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24 मिनट की ‘चंपारण मटन’ जो पहुंच गई ‘ऑस्कर’ सेमीफाइनल तक !

Champaran Mutton: 24 मिनट की फिल्म ‘चंपारण मटन’ को काफी सराहना मिल रही है। यह फिल्म एक गरीब परिवार के संघर्ष की कहानी है। ये फिल्म स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड की फिल्म नैरेटिव कैटेगरी के सेमीफाइनल में पहुंच गई है। स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड चार अलग-अलग केटेगरी में दिया जाता है। इस साल एफ़टीआई की कुल 3 फिल्मों को ऑस्कर के लिए भेजा गया था। लेकिन केवल ‘चंपारण मटन’ को ही शामिल किया गया है। स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड, फिल्म प्रशिक्षण संस्थानों के बच्चों द्वारा बनायी गई फिल्मों को दिया जाता है। यह अवार्ड 1972 से दिया जा रहा है।

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चंपारण मटन टॉप 17 फिल्मों में पहुंची।

आपको बता दें, इस कैटेगरी के लिए दुनियाभर से 2400 से ज्यादा फ़िल्में भेजी गयी थीं। जिनमे चंपारण मटन सेमीफाइनल में टॉप 17 फिल्मों में पहुंची है। अवार्ड की घोषणा अक्टूबर तक की जानी है। यह फिल्म आम परिवार के रिश्तों और संघर्ष की कहानी है। इसकी शूटिंग महाराष्ट्र के बारामती में हुयी है। इस फिल्म को तैयार करने में 1 महीने का समय लगा था। ये फिल्म पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट में निर्देशन की पढ़ाई करने वाले रंजन उमा कृष्ण कुमार ने बनाई है। अपने अंतिम सेमेस्टर के प्रोजेक्ट के तौर पर बनी ये फिल्म बिहार की वज्जिका बोली पर बनायी गयी है।

आर्थिक खींचतान पर बनी है फिल्म ।

‘चंपारण मटन’ बिहार में बनाये जाने वाले एक ख़ास तरीके से पकाए जाने वाले मटन के रूप में मशहूर है। रंजन के अनुसार यह फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित है। इस फिल्म के मुख्य कलाकार चन्दन रॉय और फलक खान हैं। यह फिल्म कहानी है एक बेरोजगार पति की। कैसे वो अपनी गर्भवती पत्नी की इच्छा को पूरा करने के लिए 800 रुपये किलो मटन खरीदता है। एक गरीब परिवार की जिसमें मुश्किल दौर में मटन पकाया जाए और मेहमान आ जाये तो क्या होता है। क्या हो अगर पडोसी मटन की खुशबू से घर आ जाएँ। ‘चंपारण मटन’ इन्ही आर्थिक खींचतान पर बनी एक शार्ट फिल्म है।

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