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CAA लाने के लिए इतनी बेसब्र क्यों है मोदी सरकार, इसके आने से क्या किसी की नागरिकता जाएगी? सबकुछ समझिए

नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए एक बार फिर चर्चा में है। माना जा रहा है कि मोदी सरकार जल्द ही इसे लागू कर सकती है। वैसे भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ऐलान कर चुके हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले इसे लागू कर दिया जाएगा। इस कानून को लेकर अभी भी लोगों के मन में कई तरह के भ्रम की स्थिति है। आम भाषा में लोगों को समझना जरूरी है कि आखिर ये अधिनियम है क्या? अब तक क्यों ये पेंडिंग है और इसके आने सेे आखिर खतरा क्या है जिसके बारे में विपक्ष बार-बार बातें कर रहा है और सरकार आखिर इसे लाने के लिए इतनी उतावली क्यों है तो चलिए इस वीडियो में विस्तार से इस पर चर्चा करते हैं।

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देखिए, नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में जाकर ये अटक गया था। बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया और फिर 2019 का चुनाव आ गया. एक बार फिर से मोदी सरकार बनी तो दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में दोबारा पेश किया गया. इस बार बहुमत थी तो ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया. यही नहीं 10 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई। तो फिर देरी क्यों हुई इसे भी समझिए अब

सीएए के लागू होने में देरी के कई कारण हैं। शुरुआती विरोध के बाद पूरे देश में सीएए पर बहस तेज हो गई थी. वहीं असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में हिंसा की खबरें भी आईं। इसके बाद मामला  सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए। इस बीच कोरोना के कारण देश में लॉकडाउन और प्रतिबंध लागू रहे और कुछ दिन के लिए ये मामला बिल्कुल खामोशी में रहा। आंदोलन भी बंद रहे। इसी वजह से 4 साल तक ये लागू भी नहीं हुआ।

उधर, सरकार भी देरी करती रही। साल 2020 के बाद से ही मोदी सरकार की तरफ से लगातार सीएए को लेकर एक्सटेंशन लिया जा रहा है। इस पर सवाल भी उठे। दरअसल होता क्या है कि संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के मुताबिक किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की सहमति के 6 महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए लेकिन सीएए के केस में 2020 से गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए लगातार एक्सटेंशन लेता रहा है.

अब चलिए एक बात और समझ लीजिए। देखिए नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास है. पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया गया है. ऐसे प्रवासी नागरिक, जो अपने देशों में धार्मिक उत्पीड़न से तंग आकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आकर शरण ले चुके हैं. इस कानून के तहत इन सबको अवैध प्रवासी माना गया है, जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज (पासपोर्ट और वीजा) के बगैर घुस आए हैं या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हैं, लेकिन तय अवधि से ज्यादा समय तक यहां वे रह गए। अब ये क्या करेंगे। तो उस प्रक्रिया को भी जान लीजिए।

अब इन्हें ऑनलाइन आवेदन करना होगा नागरिकता लेने के लिए। सरकार ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन बनाया है. इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है. आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी एप्लाई कर सकता है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था.उसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता जारी कर देगा यही बस अब एक मात्र प्रक्रिया है।

तो क्या इस कानून के आने से किसी की नागरिकता भी चली जाएगी- सरकार ने साफ किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) में किसी भी भारतीय की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है. यानी किसी की नागरिकता पर कोई संकट नहीं है। यह नागरिकता प्रदान करने के लिए है छीननेे के लिए नहीं। CAA के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए गैर मुस्लिम छह समुदायों को नागरिकता देने का प्रावधान किया है.

तो अब सवाल ये है कि आखिर आमतौर पर भारत में नागरिकता मिलती कैसे है- तो जवाब ये है कि कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है. लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी.बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों…

तो आखिर विपक्ष को क्या ऐतराज है, वह क्या कह रही है उसे भी समझ लीजिए- विपक्ष का कहना है कि यह प्रावधान सिर्फ छह धर्मों से जुड़े लोगों तक ही क्यों सीमित है. मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया और यह सिर्फ तीन देशों से आने वाले लोगों पर ही क्यों लागू होता है? विपक्ष का कहना है कि इस कानून के जरिए खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. वे जानबूझकर अवैध घोषित किए जा सकते हैं. वहीं, बिना वैध दस्तावेजों के भी बाकियों को जगह मिल सकती है. लेकिन इस पर सरकार का दावा है कि इन छह धर्मों के लोगों को तीनों इस्लामिक देशों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.इसलिए उन्हें आश्रय प्रदान करना भारत का नैतिक दायित्व है. मुसलमान वहां धार्मिक मामलों में पीड़ित नहीं हैं.

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