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नवधा भक्ति आखिर है क्या? मनोकामना पूर्ति का जानें आसान तरीका

लखनऊ

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भगवान की आराधना करने का एक सामान्य तरीका होता है, परन्तु पुराणों में नवधा भक्ति करना सबसे उत्तम माना गया है। भक्ति के नौ प्रकारों को ही नवधा भक्ति का नाम दिया गया है। श्रीमद्भागवत में नौ तरह की भक्ति के बारे में भगवान श्री कृष्ण ने बताया है। क्योंकि यह मास भगवान विष्णु का है इसलिए विशेष रूप से इस मास में भगवान विष्णु के सभी अवतरों की पूजा-अर्चना की जाती है। यदि कोई नवधा भक्ति करे तो उसके लिए देवदर्शन के योग भी बन जाते हैं।

फोटो : इंटरनेट

नवधा भक्ति मानव के हर दुःख व कष्ट दूर करने के साथ उसकी मनोकामना को पूरा करने वाली होती है। श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि यदि मनुष्य जीवन के अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहता है, तो उसे नवधा भक्ति की राह पकड़नी होगी।

श्रीमद्भागवत महापुराण की इस चौपाई में नवधा भक्ति का वर्णन किया गया है :

श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम्।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।।

इस चौपाई में बताया गया है कि श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन या समर्पण ही भक्ति का सर्वश्रेष्ठ सदकर्म है और यही नवधा भक्ति है। अब पूर्ण रूप से जानते हैं इन सदकर्म के बारे में।

फोटो : इंटरनेट

नवधा भक्ति के प्रकार :

  1. श्रवण भक्ति : भक्ति का सर्वप्रथम सदकर्म है श्रवण करना। एक भक्त को श्रद्धा पूर्वक ईश्वर के बारे में अधिक से अधिक जानकारी पाने के लिए अपने गुरु से ज्ञान लेना चाहिए। उनके चरित्र, लीला, महिमा और उनके नाम को सुनना चाहिए। जितना हो सके उतना भक्तिरस को पाने के लिए श्रवण करें।
  2. कीर्तन भक्ति : नवधा भक्ति का दूसर सदकर्म है कीर्तन करना। भगवान को याद करते हुए उनके नाम को जपना, भजन-कीर्तन करना मानव को भगवान के करीब ले जाता है और उसके मुँह से निकलने वाले पाप कम होते जाते हैं। मनुष्य जब मन से भक्ति में डूब कर भगवान का स्मरण करता है, तो प्रभु उसके करीब आते हैं।
  3. स्मरण भक्ति : भगवान का स्मरण करना सबसे आसान और कारगर माना गया है। नवधा भक्ति में इसे सबसे अहम माना गया है, क्योंकि ईश्वर का स्मारण कभी भी किसी समय किया जा सकता है। बस निर्मल और शुद्ध मन से भगवान का स्मरण मानव को भगवान से मिला सकता है।
  4. पादसेवन भक्ति : पादसेवन यानी चरण भक्ति करना। ईश्वर के चरण की भक्ति मानसिक सेवा के तहत भी की जा सकती है। भगवान के स्मरण के साथ उनके चरण का स्मरण करते हुए मन में उसकी पूजा करना चरण भक्ति या पादसेवन कहलाता है।
  5. अर्चन भक्ति : नवधा भक्ति में उल्लेखित अर्चन भक्ति बहुत ही आसान है। इसमें प्रभु की रोज धूप एवं दीप दिखाने और उनको भोग लगाने के बारे में बताया गया है।
  6. वंदन भक्ति : भक्ति की इस विधा में ईश्वर का स्वरुप मानकर उनकी पूजा-अर्चना करने के बारे में बताया गया है।
  7. दास भक्ति : एक भक्ति के लिए अपने भगवान का सेवक यानी दास बनना ही दास भक्ति है। इसके अंतर्गत भक्त अपने ईश्वर को अपना स्वामी समझ कर उनकी सेवा करता है।
  8. सख्य भक्ति : यह भक्ति भी बहुत अनुपम होती है। इसमें भक्त अपने भगवान को अपना सखा मानता है और उस मुताबिक उनकी भक्ति में खो जाता है।
  9. आत्मनिवेदन या समर्पण भक्ति : इसके तहत भक्त अपने ईश्वर को अपना सब-कुछ समर्पित कर देता है औश्र वैराग्य रूप में जीवन जीता है।

नवधा भक्ति बहुत आसान है, लेकिन इसे करने वाले का मन और कर्म पूर्ण रूप से शुद्ध होने चाहिए।

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