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योगी सरकार ने फाइलेरिया के समूल उन्मूलन की दिशा में तेज किए प्रयास !

गोरखपुर/लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में संक्रामक और जलजनित बीमारियों के साथ ही फाइलेरिया के समूल उन्मूलन की दिशा में भी कार्य शुरू हो गया है। इस दिशा में फरवरी में होने वाले मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) राउंड को लेकर तैयारी तेज हो गई हैं। लाइलाज उपेक्षित बीमारी फाइलेरिया से बचाव के लिए चलने वाले इस अभियान को सफल और असरदार बनाने के लिए इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम) के दो दिवसीय कांफ्रेस में गंभीर चिंतन हुआ। गोरखपुर एम्स में हुए इस कांफ्रेस में स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा गुजरात, महराष्ट्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के लगभग सभी मेडिकल कालेज, गोरखपुर व रायबरेली एम्स के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और चर्चा की।

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सीएम योगी की मंशा उत्तर प्रदेश को स्वस्थ्य और सक्षम प्रदेश बनाने की है। इस कड़ी में दो दिन चली इस कांफ्रेस में फाइलेरिया के अलावा ट्यूबरक्लोसिस, टीकाकरण, मानसिक स्वास्थ्य, पोषण, इंसेफेलाइटिस समेत कई अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई। इसी क्रम में नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिसीज (एनटीडी) सत्र में फाइलेरिया मरीजों के कष्ट से बात शुरू हुई तो उन्मूलन के प्रयासों के बारे में भी कई कहानियां सामने आईं। सत्र में फाइलेरिया उन्मूलन कायर्कम में एम्स के सहयोग पर भी विस्तार से चर्चा हुई। एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक डॉ सुरेखा किशोर की उपस्थिति में हुई इस खुली चर्चा की सभी ने सराहना की। चर्चा में एम्स दिल्ली के डॉ शशिकांत, एम्स रायबरेली के डॉ भोलानाथ, केजीएमयू के प्रोफेसर डॉ एसके सिंह व आगरा के एसएन मेडिकल कालेज की डॉ रेनु अग्रवाल ने भी हिस्सा लिया।

बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के कंट्री लीड डॉ भूपेंद्र त्रिपाठी ने इस लाइलाज बीमारी के विभिन्न पक्षों की जानकारी दी। पाथ संस्था के राज्य प्रतिनिधि डॉ शोएब अनवर और पीसीआई के प्रतिनिधि रनपाल सिंह ने भी फाइलेरिया की गंभीरता से सबको अवगत कराया। सीफार की कार्यकारी निदेशक डॉ अखिला शिवदास ने कार्यक्रम में सामुदायिक भागीदारी पर प्रकाश डाला और इसमें फाइलेरिया नेटवर्क के प्रयासों को साझा किया।

 

फाइलेरिया सर्वाइवर्स नेटवर्क की सदस्य ने सुनाई आपबीती
फाइलेरिया सर्वाइवर्स नेटवर्क की सदस्य पूजा सिंह ने बताया कि 10-12 साल पहले वह फाइलेरिया से ग्रसित हुई थीं। उस वक्त वह इस बीमारी से अपरिचित थीं। जानने वालों ने तरह-तरह की जड़ी बूटी और गैर वैज्ञानिक उपायों से यह बीमारी ठीक होने की सलाह दी। वह लोगों की सलाह मानती रहीं, लेकिन धीरे-धीरे पैर में दर्द और सूजन बढ़ती गई। एक बार तो सूजन इतना बढ़ गया कि पैर से पानी का रिसाव होने लगा। दर्द इतना भयानक था कि वह कई रातें सो नहीं पाईं। उन्होंने कई डॉक्टर को दिखाया पर कोई सही इलाज नहीं मिला इस कारण से उन्हें अध्यापन का काम छोड़ना पड़ा और उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। बीमारी के कारण उन्हें सामाजिक उपेक्षा और भेदभाव भी झेलना पड़ा। लोगों को यह लगता था कि उनके पैर के पानी से उन्हें भी संक्रमण हो जाएगा।

 

इसी बीच पूजा के गांव में उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च के सहयोग से फाइलेरिया रोगी नेटवर्क का गठन किया गया और नियमित बैठकें होने लगीं। पूजा भी इसमें भाग लेने लगीं और विशेषज्ञों से बीमारी के बारे में कई प्रमुख जानकारी ली और देखभाल के तरीके सीखे। इससे उनके मन में सकारात्मकता का संचार हुआ। व्यायाम और फाइलेरिया प्रभावित अंग की देखभाल से उन्हें आराम मिला है और वह आज दूसरे लोगों को इस बीमारी के प्रति व्याप्त भ्रांतियों के बारे में जागरूक कर रही हैं।

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