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Uttarkashi Tunnel Rescue: …और जिंदगी जीत गई, मजदूरों ने खुद सुनाई कहानी, कैसे सुरंग के भीतर काटे 17 दिन

जब पूरा देश दिवाली का त्योहार उत्साह से मना रहा था तभी उत्तरकाशी निर्माणाधीन सुरंग में फंस गए 41 मजदूर 17 दिन बाद उससे बाहर निकले हैं। एक तरह से इन मजदूरों ने अपनी दूसरी जिंदगी पाई है। 17 दिन् तक सुरंग के भीतर हर रोज जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे इन मजदूरों ने खुद अपनी आपबीती बताई है। कैसे एक एक पल सुरंग के भीतर कट रहा था, ये कहानी सुनकर आप भी भीतर तक सिहर जाएंगे तो चलिए उन्हीं की जुबानी सुनिए ये दर्दनाक दास्तां…

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इन श्रमिकों में से एक विश्वजीत कुमार वर्मा ने बताया, जब मलबा गिरा तो हमें पता चल गया कि हम फंस गए हैं। चारों तरफ अंधेरा था। लगा कि अब जीवन खत्म हो जाएगा। पर, हम एक दूसरे को हौसला दे रहे थे। मालूम था कि अगर यहां पर अपनी हिम्मत हारे तो फिर खुद को भी हार जाएंगे। जब इंसान मौत के मुहाने पर खड़ा होता है तो एक बार जरूर कोशिश करता है कि इस मौत से बचकर निकल जाएं। हम सब भी यही कोशिश करना चाहते थे। अपने भीतर को मजबूत किया। सोचा कि एक बार तो लड़ेंगे ही। मरना होगा तो मर जाएंगे।

एक साथी के पास मोबाइल था, यानी बाहर से हमारा संपर्क हो रहा था। बाहर सरकार, प्रशासन सब जब हमारी सुरक्षा के लिए खड़े दिखे तो हमारे भीतर भी हिम्मत आई। हमने एक दूसरे को जो हौसला दिया, 17 दिन हम उसी हौ्सले की बदौलत जिंदा रहे। जब भी कोई  साथी निराश होता, हम एक दूसरे को हंसाना शुरू कर देते। झूठमूठ का जोक सुनाते, दिल बहलाते ताकि हमें अहसास ना हो कि हम जहां फंसे हैं, वहां से बाहर निकलना, मौत के मुंह से बाहर निकलने जैसा ही है। एक मजदूर ने कहा, एक एक पल को सुरंग में काटना मुश्किल था। बार बार परिवार की याद आती। मन में ये आता कि कहीं हम नहीं बचे तो लेकिन अगले ही पल हम यह भी सोचते थे कि देश के करोड़ों लोग हमारे लिए दुआ कर रहे हैं। हमार परिवार दुआ कर रहा है तो जरूर भगवान हमें बचाएंगे। आज उस भगवान ने हमें बचा लिया है। मैं इतने दिन बाद अपने परिवार को सामने देखा तो खुद को रोक नहीं पाया, आंखें बरस पड़ीं। ये खुशी के आंसू हैं।

हर श्रमिक की अपनी कहानी है। दास्तां हैं लेकिन सबके चेहरे पर अब सुकून है, खुशी है। जो एक एक पल सुरंग के भीतर मर-मर के काटे हैं, अब एक एक पल जीभर के जीना चाहते हैं ये। अब दुनिया की हर खुशी को पा लेना चाहते हैं ये। क्योंकि ये उनकी दूसरी जिंदगी की तरह है। एक मजदूर ने कहा भी है, हमें तो ऐसा लग रहा है जैसे हमने दूसरी जिंदगी पा ली है। राज्य और केंद्र सरकार को शुक्रिया। उनके इस सहयोग से आज हम ना सिर्फ बाहर आए बल्कि नई जिंदगी पाए हैं।

12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे जिस वक्त सुरंग में हादसा हुआ तो मजदूरों की आवाज सुनने के लिए केवल चार इंच का एक पाइप ही माध्यम बचा। पहले सबसे बात हुई तो पता चला कि सभी बच गए, लेकिन फंस गए। इसके बाद उन्हें भूख लगने लगी, लेकिन कोई ऐसा माध्यम नहीं था, जिससे उन्हें भोजन भेजा जा सके।

20 नवंबर तक उन्हें केवल जरूरी दवाएं, चने और ड्राई फ्रूट ही इस चार इंच के पाइप से प्रेशर के माध्यम से भेजे जाते रहे। सभी मजदूर इससे किसी तरह अपनी भूख शांत कर जिंदादिली से उन पलों का इंतजार करते रहे, जब उन्हें बचाकर बाहर निकाला जाएगा। कई मजदूरों को पेट दर्द की शिकायत भी हुई। बावजूद इसके उन्होंने हौसला नहीं हारा। 20 नवंबर को जैसे ही छह इंच के पाइप को भीतर तक पहुंचाने में कामयाबी मिली तो मजदूरों को भी कुछ राहत मिलनी शुरू हो गई। उन्हें खिचड़ी, केले, संतरे, दाल-चावल, रोटी के अलावा ब्रश, टूथपेस्ट, दवाएं, जरूरी कपड़े आदि भेजे गए।
टनल के भीतर इन 13 दिन में उनकी दिनचर्या तो कुछ बनी, लेकिन बाहर आने की व्याकुलता बरकरार रही। डॉक्टर, मनोचिकित्सक उनका हौसला बढ़ाते रहे। आखिरकार इसी जीवंतता के दम पर वह मजदूर सुरक्षित बाहर निकलने में सफल हो पाए।

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