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चीन क्या बदलेगा? हम अपने नाम कोर्स खुद बदल रहे हैं: शकील अख्तर

शेक्सपीयर ने कहा था नाम में क्या रखा है? हमारे एक बड़े अख़बार मालिक ने कहा कि, शेक्सपीयर में क्या रखा है ? खैर हमारा मीडिया तो कुछ भी बोल सकता है। मगर चीन शेक्सपीयर के नाम विमर्श को एक नया आयाम दे रहा है। वह दूसरे देश के नाम भी बदल रहा है। अभी फिर उसने हमारे अरुणाचल के 11 स्थानों के नाम परिवर्तित कर दिए। और साथ में पूरी दुनिया को बताने के लिए बाकायदा लिस्ट और नक्शा भी जारी कर दिया। पिछले 9 साल में वह हमारे करीब 30 स्थानों के नाम बदल चुका है। इससे पहले 2017 में डोकलाम के समय और फिर 2021 में गलवान के बाद चीन ने 21 जगहों के नाम बदले थे। जाहिर है कि यह जगह हमारी थीं। हमारी हैं।

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लेकिन चीन हमारे देश की जगहों के नाम इतनी आसानी से बदल रहा है जितनी हम बदलते हैं। हमने भी पिछले 9 सालों में दर्जनों जगहों के नाम बदल दिए। नाम बदलने का नशा इतना चर्राया हुआ है कि झांसी रेल्वे स्टेशन तक का नाम बदल दिया। आज तो अख़बार टीवी कुछ लिखने, बताने की हिम्मत नहीं कर सकते नहीं तो दो घंटे भी किसी रिपोर्टर को कैमरे को झांसी स्टेशन पहुंचा दें तो उन्हें मालूम पड़ जाएगा कि अभी भी कितनी लड़कियां जिनका मायका झांसी या आसपास है जो ब्याहने के बाद इस स्टेशन से गईं थीं वे रुआंसी होकर पूछती हैं झांसी स्टेशन किते चलो गओ? जे इतेक बड़ो नाम काए को लिख दओ! वृद्ध औरतें दादी नानी तो रोने लगती हैं कि हमाओ झांसी हिरा गओ (खो गया)।

 

 

झांसी की रानी ने कहा था मैं अपनी झांसी नहीं दूंगीं। हमारी सरकार ने कहा कि हम झांसी स्टेशन का नाम ही बदल देंगे। बहुत खोज की मालूम किया पर मालूम नहीं हो सका कि झांसी नाम भी मुगलों ने रखा था। हां बस इतना मालूम हो सका कि झांसी पर अंग्रेजों के अधिकार जमाने का उस समय के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने विरोध किया था।

 

तो उस समय जो पढ़ लिया सो पढ़ लिया अब तो मुगलों का इतिहास ही कोर्स से हटाया जा रहा है। और जो लोग धर्म के नशे में इससे खुश हो रहे हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि कुल्हाड़ी एक डाल पर नहीं चलती सब पर चलती है। तो निराला को भी कोर्स से हटाया जा रहा है। हटाया तो और भी बहुत से बड़े साहित्यकारों को जा रहा है उनके नाम बताते हैं और उनके भी जिन्हें जोड़ा जा रहा है मगर निराला का नाम इसलिए लिया कि सस्ता नशे में जो लोग अंधे हो रहे हैं उन्हें पता चले कि निराला वह हैं जिनकी राम की शक्ति पूजा हिन्दी की मह्त्वपूर्ण कविताओं में गिनी जाती है। शायद सबसे लंबी कविताओं में भी। 312 पंक्तियों की कविता है यह।

 

कविता का कथानक तो बहुत विस्तृत है। मगर संक्षेप में यह राम रावण युद्ध से अलग सीता की मुक्ति की कथा है। लेकिन निराला तो निराला थे। महाप्राण कहलाते हैं। उन्होंने अंग्रेजो द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों से लड़ने का हौसला देते हुए इस कविता के माध्यम से निराश जनता में नया हौसला पैदा करने का काम भी किया था। यह कविता आजादी के आंदोलन के दौरान 1936 में लिखी गई थी। इसकी अंतिम पंक्तियां हैं –

“ होगी जय, होगी जय, हे पुरषोत्तम नवीन !“
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

 

जो लोग धर्म के नाम पर उन्माद फैलाते है वे धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते। आडवानी के दौर की बात है इंग्लेंड से कुछ प्रवासी भारतीय लेखक यहां आए। विदेश में रहने वाले भारतीय धर्म, संस्कृति के बारे में ज्यादा भावुक होते हैं। धर्म की राम की सबसे ज्यादा बात कर रहे आडवानी से मिलने के वे इच्छुक थे। और जब मिलकर आए तो बहुत निराश थे। कहा कि आडवानी तो हिन्दु माइतथॉलाजी के बारे में कुछ भी नहीं जानते। धर्म शास्त्रों का इनका अध्ययन बहुत उथला है। तो आज के भाजपा नेताओं में किसने निराला की लिखी राम की शक्ति पूजा पढ़ी होगी?

 

तो नाम खाली उर्दू वाले ही नहीं बदलते उर्दू उपनाम नाम रखने वाले अंग्रेजी के भारत के सबसे बड़े जानकारों में से एक और उर्दू के उससे भी बड़े शायरों में एक रधुपति सहाय को भी कोर्स से निकला देते हैं। जी हां फिराक गोरखपुरी का डिग्री में लिखा हुआ नाम रघुपति सहाय ही है। और उन्हें पहली बार 1921 में अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार किया गया था। कविता लिखने के कारण ही। वह गजल थी “ जो जबानें बंद थीं आजाद हो जाने को हैं! “ और अब 2023 में कोर्स में उनकी जबान बंद की जा रही है। हमारी अपनी ही सरकार द्वारा। सुमित्रा नदंन पंत को भी हटाया गया। उन्होंने तो कभी कोई राजनीतिक कविता लिखी ही नहीं। उन्हें तो प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता था। और यह कोई पहली बार नहीं है। वाजपेयी के समय में प्रेमचंद को कोर्स से हटाया गया था। उनकी नौकरी अंग्रेज सरकार ने लिखने के कारण ले ली थी। और विडबंना देखिए कि उन प्रेमचंद के लिए सुषमा स्वाराज जो केन्द्रीय मंत्री थीं संसद में बहुत हिकारत के साथ कहती हैं कि क्या खाली प्रेमचंद ही रह गए पढ़ाने के लिए!

 

खैर वह कहानी छोडिए! देखिए कि अब किस किस को पढ़ाया जाएगा! गुलशन नंदा, वेदप्रकाश शर्मा, सुरेन्द्र मोहन पाठक! जी हां गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में इन लेखकों को पढ़ाया जाएगा। जिन्हें अगर पहले कोई किशोर, युवा पढ़ते दिख जाए तो मां बाप की डांट पड़ती थी। इनकी किताबों को लुगदी साहित्य ( पल्प फिक्शन) कहा जाता था। जिनका उद्देश्य सस्ता मनोरंजन होता था। टाइम पास कहलाता था।
तो नाम बदल दो कोर्स बदल दो। हल्की चीजें पढ़ाओ। हावर्ड हार्ड वर्क हो या ना हो उसकी उत्कृष्टता अपने आप संदेह के घेरे में आ जाएगी। आईआईटी और आटीआई में लोग फर्क भूल जाएंगे। सिर्फ और सिर्फ हिन्दू मुसलमान याद रहेगा। यही सरकार, बीजेपी चाहती है।
राहुल गांधी कह रहे हैं कि चीन ने हमारी दो हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया। हमारे सैनिकों पर हमला किया। हमारी जगहों के नाम बदल रहे हैं। मगर प्रधानमंत्री चुप। कोई जवाब नहीं!

 

प्रधानमंत्री चुप हैं तो क्या हुआ? उनके मंत्री तो उल्टा सवाल पूछ रहे हैं कि राहुल के साथ तीन मुख्यमंत्री सूरत क्यों गए थे? अब तीन हैं तो तीन ही तो जाएंगे। अगर राहुल इसी तरह मोदी सरकार पर हमले करते रहे, लड़ते रहे तो हो सकता है इस साल के अंत तक उनके साथ कहीं जाना हो तो 6 या 7 भी मुख्यमंत्री चले जाएं। इस साल 6 राज्यों कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, मिजारोम में चुनाव होना है। और जम्मू कश्मीर में भी हो सकता है। जहां कांग्रेस के गठबंधन में लड़ने की संभावना है।

खैर वह आगे की तस्वीर है। फिलहाल तो चीन हमें खुले आम चुनौति दे रहा है और हमारे प्रधानमंत्री ने जैसा कहा था कि न कोई घुसा है न कोई है तो वैसे ही अब फिर डर लग रहा है कि कहीं यह कहकर हमें फिर न बहला दिया जाए कि न कोई नाम बदला है और न ही कोई लिस्ट, नक्शा जारी किया है। या विदेश मंत्री यह भी कह सकते हैं कि हमसे बड़ी अर्थव्यवस्था है आप क्या सोचते हैं कि वे नाम भी नहीं बदल सकते! व्यापार की दुनिया है अपने उच्चारण भाषा के हिसाब से नाम तो बदलेंगे। हमसे बड़े व्यापारी हैं!

सुरदास ने तो कब कहा था! गोपियों के मुंह से कहलवाया था – ” आयो घोष बड़ो व्यापारी! ”

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह उनके निजी विचार हैं )

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