगरी रखा गया था मतलब ऐसा पानी जो बिलकुल भी पीने के लायक नहीं है . 79 झीलों की स्थिति ठीक थी, लेकिन उसका पानी ई-कैटेगरी के करीब ही था. अब सवाल उठता है की आखिर कैसे और क्यों झीलों की ये हालत हो गयी। 

इसकी सबसे बड़ी वजह है भू-माफिया द्वारा झीलों पर अतिक्रमण , जिसे हटाने में बेंगलुरु प्रशासन अब तक नाकाम रहा है. जो झीलें बच गई हैं, वहां सीवेज का पानी जा रहा है. बेंगलुरु ऑथोरिटी सीवेज को रोकने के लिए कोई खास इंतजाम नहीं कर पाई है. झीलों के न होने की वजह से भू-जल का स्तर काफी गिर गया है, जिस वजह से बेंगलुरु शहर में पीने के पानी का संकट आ गया है.

और दूसरी सबसे बड़ी समस्या है, शहरीकरण – 1951: उस वक्त बेंगलुरु का कुल क्षेत्र 60 स्कॉयर किलोमीटर था, जो 2011 तक स्कॉयर 741 किलोमीटर हो गया. यानी बेंगलुरु के शहरीकरण में पिछले 60 सालों में करीब 1005 गुना की बढ़ोतरी हुई है. ये समस्या ऐसे है जो आज हर एक बड़े शहर में देखी जा रही है। क्योंकि आज के समय में कोई गावं में नहीं रहना चाहता सब शहरों की ओर भाग रहे हैं, जिससे बेंगलुरु , दिल्ली , लखनऊ, इंदौर जैसे शहरों की जनसंख्या भी बहुत तेज़ी से बढ़ रही है।

अगर प्रशासन ने समय रहते इन चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया तो वो दिन दूर नहीं है जब बड़े बड़े शहरों में भी पानी की किल्लत को झेलना पड़े।

 

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