Hindi English Marathi Gujarati Punjabi Urdu
Hindi English Marathi Gujarati Punjabi Urdu

देश को कब मिलेंगी पहली महिला चीफ जस्टिस ?

आसमान में प्लेन उड़ाना हो या सड़क पर रिक्शा चलाना हो, ये सच है कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। देश में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की जब भी बात आती है, तो बेहद proudly हम देश की पहली महिला प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का जिक्र करते हैं लेकिन दोस्तों पार्लियामेंट से इतर डेमोक्रेसी का एक ऐसा भी अंग है जिसकी सर्वोच्च संस्था के सर्वोच्च पद को आजादी के 78 साल बाद भी कोई महिला सुशोभित नहीं कर पाई है।

- Advertisement -

High Court of Jharkhand, India

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय को 51वें मुख्य न्यायाधीश मिल गए हैं, जस्टिस संजीव खन्ना 11 नवंबर को CJI के पद पर शपथ लेंगे और इसके लिए उन्हें बधाई शुभकामनाएं बांटने वालों में हम भी आप और हम भी शामिल हैं, लेकिन दोस्तों आज ये सवाल करना भी अति आवश्यक और वाज़िब हो जाता है कि आखिरकार अब तक इस पद को किसी महिला ने सुशोभित क्यों नहीं किया? क्या वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के अब तक 50 मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद भी किसी महिला जज को ये अवसर नहीं मिला कि वो सर्वोच्च न्यायालय के सर्वोच्च पद पर बैठकर संविधान की अभिरक्षा करें…..क्या इस मसले पर आजतक किसी राजनैतिक दल की नज़र नहीं गई या इसके पीछे वजह कुछ और है ये जानने के लिए आपको समझना होगा कि आखिर चीफ जस्टिस की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया क्या है, और क्यों इस नियुक्ति प्रक्रिया पर आए दिन बहस होती है.

CJI यानि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नियुक्ति कैसे होगी इसको लेकर संविधान में कोई ब्योरा नहीं मिलता है हालांकि अनुच्छेद 124 राष्ट्रपति को मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त करने की शक्ति देता है। जब भी किसी मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल खत्म होता है, तो देश के कानून मंत्री वर्तमान चीफ जस्टिस से नाम प्रस्तावित करने के लिए कहते हैं। CJI की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के आधार पर की जाती है। इस कॉलेजियम की अध्यक्षता CJI करते हैं की और इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं….परंपरागत तौर पर ये कॉलेजियम “ON THE BASIS OF SENIORITY” या वरिष्ठतम जज के नाम का प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजता है….जिसके बाद राष्ट्रपति भारत के चीफ जस्टिस को नियुक्त करते हैं…..

लेकिन दोस्तों कोलेजिएम सिस्टम को अपनाने से पहले ये व्यवस्था ऐसी नहीं थी… जब देश आजाद हुआ था तो जस्टिस हरिलाल जे कनिया को पहले CJI के तौर पर नियुक्त किया गया था । जस्टिस कनिया बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। इसके बाद सन 1993 में कोलेजिएम सिस्टम की शुरूआत होने तक CJI की नियुक्तियां मनमाने तरीके से की जाती रहीं और विवाद के घेरे में बनी रहीं। 90 के उस दौर में तो महिलाओं के लिए वकील बनना भी बेहद दुर्लभ था, एक ओर जहां इसकी वजह भारतीय समाज की संरचना को माना जा सकता है तो वहीं तत्कालीन सरकारों की अनदेखी को भी नकारा नहीं जा सकता। ऐसा नहीं है कि ज्यूडिशियरी में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने के लिए प्रयास नहीं किए गए, लेकिन पार्लियामेंट और ज्यूडिशियरी के बीच की खाई में गिरकर ये प्रयास शून्य होते गए। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि हर एक क्षेत्र की तरह भारत की न्यायपालिका में भी भाई-भतीजावाद चरम पर रहा है. सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त अधिकतर न्यायाधीश ज्यूडिशिएल बैकग्राउंड वाले परिवारों से आते हैं। इनमें अगर महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात हो तो आपको जानकर शायद हैरानी हो कि सुप्रीम कोर्ट में अब तक केवल 11 महिला जजों की नियुक्ति हुई है और इसके पीछे का बड़ा कारण है वो कोलेजिएम जिसमें जजों के अपाइंटमेंट, ट्रांसफर, पोस्टिंग से जुड़े मामलों पर प्रस्ताव तैयार करने की जिम्मेदारी है लेकिन इस कोलेजिएम में भी महिला जजों की भागीदारी दूर दूर तक नज़र नहीं आती.

न्यायपालिका में नियुक्ति से जुड़े विवादों के समाधान के लिए और इसमें पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से ही 2014 में NDA की सरकार ने 99वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)की स्थापना की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक और निरर्थक करार दिया।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार ऑल इंडिया सिविल सर्विसेज के तर्ज पर ही ऑल इंडिया ज्यूडिशिएल सर्विसेज को शुरू करने पर विचार कर रही है लेकिन सवाल ये भी है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी किसी दल या सरकार का ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया, अगर ऑल इंडिया ज्यूडिशिएल सर्विस के माध्यम से जजों की नियुक्ति केन्द्रीकृत होती तो शायद आज इस बात पर विचार करने या बहस करने की आवश्यकता नहीं होती. आज आधी आबादी के प्रतिनिधित्व की बात नहीं होती.

दोस्तों ये तो साफ है कि आजादी के दशकों बाद भी सुप्रीम कोर्ट में आज तक कोई महिला वरिष्ठतम न्यायाधीश नहीं रही….या यूं कहना अधिक उचित होगा कि किसी महिला जज को वरिष्ठतम बनने का मौका नहीं दिया गया. इसमें कसूरवार चाहें कोई हो, पर सवाल यही है कि आधी आबादी को उसके हिस्से का अधिकार कब मिलेगा? वो दिन देश कब देखेगा जब कोर्ट में महिलाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए महिला जजों की कमी नहीं होगी. वो दिन देश कब देखेगा जब हम और आप बोल पाएं कि हमें पहली मुख्य न्याायाधीश मिल गईं…..दोस्तों इस बारे में आप क्या सोचते हैं….क्या अब समय आ गया है कि पार्लियामेंट को इस पर विचार करना चाहिए और जल्द से जल्द ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विसेस की शुरूआत करनी चाहिए ताकि पारदर्शिता के साथ ही योग्यता को अवसर मिल सके…..इस मुद्दे पर आप क्या सोचते हैं हमें कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दीजिएगा….

विज्ञापन बॉक्स (विज्ञापन देने के लिए संपर्क करें)

The specified carousel is trashed.

इसे भी पढे ----

वोट जरूर करें

क्या आपको लगता है कि बॉलीवुड ड्रग्स केस में और भी कई बड़े सितारों के नाम सामने आएंगे?

View Results

Loading ... Loading ...

आज का राशिफल देखें