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Shardiya Navratri 2024 : मां शैलपुत्री मन्दिर जहां दर्शन मात्र से ही कट जाते हैं रोग

सनातन काल से ही हिन्दू धर्म में मां दुर्गा का स्थान सर्वोच्च रहा है।करोड़ों भक्तों के लिए मां दुर्गा पाप नाशनी, कष्ट हरणी आदि शक्तियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। जब नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) का पावन अवसर आता है तो भक्तगण मां दुर्गा के प्राचीन और पवित्र मंदिरों में दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं। ऐसे में आज हम आपको वाराणसी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मां शैलपुत्री खुद विराजमान हैं।

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आपको बता दें कि जितना प्रसिद्ध ये मंदिर है, उससे भी कहीं अधिक दिलचस्प है इस पवित्र मंदिर की पौराणिक कथा। ऐसा कहा जाता है कि शैलपुत्री एक बार कैलाश नगरी से आकर काशी में बस गईं थीं। जब मां शैलपुत्री काशी में थीं तब भगवान शिव उन्हें मनाने के लिए काशी पहुंचे। बहुत कोशिश करने के बाद भी शैलपुत्री नहीं मानीं और उन्होंने कहा कि ये जगह बहुत प्रिय है और यहां से मैं नहीं जाना चाहती हूं। इसके बाद शैलपुत्री नहीं मानी तो भगवान शिव उन्हें काशी में ही छोड़कर चले गए। तब से मां शैलपुत्री काशी में ही बस गईं।

आइए जानते हैं मां शैलपुत्री के मंदिर का महत्व

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भक्तों के लिए यह मंदिर इतना खास है कि दूर-दूर से लोग लाल चुनरी, लाल फूल आदि चीज चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं और मुरादें मंगाते हैं। नवरात्रि के पहले दिन यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। बता दें कि एक अन्य लोक कथा के अनुसार यह काशी का एक ऐसा मंदिर है जहां मां दुर्गा की तीन बार आरती की जाती है। साथ-साथ तीन बार सुहाग का सामान भी चढ़ाया जाता है। बताते चलें कि उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। इन्हें पार्वती का स्वरूप भी माना गया है।

कई नामों से जाना जाता है मंदिर

VIDEO: वाराणसी में है मां शैलपुत्री का मंदिर, दर्शन मात्र से हो जाती है हर मुराद पूरी - India TV Hindi

मां शैलपुत्री को हिमालय की गोद में जन्म लेने वाली मां के अलावा कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि माता का वाहन वृषभ है इसलिए उन्हें वृषारूढ़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा सती, पार्वती और हेमवती देवी के नाम से भी मां शैलपुत्री प्रचलित हैं।

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