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RSS पर इंदिरा सरकार के फैसले को मोदी सरकार ने पलट दिया है, क्या था फैसला चलिए जानते हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में अब सरकारी कर्मचारी भी शामिल हो सकेंगे। मोदी सरकार ने एक ऐसा फैसला ले लिया है जिस पर कई तरह की बातें हो रही हैं. इंदिरा सरकार ने 1966 में इस पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद बीजेपी की कई बार सरकार बनी। वाजपेयी सरकार में भी यह प्रतिबंध जारी रहा तो फिर सवाल ये है कि अचानक से यह प्रतिबंध हटाने का मोदी सरकार ने फैसला क्यों किया है? आखिर इसके मायने क्या हैं? क्या आरएसएस के साथ अपने रिश्ते बेहतर करने के लिए मोदी सरकार को यह फैसला लेना पड़ा है? क्या एक बार फिर आरएसएस के सामने बीजेपी को झुकना पड़ा है? आरएसएस और बीजेपी के बीच बढ़ रही खाइयों को पाटने के लिए यह फैसला हुआ है? आखिर इस फैसले के मायने क्या हैं चलिए विस्तार से इस समझते हैं। साथ ही यह भी समझेंगे कि आखिर इंदिरा ने इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया था? तो वीडियो शुरू करते हैंं।

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देखिए 30 नवंबर 1966 में इंदिरा गांंधी की तत्कालीन सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। भाजपा आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया एक्स पर कार्मिक मंत्रालय के एक आदेश का स्क्रीन शाट साझा करते हुए इसकी जानकारी दी है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर इससे पहले वाली बीजेपी सरकारों ने इसे खत्म क्यों नहीें किया था। आखिर इस समय ही खत्म करने के पीछे असल वजह क्या है?

यह सवाल इसलिए भी अहम है कि अभी कुछ दिन पहले जो लोकसभा चुनाव हुए हैं उसके बाद से ही बीजेपी और आरएसएस के बीच दूरियां बढी हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान को याद कीजिए जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी को अब आरएसएस की जरूरत नहीं है. नड्डा उस समय तो ये बोल गए लेकिन इसका खामियाजा यह हुआ कि बीजेपी को लोकसभा चुनाव में जबरदस्त नुकसान हुआ। माना जा रहा था कि आरएसएस और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने इस बयान को दिल से लिया था और चुनाव में उत्साह से काम नहीं किया। इसका असर ये हुआ कि 400 सीट का दंभ भरने वाली बीजेपी बहुमत भी खुद से नहीं ला पाई। यूपी में तो उसके दिन सबसे बुरे हो गए।

उसके बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान आया जिसमें उन्होंने अहंकार और अतिआत्मविश्वास को बीजेपी के खराब प्रदर्शन का जिम्मेदार ठहराया। उसके बाद आरएसएस के एक और दिग्गज इंद्रेश कुमार ने भी बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि जिस पार्टी ने भगवान राम की भक्ति की, लेकिन अहंकारी हो गई, उसे 241 पर रोक दिया गया, लेकिन उसे सबसे बड़ी पार्टी बना दिया. उसे जो पूर्ण हक मिलना चाहिए, उसे भगवान ने नहीं दिया।

इन बयानो के बाद से ही माना जा रहा था कि बीजेपी और आरएसएस के बीच दूरियां काफी बढ़ गई हैं। ऐसे में इन दूरियों को पाटना जरूरी था। माना जा रहा है कि मोदी सरकार ने एक बार फिर आरएसएस और बीजेपी के रिश्ते को बेहतर करने के लिए ही इतना बड़ा फैसला लिया है जो वाजपेयी सरकार ने भी नहीं लिया था।

अब चलिए अब जानते हैं कि आखिर इंदिरा गांधी ने प्रतिबंध क्यों लगाया था। दरअसल, 7 नवंबर 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था. यह आदेश दिल्ली में हुए गौ-रक्षा आंदोलन के दौरान हिंसा के बाद आया था, जिसमें कई संत और गौ-भक्त मारे गए थे.इस हिंसा के बाद सरकार ने निर्णय लिया कि सरकारी कर्मचारी RSS के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो सकते हैं.  इस आदेश का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को किसी भी सांप्रदायिक या राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से रोकना था, जिससे सरकारी तंत्र की निष्पक्षता बनी रहे। इंदिरा सरकार का तर्क था कि यह निर्णय इसलिए लिया गया ताकि सरकारी कर्मचारी किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक संगठन की गतिविधियों से दूर रहें।

1966 में 7 नवंबर को संसद के घेराव का मुख्य कारण गौ रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गाय की हत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग थी.इस आंदोलन में करीब 125,000 लोग शामिल हुए थे. इस दौरान हिंसा भड़क उठी थी और फिर पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी थी। इसमें एक पुलिस और 7 आंदोलनकारियों की मौत हुई थी।

उधर, सरकार के इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, सरदार पटेल ने गांधी जी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। रमेश ने कहा कि 1966 में सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह सही भी था। नौ जुलाई 2024 को 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया, जो वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी लागू था।

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