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एक स्टूडेंट की जिद पर आईएएस छोड़ शुरू कर दिया कोचिंग पढ़ाना, विकास दिव्यकीर्ति की प्रेरणादायी कहानी

प्रखर वक्ता और सैकड़ों आईएएस, आईपीएस तैयार कर चुके डॉ. विकास दिव्यकीर्ति अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. दिल्ली में भले ही यह अपनी कोचिंग चलाते हों लेकिन देश का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां यूपीएससी की तैयारी करने वाला छात्र या बौद्धिक लोग इन्हें न जानते हों. लेकिन बहुत कम लोगों को इनके संघर्ष की कहानी मालूम है। बहुत कम लोगों को मालूम है कि आखिर एक आईएएस अफसर क्यों कोचिंग पढ़ाने लगा? आखिर ऐसा क्या हुआ कि देश की सबसे शानदार नौकरी छोड़ वो कोचिंग के व्यवसाय में उतर पड़ा। इसके पीछे पैसा वजह है या कुछ और? आज की कहानी आपको रुलाएगी भी और सबक भी दे जाएगी तो विकास दिव्यकीर्ति की इस कहानी को अंत तक जरूर देखिएगा।

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देश के लिए प्रशासनिक अफसर तैयार करने वाले कोचिंग संस्थान दृष्टि IAS के संस्थापक ने डॉ. विकास दिव्यकीर्ति आजकल सोशल मीडिया पर खूब छाए रहते हैं। उनके जीवन से जुड़ी कहानियां भी उनकी तरह ही रोचक हैं। दिल्ली पढ़ाई करने पहुंचते हैं।

 

डॉ. जाकिर हुसैन कॉलेज में Bcom(H) में एडमिशन लेते हैं. लेकिन ये उसके पहले से ही पॉपुलर रहते हैं वजह थी छात्रों के हर एक मुद्दे पर रहोने वाले आंदोलनों में हिस्सा लेना। 16 की उम्र में सड़क पर होने वाले ऐसे तमाम आंदोलनों में काफी एक्टिव रहे। कभी पुलिस की पिटाई तक झेली। इसी बच जब कॉलेज में गए तो आस-पास के लोग IAS की तैयारी की बात करते थे। कहते थे कि एक IAS सबकुछ बदल सकता है। समाज में बदलाव का सपना देख रहा ये युवा मन भी इसी तैयारी में लग गया।

 

और फिर बदल दिया सब्जेक्ट

आईएएस बनने का सपना देखा तो सब्जेक्ट भी बदल दिया। अब History(H) में चेंज पढ़ाई की और IAS की तैयारी शुरू कर दी। जज्बा ऐसा था कि UPSC में सेलेक्शन भी हो गया  लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।  सलेक्शन के बाद अभी जॉइनिंग मिलने में समय था तो खर्चा निकालने के लिए उन्होंने कोचिंग पढ़ाना शुरू कर दिया और शायद यही उनकी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट था जिसने आज उन्हें देश भर में प्रसिद्ध कर दिया है।

 

1998 में आया वो टर्निंग प्वाइंट 

1998 का वह साल था, कोचिंग में एक ऐसा स्टूडेंट आया जिसने उनसे जिद कर दी कि उसे उनसे हिंदी साहित्य ही पढ़ना है. बस फिर क्या था उसकी एक जिद ने कोचिंग खोलने पर मजबूर कर दिया। डॉ. दिव्यकीर्ति ने सोचा कि खुद आईएएस बनने से अच्छा है कि आईएएस बनाए जाएं। बस इसी स्टूडेंट को लेकर अपने मिशन में जुट गए। इसी स्टूडेंट ने  बाद में कोचिंग के पोस्टर लगाए। पहला बैच 12 बच्चों से शुरू हुआ जो सिलसिला अब भी चल रहा है।

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