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सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी उनके पद से हटाया जा सकता है ?

देश के सबसे बड़े न्यायलय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यानी CJI ( Chief Justice of India ) के पास इतनी शक्ति होती है कि वो सरकार के आदेश को भी रद्द कर सकती है। पर क्या आपको पता है कि केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट के CJI को भी उनके पद से हटा सकती है। यह एक विशेषाधिकार है जिसमें सबसे अहम रोल राष्ट्रपति का होता है। क्या है ये नियम चलिए आपको विस्तार से बताते हैं।

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भारत के संविधान की ख़ास बात यह है कि इसमें देश को चलाने की पूरी शक्ति को एक हाथों में नहीं दिया गया है। इसके विपरीत देश को चलाने के लिए अहम शक्तियां सरकार और न्यायलय के पास हैं। ये इसलिए भी सही है कि अगर कोई एक अपनी शक्ति का गलत उपयोग करे तो दूसरा उसे रोक सके।

कब लगाया जा सकता है सीजेआई पर ‘ महाभियोग ‘

सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई पर महाभियोग, सरकार द्वारा तब लगाया जा सकता है जब उन पर ‘ अनाचार ‘ या ‘ अक्षमता ‘ सिद्ध हो जाए। मतलब यह कि अगर उनके ऊपर दुराचार का आरोप सिद्ध हो जाए तो उन्हें उनके पद से हटाया जा सकता हैं। संवैधानिक नियमों का पालन नहीं करने या आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण भी सीजेआई पर महाभियोग लगाया जा सकता हैं।

किस प्रक्रिया द्वारा लगाया जाता है ‘ महाभियोग ‘

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का उल्लेख किया गया है। साथ ही, अनुच्छेद 124 (4) और न्यायाधीश (जांच) अधिनियम 1968 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने या उन पर महाभियोग चलाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

1. प्रस्ताव की सूचना

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव का नोटिस पारित किया जाता है। संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में नोटिस पारित होने के लिए निचले सदन के कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर के साथ स्पीकर को घोषणापत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है। उच्च सदन यानी राज्यसभा में नोटिस पारित होने के लिए उच्च सदन के 50 सदस्यों के हस्ताक्षरित नोटिस की न्यूनतम आवश्यकता होती है।

2. गठित जांच समिति

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम 1968 के अनुच्छेद 3(2) के अनुसार, लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति शिकायत की जांच के लिए एक समिति का गठन करेंगे। जांच समिति में एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति की राय के अनुसार एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होंगे। यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा नोटिस स्वीकार कर लिया गया हो, तो जांच समिति का गठन क्रमशः संसद के निचले सदन और उच्च सदन के अध्यक्ष और सभापति द्वारा किया जाएगा।

3. रिपोर्ट प्रस्तुत करना

समिति के गठन के बाद समिति द्वारा जांच की जाएगी और रिपोर्ट संसद के ऊपरी सदन के अध्यक्ष या निचले सदन के अध्यक्ष को सौंपी जाएगी। यदि रिपोर्ट में न्यायाधीश के दोषी होने की बात कही गई है, तो हटाने का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में मतदान के लिए रखा जाएगा। अनुच्छेद 124(2) के अनुसार प्रस्ताव पारित होने के लिए दो शर्तें होनी चाहिए, (i) सदन की कुल संख्या का बहुमत, (ii) बहुमत उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई से अधिक होना चाहिए।

4. राष्ट्रपति का आदेश

संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति के पास आदेश भेजा जाएगा। उसके बाद राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने का आदेश देंगे। जिसके बाद तुरंत ही सुप्रीम कोर्ट के जज को हटा दिया जाएगा।

इस संबंध में हाल के अनुभव

हाल के वर्षों में, 2018 में, राज्यसभा के 71 सांसदों ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उन पर पांच आरोप लगाए गए। बयान में यह भी कहा गया कि CJI अपने भाई-बहनों को “मास्टर ऑफ़ रोस्टर” के रूप में मामले आवंटित कर रहे हैं। लेकिन वरिष्ठ सांसदों, संवैधानिक विशेषज्ञों और कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद, अध्यक्ष और भारत के उपराष्ट्रपति ने यह कहते हुए प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि न्यायाधीश की ओर से कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ है।

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